पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२८७

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घीया धारी और कोऊ नाहि बीयौ।-सुदर० ० भा० २, पृ० ६४८ । 'गौहर' । २. जड़ी। बूटी। उ०-फनपति वीरन देख के, (ग) फिर वदनेस कुमार वियो सु फते प्रलो। बैठे इकलें राखे फनहि सकोर-कबीर० सा०, पृ०८६४ । जाह करन मसलत भली।-सूदन (शब्द०)। बोरनि-मज्ञा स्त्री॰ [देश॰] कान में पहनने का एक प्रकार का गहना । बीया-सज्ञा पुं० [सं० बीज, प्रा०बीय ] बीज । दाना । ढारी।तरना। वीरी। बीयासा-संज्ञा पु० [ स० व्यास, प्रा० पीयास ] कृष्ण द्वैपायन । वीरवधू-संज्ञा स्त्री स० इन्द्रवधू ] २० 'चीरवी' । उ-एन बोर -वि० [सं० वीर ] ३० 'वीर' । परभा के छल रही चमकि मार करबार । बीरबधू के व्याज री दहकत पाज अंगार ।-स० सप्तक, पृ० २७२ । बोर--संज्ञा पु० [सं० वीर ] भाई । भ्राता । उ०—(क) सबै अज है सं० विर+वधूटी ] एक छोटा रेंगनेवाला यमुना के तीर । काली नाग के फन पर नितंत को बीरबहूटो-संशा स्त्री० कीड़ा। 30-(क) कोकिल बैन पाति बग छूटी। धन बीर -सूर (शब्द०)। (ख) चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न निसरी जन् वीरबहूटी। जायसी (शब्द॰) । (ख) वीर- सनेह गंभीर । को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के बीर । बहूटी बिराजहि दादुर धुनि पहुँोर । मधुर गरज पन -बिहारी (शब्द०) । २. एक देवयोनि जिनकी सख्या ५२ वरखहि सुनि सुनि बोलत मोर।-तुलसी (शब्द॰) । कही जाती है। उ०-प्रसन चद सम जतिय दिन्न इक मंत्र इष्ट जिय । इह पाराषत भट्ट प्रगट पवास वीर विय।-पृ० विशेष-यह किलनी जाति का होता है और प्रायः वरसात रा०, ६॥२६॥ धारभ होने के समय जमीन पर इधर उधर रेंगता हुमा दिखाई पड़ता है। इसका रंग गहरा लाल होता है और बीर--सञ्ज्ञा स्त्री० १. सखी । सहेली। उ०—(क) बार बुद्धि बालनि के साथ ही बढ़ी है वीर कुचनि के साथ ही सकुच उर पाई मखमल की तरह इसपर छोटे छोटे कोमल रोये होते हैं। है।-फे शव (शब्द०)। (ख) यह जा यसोदा के पास बैठी इसे 'इद्रवधू' भी कहते हैं। और कुशल पूछ अशीश दी कि वीर तेरा कान्ह जोवे कोटि बीरमा पुं० [हिं० पीरन ] वीरन । भाई। उ०-दाई ददा वरस (लल्लू (शब्द०)। २. एक पाभूषण जिसे स्त्रियां के इदरी जरत हय भोजी के जियरा जुड़ाय | प्रो मारे वीरम कान मे पहनती है। विरिया। चाँद बोल । उ०-लस बोर भौजी का जियरा जुड़ाय !-शुक्ल -भि० ग्रं॰, पृ० १४३ । चका सी चलै श्रुति मे भृकुटी जुवा रूप रही छवि छत्रै । (ख) वीरा-संज्ञा पुं० [सं० वोटक, हिं० वीड़ा ] १. पान का बीड़ा । ग मंग अनंग झलकत सोहत कानन वीर सोभा देत देखत वि० दे० 'बीड़ा' । उ०-(क) जब तू पापनी स्त्री के पास जाय ही बने जोन्ह सी फूली।-हरिदास (शब्द०)। तब यह बोरा खोलि के प्राधो लीजो माधो स्त्री को दीजो। विशेष-यह गोल चक्राकार होता है और इसका ऊपरी भाग -दो सौ बावन०, भा॰ २, पृ० ६७ । (ख) उन हस के बीरा दई हरषि लुई सुखदान । होन लगी भव दुहुन की मग ढालुमा पोर उठा हुआ होता है। इसके दूसरी ओर खुटी मधुरी मुसकान ।-स० सप्तक, पृ० ३७७ । २. वह फूल फल होती है जो कान के छेद में डालकर पहनी जाती है। इसमें मादि जो देवता के प्रसाद स्वरूप भक्तों आदि को मिलता ढाई तीन अंगुल लंबी कैंगनीदार पूछ सी निकली रहती है जिसमे प्रायः स्त्रियाँ रेशम मादि का भञ्या लगवाती हैं। यह है। उ०-कत अपनी परतीत नसावत मैं पायो हरि हीरा । झधा पहनते समय सामने कान की पोर रहता है। सूर पतित तबहीं ले उठिहै जब हंसि दैहै बीरा ।-सूर (शब्द०)। ३. कलाई में पहनने का एक प्रकार का गहना । बेरवा । उ०- बीरालाप-पंज्ञा पुं॰ [सं० वीर+भालाप ] धीरों की ललकार । हाथ पहुंची वीर कगन जरित मुदरी भ्राजई ।-सूर (शब्द०) वीरों की हुंकार । उ.-सेना सहित खग खीच के 'मागे ४. पशुओं के चरने का स्थान । चरागाह । चरी। ५. चरागाह मारो क्षुद्र रावण को' इस प्रकार बीरालाप करते घोड़े में पशुओं को चराने का वह महसूल जो पशुओं की संख्या के पर चढ़े।-भक्तमाल, पृ० ५७२ । अनुसार लिया जाता है। बोरिट~संज्ञा पु० [सं०] १. वायु । पवन । २. भीड़ भाड़ (को०] । बीरा-मज्ञा पुं० [स० वीरुत् ] दे० 'विश्वा' । वीरी-~संज्ञा स्त्री० [सं० वोरि वा हिं० बीदा ] १. चूना, कत्या पोर बीरजल-संशा पुं० [सं० वीर्य ] दे० 'वीर्य' । सुपारी पड़ा हुआ पान का बीड़ा। उ०-निरपत द्रप्पन नैन घोरतg+-सञ्ज्ञा पुं० [सं० वीरत्व, प्रा० धीरत्त ] वीरता । पराक्रम । वदन वीरी रद खहित । -पु. रा०, १४११६१ । (ख) उ०-जाया रजपूनानिया, वीरत दीधी वेह ।-बांकी ० ० तरिवन श्रवण नैन दोउ मा जति नासा वेसरि साजत । बीरी मा० १, पृ०४॥ मुख भरि चिबुक डिठोना निरखि कपोलनि लाजत । -सुर (शब्द०)।-ढरकी के बीच में लंबाई के बल वह छेद जिसमें बोरन'-संज्ञा पुं० [सं० वीर ] भाई। 30-बीरन पाए लिवाइवे से नरी भरकर तागा निकाला जाता है। ३. लोहे का वह को तिन को मृदुबानि हूँ मानि न लेत है ।-पद्माकर छेददार टुकड़ा जिसपर कोई दूसरा लोहा रख कर लोहार छेद (शब्द०)। करते हैं । ४. कान में पहनने का एक प्रकार का गहना जिसे पोरन-संज्ञा स्त्री० [सं० वीरण ] १. खस का ऊपरी हिस्सा । दे० 'तरना' भी कहते हैं। उ०-बीरी न होई: विराजत कानव .