पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३०८

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बखुद धगुनाह पनजान। वेखुद-वि० [ फा० बेखुद ] अात्मविस्मृत । बेसुष । बेहोश । उ० वेगरी २-क्रि० वि० [हिं०] दे० 'बगैर' । वेखुद इस दौर में हैं सब 'हातिम'। इन दिनों क्या शराब बेगरजा-वि० [फा० बे+प्र० गरज ] जिसे कोई गरज या परवा सस्ती है। कविता को०, भा० ४, पृ० ४५ । न हो। वेखुदी -सज्ञा स्त्री॰ [ फा० बेखुदी ] पात्मविस्मृति । उ०—जबतक वेगरज-क्रि० वि० बिना किसी मतलब के । निष्प्रयोजन । व्यर्थ । तुम किसी के हो नहीं गए तबतक, बेखुदी का मीठा मीठा बेगरजी-संज्ञा स्त्री० [फा० वे+प्र० गरज +ई (प्रत्य०) ] बेगरज मजा मिलने का नहीं।-पोद्दार ममि०प्र०, पृ० १८४ । होने का भाव । वेखुर –ञ्चा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का पक्षी जिसका शिकार वेगला--वि० [हिं बेघर या बेदो) फ़ा० + ग़लह ] १. गृहहीन । किया जाता है। निराश्रय। भावारा। २. दोगला। जारज। उ०-बाइका विशेष-यह काश्मीर, नेपाल और बंगाल में पाया जाता है। बनेंगी रोड़ा बेगले फिरेंगे छोरे । पस्सो उठा को मांटी डालेंगे पर अक्टूबर में पहाड़ पर से उतरकर सम भूमि पर पा नाउ पो तेरे। -दक्खिनी०, पृ० २६७ । जाता है । यह केवल फल फूल ही खाता है और प्रायः नदियों वेगवती-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक वर्णाघ वृत जिसके विषम पादों में या जलाशयों के किनारे छोटे छोटे झुडों में रहता है। ३ सगण, १ गुरु और सम पादों में ३ भगण और २ गुरु वेखौफ-वि० [फा० बेखौफ ] जिसे खौफ या भय न हो । निर्भय । होते हैं। निडर। बेगसर-मुना पुं० [सं० वेगसर] बेसर । अश्वतर । खच्चर । (डि०) । बेग-संशा पुं० [सं० वेग] दे० 'वेग' । उ०-लागे जब बेगी जाइ बेगानगी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] वेगाना होने का भाव । परायापन । परयो सिंधु तीर, चाहै जब नीर लिये ठाढ़े देन धोई है।- प्रियादास (शब्द॰) । वेगाना-वि० [फा० बेग़ान ] [ लो० बेगानी ] १. जो अपना वेग-संज्ञा पु० [अ० घेग] कपड़े, चमड़े या कागज आदि लचीले न हो । गैर । दूसरा। पराया। उ०—एक वेर मायके के लिये बेगानी हो जाने पर स्त्री के लिये फिर मायका अपना पदार्थो का कोई ऐसा थैला जिसमें चीजें रखी जाती हों नही हो सकता ।-भस्मावृत०, पृ० ५३ । २. नावाकिफ । और जिसका मुह ऊपर से बंद किया जा सकता हो । थैला । वेग-संज्ञा पुं० [ तु.] अमीर । सरदार । (नाम के अंत में वेगार-शा स्त्री॰ [फा०] १. वह काम जो राज्य के कर्मचारी आदि अथवा गांव के जमीदार आदि छोटी जाति के और वेगड़ी-सचा पुं० [ देश०] १. हीरा काटनेवाला । हीरातराश । गरीब प्रादमियों से बलपूर्वक लेते हैं और जिसके बदले २. नगीना बनानेवाला । हक्काक । में उन को बहुत ही कम पुरस्कार मिलता है अथवा कुछ भी वेगतो-संज्ञा स्त्री० [देश] एक प्रकार की मछली जो बंगाल की पुरस्कार नहीं मिलता। बिना मजदूरी का जबरदस्ती लिया खाड़ी में पाई जाती है। यह प्रायः ४ हाथ लबी होती है हुमा काम । और इसका मांस स्वादिष्ट होता है। क्रि० प्र०-देना।-लेना। वेगम' संज्ञा स्त्री॰ [ तु०] १. राशी । रानी । राजपत्नी । २. ताश के पत्तों में से एक जिसपर एक स्त्री या रानी का चित्र बना २. वह काम जो चित्त लगाकर न किया जाय। वह काम बो होता है। यह पता केवल एक और बादशाह से छोटा बेमन से किया जाय। और बाकी सबसे बड़ा समझा जाता है । मुहा०—बेगार टालना=बिना चित्त लगाए कोई काम करना । वेगम-वि० [फा० बेग़म ] चितारहित । पीछा छुड़ाने के लिये किसी काम को जैसे तैसे पूरा करना । वेगमी'—वि० [ तु० बेगम+ई (प्रत्य॰)] १. वेगम संबंधी । २. वेगारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा०] वह मजदूर जिससे बिना मजदुरी दिए उत्तम । उम्दा । बढ़िया। जबरदस्ती काम लिया जाय। बेगार मे काम करने वाला वेगमी-सज्ञा पुं० १. एक प्रकार का बढ़िया कपूरी पान । २. एक पादमी। उ०-पट दर्शन पाखंड छानवे, पकरि किए प्रकार का पनीर जिसमें नमक कम होता है। ३. एक प्रकार वेगारी।-घरम०, पृ०, ६२। का बढ़िया चावल जो पंजाब में होता है। वेगि-क्रि० वि० [सं० वेग] १. जल्दी से। शीघ्रतापूर्वक । २. वेगर–ज्ञा पुं॰ [ ? ] उड़द या मूग का कुछ मोटा और रवेदार चटपट । फौरन । तुरंत । उ०-जाहु वेगि संकट अति आटा जिससे प्राय: मगदल या बड़ा प्रादि बनाते हैं । भ्राता । लछिमन विहंसि कहा सुनु माता ।—मानस, २२ । विशेप-यह कच्चा और पक्का दो प्रकार का होता है । कच्चा वेगुना-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'वैगन' । वह कहलाता है जो कच्चे मूग या उड़द को पीसकर बनाया वेगुनाह-वि० [फा०] [ संज्ञा स्त्री० बेगुनाही ] १. जिसने कोई जाता है, और पक्का वह कहलाता है जो भुने हुए मूंग या गुनाह न किया हो। जिसने कोई पाप न किया हो। २. पदद को पीसने से बनता है। जिसने कोई अपराध व किया हो। वेकसूर । निर्दोष । प्रयुक्त)। .. . he 1