पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३०१

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खाली। बूधा चूट' बृक्षा-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] १. पिता की वहन । फूफो। २. बडो यथास्थान स्थिर रसने के लिये सटे चारों ओर लगाया बहन। ३. स्त्रियों का परसर प्रादरसूचक सबोधन । जाता है । ( लप०)। (मुसल०) । ४. एक प्रकार की मछली जो भारत की बड़ी बड़ी बूच'--वि० [सं० चुस (= विभाग फग्ना) अथवा] [i० व्युच्छन्न, नदियो में पाई जाती है। इसका माम रूसा होता है। प्रा० चोच्छिन्न, चुच्छिन्न ] रहित । वियुक्त । छिन्न । उ०- ककसी। सतगुरु तेग तरक जम काढा नाक मान कर बूच ।-संत ई-मा पु० [ देश० ] ऊमरी और नार मादि की जाति का एक तुलसी०, पृ० १६४। प्रकार का पौधा जो दिल्ली से सिंघ तक और दक्षिण भारत मे पाया जाता है। इसे जलाकर सज्जीखार निकालते बूचड़~सता पुं० [० बुचर ] वह जो पशुप्रो या माग प्रारि बेचने के लिये उनकी हत्या करता है । कमाई। हैं। कोडा। यो०-यूचड़खाना । चूक'-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] माजूफल की जाति का एक प्रकार का बड़ा घुक्ष । सलसी। बूचड़खाना-संशा पुं० [हिं० घूच+फा पाना ] ग्रह म्यान जहाँ विशेप-यह पूर्वी हिमालय में ५००० से ९००० फुट की ऊंचाई पशुषों की हत्या होती है । कसाईबाड़ा। तक पाया जाता है और प्रायः ७५ से १०० हाथ ऊंचा होता बूचा-वि० [सं० शुस (= विभाग कारना)] १. जिसके कान कटे हों। है। इसकी लकडी यदि सूखे स्थान में रहे तो बहुत दिनो तक कनगटा। २. जिसके ऐसे पंग पट गए हो, प्रयवा न हो खराब नहीं होती। इस लकडी से संभे. चौखटे और धरने जिनके कारण वह फुरुप जान पटता हो । जैसे,—पत्तियां आदि बनाई जाती है। दाजिलिंग के पास पास के जंगलों झड़ जाने के कारण यह पेट चूना मा नुम होता है। ३. जिसके मे इससे बढकर उपयोगी और कोई वृक्ष फदाचित् ही होता साथ कोई सौंदर्य घटानेवाला उपकरण न हो। नंगा। है। वहां इसकी पत्तियों से चमडा भी सिझाया जाता है। वृक-संज्ञा पुं० [हिं० बकोटा ] हाथ के पंजों की यह स्थिति जो चूची- -वि० [हिं० यूचा ] वह भेड़ जिसके जान बाहर निकले हुए उंगलियों को विना हथेली से लगाए किसी वस्तु को पकडने, न हों बल्कि जिसके कान के स्थान में केवल छोटा सा छेद ही उठाने या लेने के समय होती है। चंगुल । वकोटा । हो । गुजरी। उ०-पुनि संघान बहु प्रानहिं परसहिं कहि बूक । फरे चूजन-संसा पुं० [फा० नूजन ] चंदर । (कनंदर )। संवार गुसाई जहाँ परी कछु चूक । —जायसी (शब्द०)। चूजना-क्रि० स० [?] छिरना । घोखा देना। उ०—पाला यूजी वृा-संग पुं० [सं० घुक्क ( = पक्ष), बैं०, बुक ] कलेजा। भगति है लोहर बागा माहि । परगट पेटाइत य तह हृदय । वक्ष। सत काहे को जाहिं । -दादू (शब्द०)। वूकना-क्रि० स० [सं० वृक्ण ( = तोका फोटा हुया)] १. सिल बूजीना-संश पु० [ फ्रा० चूज़ीनह ] बंदर । मर्कट यो०] । पौर घट्टे की सहायता से किसी चीज को महीन पीसना । वूम, वूमि- 2-संशा सी० [मं० पुद्धि ] १. समझ । बुद्धि । प्रकल । पीसकर चूर्ण करना। ज्ञान । उ०-राजै सरव कथा पाही, सोहिल सागर जूझि । संयो० कि०-डालना।-देना। प्रो पुनि उपजी चेत कछु. हिए परा जनु बूझिा-चिमा, २. अपने को अधिक योग्य प्रमाणित करने के लिये गढ़ गढ़कर पृ०१८४ । २. पहेती। वातें करना । जैसे, कानून वूकना, अंग्रेजी वूकना। घूमन-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० चूझना ] दे० 'बूम' वृका-संज्ञा पुं॰ [सं० बुक्कन ( = बुझा ) ] दे० 'क' । वूमना-कि० स० [हिं० घूझ ( = बुधि)] १. समझना । जानना । वृका-संशा पु० [ देश० ] वह भुमि जो नदी के हटने पर निकलती जैसे,—किसी के मन की बात बुझना। पहेली बूझना । है। गंगबरार। उ०—(क) मुझे मत बूझ प्यारे अपना दुशमन । कोई दुशमन हुआ है अपनी जाँ का।-कविता फो०, भा० ४, पृ० २८ । वृकार-संज्ञा पुं० [हिं० ] [ श्री० बूकी ] दे० 'युक्का' । उ०-भरि भरि फेंटनि बूका बंदनि यूदि परे सब ग्वाला। जुवति जूथ (ख) मैंर अबूझो बूझिया, पूरी पड़ी बलाइ ।-कवीर ग्र०, मे जुवति भेप तहाँ राजत है नंदलाला ।-छीत०, पृ० २२ । पृ० ५१ । २. पूछना। प्रश्न करना । गा-संज्ञा पु० [ देश० ] भूसा। चूझनील-संज्ञा सी० [हिं० घूझना] वूझने की क्रिया। पूछ ताछ । उ०-जब प्रति सखिन बूझनी लई। तब हंसि कुंवरि गोद बूच'-संशा पु० [ अं० च ] बड़ी मेख । (लश० लुठि गई।-नंद० ग्र०, पृ० १२६ । मुहा०-यूच मारना= गोले या गोली प्रादि की मार से होने- वूझवारा-वि० [हिं० घूझ + वारा (प्रत्य॰)] समझदार । उ०- वाले छेद को डाट लगाकर बंद करना । बीघा वै गइ वाझ बूझवारे नहि दीसत । दौरयो प्रावत बूच २-सज्ञा पुं० [पं० इंच (= गुच्छा)] कपड़े, कागज या चमड़े फाल को जकरि दसनन पीसत ।-व्रज००, पृ० १५४ । आदि का वह टुकड़ा जो बंदूक आदि में गोली या बारूद को -संज्ञा पुं० [स० विटप, हिं० चूटा] १. चने का हरा पौधा । २. बूट'-