पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२९१

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बगदर धमाना' ? बुगदरी-संज्ञा पुं० [देश॰] मच्छर । गदा-संज्ञा पुं॰ [ फा०] कसाइयों का छुरा जिससे वे पशुषों की हत्या करते है। चुगला-संज्ञा पुं० [हिं० बगुला ] [ स्त्री० बुगली ] दे० 'बगुला' । उ०-मछली बुगला को प्रस्यो देपर याके भाग। सुंदर यह उल्टी भई मूसै पायो काग ।-सुदर० ग्रं०, भा०२, पृ०७४८1 बुगिअल-संज्ञा पुं० [ देश० ] पशुओं के चरने का स्थान । घरी। घरागाह। बुगुल-संज्ञा पुं० [हिं० विगुल ] दे० 'बिगुल' । बुग्ज-जजा पु० [अ० बुरज ] शत्रुभाव । दुश्मनी । भीतरी दुश्मनी । उ.-जिसको मुज बाज पर सदा मन है ।-दक्खिनी०, -पृ० २१८ । २. डाह । ई। उ०- वे आँखें क्सि काम की जो प्रादमी को नफरत, बुग्ज और कोने की शक्ल में देखे ।-चद०. पृ० १०१ । वुचका-सज्ञा पुं० [हिं० चुकचा ] दे॰ 'बुकचा' । वुज - संज्ञा पुं०, स्त्री॰ [फा० धुज़ ] बकरा । बकरी को०) । बुजकसाब-संज्ञा पु० [फा० बुज़कस्साब ] वह जो पशुओं की हत्या करता अथवा उनका मांस आदि बेचता हो। कस्साई । चकरकसाव। बुजदिल-वि॰ [फा० बुज़दिल ] कायर । डरपोक । भीरु । बुजदिली-संज्ञा स्त्री॰ [फा० ] कायरता । भीरुता । बुजनी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] करनफूल के आकार का एक गहना जो कान में पहना जाता है और जिसके नीचे झुमका भी लटकाया जाता है। इसे प्राय व्याही स्त्रियाँ पहनती हैं। बुजियाला'-संज्ञा पुं॰ [फा० बुज़ ] वह बकरी का बच्चा जिसे कल दर लोग तमाशा करना सिखलाते हैं । (कलंदर) । बुजियाला-संज्ञा पुं० [फा० चूजनह् ] वह बंदर जिसे कलंदर तमाशा करना सिखाते हैं । (कलदर)। वुजरग-वि० [फा० बुजुर्ग] वृद्ध । बड़ा । आदरणीय । श्रेष्ठ । उ०-वेच्यून उसको कहत बुजरग वेनिमून उसै फहै। -सुदर० प्र०, भा०१, पृ० २६३ । वुजुर्ग १-० [फा० बुजुर्ग ] १. जिसकी अवस्था अधिक हो । वृद्ध । बडा । २. पाजी । दुष्ठ । ( व्यंग्य )। बुजुर्ग-संशा पु० वाप दादा । पूर्वज ! पुरखा। विशंप-इस अर्थ में यह शब्द सदा बहुवचन में बोला जाता है । चुजुगों -संशा स्त्री० [फा० बुजुर्गी ] बुजुर्ग होने का भाव । वड़ापन। बुज्जरी-सज्ञा पं० [देश॰] एक प्रकार का पक्षी। बुज्जी-वि० [फा० बुज़ ] बकरी । (हिं.)। बुज्झना-क्रि० म० [प्रा० बुज्झई ] वूझना । समझना । उ०- परम ब्रह्म परमत्य बुज्झइ, वित' बटोरइ कित्ति ।-कोति०, पृ91 बुझनिहार-वि० [ प्रा० बुज्माण + हिं० हार ] बूझनेवाला । समझनेवाला उ०-प्रक्खर रस वृज्झनिहार नहि, कह कुल भमि भिक्खारि भउँ ।-कीर्ति०, पृ० १८ । बुझा--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की चिडिया । वुझना-क्रि० अ० [ ? ] १. किसी जलते हुए पदार्थ का जलना बंद हो जाना। जलने का अंत हो जाना। अग्नि या अग्नि- शिखा का शांत होना । जैसे, लकडी वुझना, लंप बुझना। २. किमी जलते या तपे हुए पदार्थ का पानी मे पड़ने के के कारण ठंढा होना । तपी हुई या गरम चीज का पानी में पड़कर ठंढा होना । ३. पानी का किसी गरम या तपाई हुई चीज से छीका जाना। पानी में किसी चीज का बुझाया जाना जिसमें उस चीज का पानी मे कुछ प्रभाव प्रा जाय । ४. पानी प्रादि की सहायता से किसी प्रकार का ताप शांत होना। पानी पड़ने या मिलने के कारण ठंढा होना । जैसे, चूना बुझना। ५. मित्त का आवेग या उत्साह आदि मंद पडना । जैसे,—ज्यों ज्यों बुढ़ापा पाता है, त्यों त्यों जी बुझना जाता है। बुझरिया-संज्ञा स्त्री० [हिं० वूमना ] शांति । पंतोष। बुझारत । उ०-कोउ नहि कइल मोरे. मन के बुझरिया ।--गुलाल०, पृ०८। बुझाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बुझाना + ई (प्रत्य॰)] बुझाने की क्रिया । वुझाने का काम। यौ०-बुझ'ई का हौज = वह हौज जिसमें नील के पौधे काटकर पहले पहल पानी में भिगोए जाते हैं। २. बुझाने की मजदूरी। धुझाना'-क्रि० स० [हिं० मुझना का सक० रूप ] १. किसी पदार्थ के जलने का ( उसपर पानी डालकर या हवा के जोर से) मंत कर देना । जलते हुए पदार्थ को ठंढा करना या अधिक जलने से रोक देना । अग्नि शांत करना । जैसे, प्राग तुझाना, दीपा वुझाना । २. किसी जलती हुई धातु या ठोस पदार्थ को ठढे पानी में डाल देना जिससे वह पदार्थ भी ठढा हो जाय । तगी हुई चीज को पानी में डानकर ठंढा करना । जैसे,- सोनार पहले सोने को ताते हैं और तब उसे पानी में वुझाकर पीटते और पत्तर बनाते हैं। मुहा०-जहर में बुझाना = छुरी, बरछी, तलवार पादि अस्त्रों के फलो को तपाकर किसी जहरीले तरल पदार्थ में बुझाना जिसमें वह फल भी जहरीला हो जाय । ऐसे फनों का घाव लगने पर जहर भी रक्त में मिल जाता है जिससे घायल श्रादमी शीघ्र मर जाता है । जहर का बुझाया हुआ = दे० 'जहर' के मुहा०। ३. ठढे पानी में इसलिये किमी चीज को तपाकर डालना जिसमें उस चीज का गुण या प्रभाव उस पानी में प्रा जाय । पानी का छौंकना । जैसे,—इनको लोहे का बुझाया पानी पिलाया करो। ४. पानी की सहायता से किसी प्रकार का ताप दूर करना | पानी डालकर टंदा करना । तैसे, प्यास बुझाना,