पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३०२

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चने का हरा हरा दाना । ३. वृक्ष । पेड़ पौधा । उ०-सीता बूढ़-संज्ञा पुं० [ प्रा० चूठ ( = वृष्टि ) ? ] १. लाल रंग। २. राम लषन निवास बास मुनिन को सिद्धि साधु साधक विवेक बीर बहूटी। उ०-रस कैसे रुख ससिमुखो हंसि हसि बूट सों।-तुलसी (शब्द०) । बोलत बैन । गूढ़ मान मन क्यो रहै भए बूढ रंग नैन ।- बूट'-सञ्ज्ञा पुं० [अं॰] एक प्रकार का अंग्रेजो ढंग का जूता जिससे बिहारी ( शब्द )! पैर के गट्ट तक ढंक जाते है । बूढा'-संज्ञा पु० [सं० वृद्ध ] [ स्त्री० बूढी ] दे० 'बुड्ढा' । बूटनि-मंज्ञा स्त्री० [हिं० बहूदी] बोर बहूटी नाम का कीडा। बूढ़ा २-सज्ञा सी० [हिं० बुड्ढा ] वुड्ढी स्त्री। उ०-पाछी भूमि हरी हरी पाछी चूटनि की रेंगनि काम बूत-सज्ञा पुं॰ [सं० वृत्त ( = परिधि) ] दे॰ 'वृता' । उ०-(क) करोरनि । हरिदास (शब्द॰) । ' को चढ़ि नाघे समुद ए, है काकर अस व्रत ।-जायसो ग्र०, बूटा-संज्ञा पु० [सं० विटप ] १. छोटा वृक्ष । पोषा । २. एक छोटा पृ० ५६ । (ख) कहिन रहे दोउ राजा होही। ऐसे बूत दसे पौधा जो पश्चिमी हिमालय मे गढ़वाल से अफगानिस्तान तक सब तोही ।-जायसी (शब्द॰) । पाया जाता है । ३. फूलों या वृक्षों घादि के प्राकार के चिह्न बुता-सज्ञा पु० [ स० वृत्त या विच ] बल । पराक्रम । शक्ति । जो कपड़ो या दीवारो प्रादि पर अनेक प्रकार से (जैस, उ०-देव कृपा कजरा हग की पलकै न उठ जिहि सो निज सूत, रेशम, रग आदि की सहायता से ) बनाए जाते हैं। बूते ।-सेवक (शब्द०)। बड़ी बूटी। बूथड़ी -सज्ञा स्त्री० [देश॰] प्राकृति । चेहरा । सूरत । शकल। यौ०-वेलबूटा = किसी चीज पर बनाए हुए फूल पत्ते । (दलाल)। बूटेदार = जिसपर बूटे बने हों। बूना-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] चनार नाम का वृक्ष । दे० 'चनार' । बूटी -संज्ञा स्त्री० [हिं० बूटा का स्त्री० रूप] १. वनस्पति । वनौषधि । बूम'-सज्ञा पु० [अं०] १. वह लट्ठा जो जहाजो के पाल के नीचे जड़ी। २. भांग । भंग । (मुहा० के लिये दे० 'भग') । ३. एक के भाग में, उसको फैलाए रखने के लिये लगाया जाता है। पौधा जिसके रेशे से रस्सियां बनाई जाती हैं । ऊदल | २. वहुत से लट्ठों प्रादि को बांधकर तैयार की हुई वह रोक गुलवादला। ४. फूलो के छोटे चिह्न जो कपड़ों घादि पर जो नदी में लकड़ियो प्रादि को बह जाने से रोकने के लिये बनाए जाते हैं । छोटा बूटा। ५. खेलने के ताश के पत्तों पर लगाई जाती है। ३. लट्ठों या तारो भादि से बनाई हुई बनी हुई टिक्की। वह रोक जो बदरों में इसलिये लगा दी जाती है जिसमें बूठना - कि० अ० [सं० वृष्ट, प्रा० बुट्ठ (=बरसा हुपा)] शत्रु के जहाज अदर न पा सकें। ४. वह लट्ठा जो नदी आदि में नावों को छिछले पानी से बचाने और ठीक मार्ग वरसना । वर्षा होना। उ०-(क) मारवणी प्रिय संभलउ नयणे नीर ।-ढोला०, दू० १८ । (ख) कवीर यह दिखलाने के लिये गाड़ा रहता है। (लश०)। चूठा मन कत गया जो मन होता काल्हि । ईगरि बूठा मेह ज्यू, बूम -संज्ञा पुं० [फा०] १. धरती। पृथ्वी । २. उलूक । उल्लू । गया निवाणां चालि ।-कवीर ग्रं॰, पृ० ३० । उ.-बुलबुल गुजरा जाए नशी बूम हुप्रा है।-कबोर मं०, पृ० १४१ । चूड़, बूड़ना-संज्ञा स्त्री० [ अनु० बुड़बुड़ (= डूबने का शब्द)] जल की इतनी गहराई जिसमें प्रादमी डूब सके । डुबाव । बूर-संज्ञा पु० [देश॰] [ सज्ञा स्त्री० बूरि ] १. पश्चिम भारत में होनेवाली एक प्रकार की घास । खोई। उ०-थल मध्याह जल वूड़ना-क्रि० स० [स० वुड़ ( = डूबना) ] १. डूबना । निमज्जित होना । गर्क होना। उ०-(क) बूढे सकल समाज चढ़े जो बाहिरी, काइ लबू की बूरि । मीठा बोला घण सहा, सज्जण प्रथमहि मोह बस । -तुलसी (शब्द०) । (ख) बूड़त भव मूक्या दूरि ढीला०, दू० ३६० । निधि नाव निवाहक । निगुणिन के तुमही गुणगाहक विशेप-इस घास के खाने से गौनों, भैसों, धादि का दूध और रघुराज सिंह (शब्द०)। २. लीन होना । निमग्न होना । गूढ दूसरे पशुप्रो का बल बहुत बढ़ जाता है। इसमें एक प्रकार विचार करना। उ०-दशा गुनि गौरि की बिलोकि गेह की गघ होती है और यदि गोएं प्रादि इसे अधिक खाती वारे लो एरी सखी रोग ठहराय राख्यो सबहू । बूड़ि बूडि हैं तो उनके दूध में भी वही गध पा जाती है। यह दो प्रकार चैदन सों एक ते सरस एक हार नाहिं उपचार करत हैं की होती है। एक सफेद और दूसरी लाल । यह सुखाकर अवहूँ।-रघुनाथ (शब्द०)। १०-१५ वर्षो तक रखी जा सकती है। सयो०-क्रि०-जाना । २. प्राटे प्रादि का चोकर । चून की कराई। बूटा-संज्ञा पुं० [हिं० दयना ] वर्षा प्रादि के कारण होनेवाली वूरना-क्रि० प्र० [हिं० ] दे० 'डूबना' । जल की वाढ। बूरना-क्रि० स० [हिं० पूरना] १. किसी कार्य को पूरा करना । क्रि० प्र०-श्राना। २. बटना। वरना । बूढ़-वि० [सं० वृद्ध, प्रा० वुड्ढ ] दे० 'बुढा' । उ०-बूढ भएषि वूरा-प्रज्ञा पु० [हिं० भूरा ] १. कच्ची चीनी जो भूरे रंग की होती न त मरतेउ तोही ।-मानस, ६।४८ । है। शक्कर । २. साफ की हुई चीनी । उ०-और चांवर