पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२९३

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बुढो २५३२ बुढ़ी-संज्ञा ली० [ देश० ] बूढ | बीर बहूटी । उ०-बुढ़ी लुढ़ी भुला सके हम, नगरी की बेचैन बुदकतो गडमड्ड अकुलाहट । जु हरित भई वरनी। उच्छलिन छवि फबि हियहरनी।- -हरी घास०, पृ० ६० । नंद० ग्रं॰, पृ० २८६ । बुद्गला-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बुदबुद' । उ०-बुदगल देखो जल- बुढ़ौतो -ज्ञा स्त्री॰ [ हिं. बूदा + श्रौती (प्रत्य०) ] बुढ़ापा । सबै, वुदगल फहूँ न होय । कहवे की दूजो कहो जल बुदगल वृद्धावस्था। नहि होय ।-चरण०, पृ० २८६ । बुत-संज्ञा पुः [ फा०, मि० स० बुद्ध ] १. मूर्ति । प्रतिमा । पुतला। बुदबुदः -संज्ञा पुं० [सं० बुद् वृद] पानी का बुलबुला । बुल्ला । उ०- २. वह जिसके साथ प्रेम किया जाय । प्रियतम । उ०- उस विराट भालोड़न में ग्रह तारा वुदबुद से लगते ।- खुद ब खुद पाज जो वो बुत पाया, मैं भी दौड़ा खुदा खुदा कामायनी, पृ० १७ । करके ।-भारतेंदु ग्रं॰, भा०२, पृ० २२० । ३. सेसरबुत घुदवुदा-संज्ञा पुं० [स० युबुद ] पानी का बुलबुला । बुल्ला । नाम के खेल मे वह दांव जिसमें खिलाड़ी के हाथ में केवल उ०-सासु में बुदबुदे अंड उपजै मिटै गुरु दई दृष्टि जास' तप्तवीरे हो अथवा तीनो ताशो की बुदियों का जोड़ १०,२० निहारा ।-वरण० बानी, पृ० १३० । या ३० हो । विशेष दे० 'सेसरबृत' । बुदलाय-वि० [ दलाल० बुद+ लाय (प्रत्य॰) ] पंद्रह । दस और यौ० 10- वुसखाना = मदिर । मूर्तिस्थान । वुततराश–मूर्ति गढ़ने- पाच । (दलाल)। वाला । बुतपरस्त । बुत शकन । बुद्ध-वि० [स०] १. जो जगा हुआ हो । जागरित । २. ज्ञानवान् । बुत-वि० मूर्ति की तरह चुपचाप बैठा रहने वाला। जो कुछ भी ३. पंडित । विद्वान् । ४. विकसित । खिला हुआ। बोलता चालता न हो। जैसे, नशे मे बुत हो जाना। बद्ध-संज्ञा पुं० [सं०] १. प्रबुद्ध, जिसने बुद्धत्व प्राप्त कर लिया हो। सुप्रसिद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक एक बहुत चुतना-क्रि० प्र० [हिं०] दे॰ 'बुझना' । बड़े महात्मा जिनका जन्म ईसा के लगभग ५५० वर्ष बुतपरस्त-संज्ञा ० [ फा वह जो मूर्तियों को पूजता हो । पूर्व शाक्यवंशी राजा शुद्धोदन की रानी महामाया के गर्भ तिपूजक । २. वह जो सौदर्य का उपासक हो । रसिक । से नेपाल की तराई के 'लुबिनी' नामक स्थान में माघ की चुतपरस्ती-संज्ञा स्त्री॰ [ फा० ] मूर्तिपूजा । पूर्णिमा को हुआ था। विशेप-इनके जन्म के थोड़े ही दिनों बाद इनकी माता का चुतशिकन-संज्ञा पुं॰ [फ'• ] वह जो प्रतिमानों को तोड़ता या देहांत हो गया था और इनका पालन इनकी विमाता महा- नष्ट करता हो । वह जो मूर्तिपूजा वा घोर विरोधी हो। प्रजावती ने बहुत उत्तमतापूर्वक किया था। इनका नाम बुताता-संज्ञा स्त्री॰ [ ? ] खर्च । व्यय | जरूरियात । उ०—जमीन गौतम अथवा सिद्धार्थ रखा गया था और इन्हें कौशिक इतनी ही थी कि चार महीने का बुतात उनकी उपज से विश्वामित्र ने अनेक शास्त्रो, भाषानों और कलाओं प्रादि निकल पाता |-नई०, पु० ४ । फी शिक्षा दी थी। बाल्यावस्था में ही ये प्रायः एकांत मे बुताना-क्रि० प्र० [हिं०] दे० 'बुझाना' । बैठकर त्रिविध दुखों की निवृत्ति के उपाय सोचा करते थे । बुताना-क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'वुझाना। युवावस्था मे इनका विवाह देवदह को राजकुमारी गोपा के साथ हुप्रा था। शुद्धोदन ने इनकी उदासीन वृत्ति देखकर बुताम-संज्ञा पुं० [अं॰यटन ] पहनने के कपड़े में लगाई जानेवाली इनके मनोविनोद के लिये अनेक सुंदर प्रासाद मादि वनवा कड़ी चिपटी घुडी । बटन । दिए थे और सामग्री एकत्र कर दी थी तिसपर भी एकांतवास वुत्त-वि० [ फा० बुत ] दे० 'बुत'। उ०-हाजिर छाड़ि वुत्त को और चिताशीलता कम न होती यी। एक बार एक दुर्बल पूजे ।- कबीर० शब्द० पृ० ३१ । वृद्ध को, एक बार एक रोगी को और एक बार एक शव वुत्ता-संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. धोखा । झांसा । पट्टी । को देखकर ये संसार से और भी विरक्त तथा उदासीन हो मुहा०—चुत्ता देना = झांसा देना । दम देना। गए । पर पीछे एक संन्यासी को देखकर इन्होंने सोचा कि संसार के कष्टों से छुटकारा पाने का उपाय वैराग्य ही है । यौ०-दमयुत्ता। वे संन्यासी होने की चिता करने लगे और अंत में एक दिन २. वहांना । होला। जब उन्हे समाचार मिला कि गोपा के गर्भ से एक पुत्र मुहा०-वुत्ता घताना या बता देना=बहाना करना। हीला उत्पन्न हुमा है, तब उन्होने संसार को त्याग देना निश्चित करना । उ०-घव दिल्लगी जब साहब को ले के पाएगी कर लिया। कुछ दिनों बाद पापाढ़ की पूर्णिमा की रात को और मैं वृत्ता बता दूंगी। दिल मे गालिग देती और अपनी स्त्री को निद्रावस्था में छोड़कर उन्तीस वर्ष की अवस्था कोसती ही जायगी।-सर०, पृ० १८ । में ये घर से निकल गए और जंगल में जाकर इन्होने प्रव्रज्या ग्रहण की। इसके उपरांत इन्होंने गया के समीप निरंजना बुद्-वि० [ देश० ] पाँच । (दलाल)। नदी के किनारे उरुबि ग्राम में कुछ दिनों तक रहकर योग- चुकना -क्रि० प्र० [अन्० ] बुद वुद करना। उ०-क्षण भर साधन तथा तपश्चर्या की अपनी काम, क्रोध, मादि