पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२९८

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बुराई १५३७ बुर्दाफरोशो के फतैपुर झ झणू' के बुरो जोग जाग्यो ।-शिखर०, पृ० छोटे बहुत से छेद करके उनमें एक विशेष क्रिया और प्रकार ५४ । बुरी नजर से देखना। अविश्वास से देखना । बरी से मुज या वालों के छोटे छोटे गुच्छे भर देते हैं। कभी भावना से देखना उ०-उसने फकीर को बरी नजर से देखा कभी ऐसे काठ के टुकड़ो में एक दस्ता भी लगा दिया जाता तो देखते ही भाग में गिर पड़ी।—फिसाना०, भा० ३, है । बुरुश प्रायः मूज या नारियल, वेत आदि के रेशो से पृ० १४३॥ 'अथवा घोडे, गिलहरी, ऊंट, सूप्रर, भालू, बकरी प्रादि यौ०-बुरा भला = (१) हानि लाभ । अच्छा और खराव । पशुपो के बालों से बनाए जाते हैं। साधारणतः बुरुश का (२) गाली गलोज । लानत मलामत । दुरा हाल = बुरे दिन । उपयोग कपडे, टोपियां, चिमनियाँ, तरह तरह के दूसरे बुरे दिन का साथी =ष्ट और विपत्ति के समय साथ देने- सामान, बाल, दाँत प्रादि साफ करने अथवा किसी चीज पर वाला । बुरी नजर = अशुभ दृष्टि । रग घादि चढाने में होता है। चुराई-सशा सी० [हिं० रा+ ई (प्रत्य॰)] १. बुरे होने का भाव । वुरूस--संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का लाल फूलोंवाला पौधा । बुरापन । खरावी। २. खोटापन | नीचता। जैसे, हमने उ०-लाल बुरूसों के मधु छत्तों से थी भरी बनानी ।- किसी के साथ बुराई नहीं की। ३. अवगुण । दोष । दुर्गुण । अतिमा, पृ० १५। ऐव । जैसे,—उसमे बुराई यही है कि वह बहुत झूठ बोलता बुर्ज-सज्ञा पु० [अ० ] १. किले प्रादि की दीवारों में, कोनों पर है। ४. किसी के संबंध मे कही हुई कोई सुरी बात । निंदा । आगे की पोर निकला प्रथवा पास पास की इमारत से ऊपर जैसे,—तुम तो सबकी बुराई ही करते फिरते हो । की ओर उठा हुआ गोल या पहलदार भाग जिसके बीच में यौ०-गई भलाई। बैठने प्रादि के लिये थोड़ा सा स्थान होता है। प्राचीन काल मुहा०-बुराई श्रागे नाना=किए हुए बुरे काम का बुरा मे प्रायः इसपर रखकर तोपं चलाई जाती थी। गरगज । फल मिलना। २. मीनार का ऊपरी भाग अथवा उसके आकार का इमारत बुरादा-संज्ञा पुं० [फा० बुरादह ] १. वह चूर्ण जो लकड़ो को पारे का फोई घंग। ३. गुबद । ४. गुब्बारा । ५. ज्योतिष में से चीरने पर उसमे से निकलता है। लकड़ी का चुरा । राशिचक्र । कुनाई । २. चूर्ण । चरा ( क्व०)। बुर्जी-ज्ञा स्त्री० [अ० बुर्ज+ई ] छोटा बुर्ज । बुरापन-संज्ञा पु० [हिं० बुरा+पन (प्रत्य० ) ] दे० 'चुराई । वुर्जुश्रा-ज्ञा पुं० [ फरासोसो> पं० वुवा ]. धनिक मध्यमवर्गीय वुरि-संशा सी० [सं०] भग । योनि [को॰] । जन | अभिजात जन । अभिजात, जनों से संवद्ध वस्तु या बुरुज-श पुं० [फा० बुर्ज ] दे० 'बुर्ज' । उ०-चौदह बुरुज व्यवहार । दसो दरवाजा ।-कचीर० श०, पृ० ७ । बुर्द-भञ्ज्ञा स्त्री० [फा०] १. ऊपरी प्रामदनी । ऊपरी लाभ | नफा । चुरुड-ज्ञा पुं॰ [देश॰] एक जाति जिसकी गणना अंत्यजों में होती २. शर्त । होड़ । वाजी । ३. शतरंज के खेल मे वह अवस्था है । डोलची, चटाई प्रादि बनाने वाली जाति । जब सद मोहरे मर जाते हैं और केवल बादशाह रह वरुल-संज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का बहुत बड़ा वृक्ष जो हिमालय जाता है। उस समय बाजो 'बुदं' कहलाती है और प्राधी में १३००० फुट की ऊंचाई तक होता है। इसकी छाल बहुत मात समझो जाती है। ४. बेलबूटावाली चादर । नक्सी सफेद और चमकीली होती है जिससे पहाड़ो लोग झोपड़े चादर (को०)। बनाते हैं। इसकी लकड़ी छत पाटने और पत्ते चारे के काम बुर्दबार :-वि० [फा०] १. वोझा उठानेवाला । २. सहिष्णु। मे पाते हैं। सहनशील । बुमश-सज्ञा पु० [अं० प्रश ] अंग्रेजी ढंग की बनी हुई किसी प्रकार बुद्बारो-संज्ञा स्त्री० [फा० बुर्दवार + ई] सहनशीलता । सुशीलता। की कूची जो चीजो को रंगने, साफ करने या पालिश प्रादि उ०-यह मुरौवत सखावत बुर्दबारी खाकसारी। -प्रेमघन०, करने के काम मे पाती है। भा०२, पृ० ८६॥ विशेष-वरुण प्रायः कूटी हुई मूज या कुछ विशेष पशुओं के बुर्दा -सज्ञा पु० स्त्री० [ तु. बुदह ] १. गुलाम । २. कनीज । बालो अथवा कृत्रिम रेशो से बनाए जाते हैं और भिन्न बांदी [को०] । भिन्न कार्यों के लिये भिन्न भिन्न आकार प्रकार के होते बुर्दाफरोश-संशा पु० [ तु० बुर्दह + फ़रोश (प्रत्य॰)] १. गुलामों हैं। रंग भरने या पालिश आदि करने के लिये जो बुरुश को बेचनेवाला। दास दासियों को बेचनेवाला व्यक्ति । २. बनते हैं, उनमे प्रायः मूज या बालों का एक गुच्छा वह व्यक्ति जो औरतों को भगाकरं वेचता हो । पौरतों को किसी लंबी लकड़ी या- दस्ते के सिरे पर लगा रहता उडाकर बेचनेवाला व्यापारी। है। चीजो को साफ करने के लिये जो बुरुश बनाए बुर्दाफरोशी-संज्ञा सी० [फा० बुर्दाफरोश+ई (प्रत्य०)] जाते हैं, उनमें प्रायः कार के एक चौड़े टुकड़े मे छोटे फिरोण का काम । औरतों को बेचने का काम ।