पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३१२

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बेतकल्लुफी बेदंव वेतकल्लुफी-संज्ञा स्त्री० [ फ़ा० बेतकल्लुफ़ी ] बेतकल्लुफ होने का वेताबी-संज्ञा स्त्री० [फा०] १. कमजोरी। दुर्बलता । २. वेचैनी । भाव । सरलता। सादगी। घबराहट । व्याकुलता। चेतकसोर-वि० [फा० बे+प्र. तकसीर ] जिसने कोई अपराध वेतार-वि० [हिं० वे + तार ] बिना तार का । जिसमें तार न हो। न किया हो। निरपराध । निर्दोष । बेगुनाह । यो०-तार का तार =विद्युत् की सहायता से भेजा हुअा वह वेतना-क्रि० अ० [सं० विद्>वेत्ति, वेतन ] प्रतीत होना। जान समाचार जो साधारण तार की सहायता के बिना भेजा गया हो। पडना । उ०-प्रापनी सुंदरता को गुमान गहै सुखदान सु औरहि वेति है। -रघुनाथ (शब्द०)। विशेष-प्राजकल तार द्वारा समाचार भेजने में यह उन्नति हुई है कि समाचार भेजने के स्थान से समाचार पहुंचने वेतमीज-वि० [फा० बे+प्र. तमीज़ ] जिसे शकर या तमीज न के स्थान तक तार के खंभों की कोई प्रावश्यकता नहीं हो । जिसको भद्रता का पाचरण करना न पाता हो । बेहूदा । होतो । केवल दोनों स्थानों पर दो विद्युत्यंत्र होते हैं जिनकी उजड्डु । फूहड। सहायता से एक स्थान का समाचार दूसरे स्थान तक वेतरतीब-वि० [फा०] बिना सिलसिला या क्रम का । बिना तार की सहायता के ही पहुंच जाता है। इसी प्रकार वेतरतीबी-मंज्ञा स्त्री॰ [फा०] विशृंखलता। क्रमहीनता । प्रस्त प्राएं हुए समाचार को बिना तार का तार या वेतार का व्यस्तता । उ०-हरएक काम में बेतरतीबी, झंझलाहट, तार कहते हैं। जल्दीबाजी, लापरवाही या दृष्टिकोण का रूखापन - बेताल'-संज्ञा पुं० [सं० वेताल ] बैताल । दे० 'वेताल'। ठंढा०, पृ०७५ । वेताल-संज्ञा पुं० [म० वेतालिक ] भाठ । बंदी। उ०—सभा मध्य वेतरह'—क्रि० वि० [फा० बे+प्र० तरह ] १. बुरी तरह से । बेताल ताहि समय सो पढ़ि उठ्यो । केशव बुद्धि बिशाल, अनुचित रूप से । जैसे,—तुम तो वेतरह बिगड गए । २. सुंदर सूरो भूप सो। केशव ( शब्द०)। असाधारण रूप से । विलक्षण ढंग से | जैसे,—यह पेड बेताल - वि० [हिं० बे + सं० ताल ] गायन वादन में ताल से चूक वेतरह बढ़ रहा है। जानेवाला । संगीत में ताल का ध्यान न रखनेवाला । वेवरह-वि० बहुत अधिक । बहुत ज्यादा । जैसे,—वह वेतरह वेताला-वि० [हिं० बेताल ] दे० 'वेताल'३ । मोटा है। वेतरोका'–वि० [फा० बे+अ० तरीकह ] जो तरीके और नियम वेतास्सुबी-मंशा सी० [फ़ा॰ बे + प्र० तग्रस्सुब ] निष्पक्षता । उदारता । उ०-धार्मिक सहिष्णुता और बेतास्सुधी में भी के विस्त हो । बेकायदा । अनुचित । ये जीवित प्रतीक थे।-प्रेम और गोर्की, पृ० २५३ । वेतरीका-त्रि० वि० बिना ठीक तरीके के । अनुचित रूप से । बेतुका-वि० [फा० थे+हिं० तुका ] १. जिसमें सामंजस्य न हो वेतवा-संज्ञा स्त्री० [सं० वेत्रवती ] बुदेलखंड की एक नदी जो भूपाल के ताल से निकलकर जमुना में मिलती है। मुहा०-घेतुको उड़ाना = दे० 'बेतुकी हाकना' । उ०-बेतुकी वेतहाश-कि० वि० [फा० बेतहाशा ] दे० 'वेतहाशा' । उड़ाना खुब जानते हैं । जवाब नहीं सूझता ।—फिसाना०, वेतहाशा-क्रि० वि० [फा० वे+4. तहाशह ] १. बहुत अधिक भा० १, पृ० १० । बेतुकी हाँकना = वेढगी बातें कहना । तेजी से । बहुत शीघ्रता से । जैसे,—घोड़ा बेतहाशा भागा। ऐसी बात कहना जिसका कोई सिर पैर न हो। २. बहुत घबराकर । ३. बिना सोचे समझे। बैसे, तुम २. जो अवसर कुपवमर का ध्यान न रखता हो। बेढंगा। तो हर एक काम इसी तरह बेतहाशा कर बैठते हो। जैसे,—वह वड़ा बेतुका है, उसको मुह नहीं लगाना चाहिए। वेता-वि० [ स० वेत्ता ] जानकार । ज्ञानी । वेत्ता । उ०—पहुची मुहा-बेतुकी बकना = अनवसर की बात करना । वात विद्या के बेता। बाहु को भ्रम भया सकेता।-कवीर श्राका क्या वेतुकी वकता है ।—फिसाना०, भा० ३, पृ० १४ । वी० ( शिशु० ), पृ० २०६ । (ख) सकल सिम्रत जिती वेतुकाछंद-पंज्ञा पु० [हिं० बेतुका+सं० छन्द ] अमिताक्षर छद । सत मति कहे तिती हैं इनही परमगति परम बेता।- ऐसा छंद जिसके तुगत प्रापस में न मिलते हों। रे० बानी, पृ० १६ । वेतौर-क्रि० वि० [फा० वे + प्र० तौर ] बुरी तरह से । वेढंगेपन वेताज-वि० [फा०] मुकुटविहीन । अधिकाररहित । क्रि० प्र०—करना ।—होना । वेतौर-वि० जिसका तौर तरीका ठीक न हो। वेढंगा। यौ०–बेतान का राजा = बिना अधिकार के सब कुछ करने में वेत्ता-वि० [सं० वेत्ता] दे० 'वेता'। उ०—शंका उपजत इहि तन समर्थ । सर्वजनप्रिय एवं समर्थ । ७०-मब मास्टर प्रमूराज चाहि । जैसे सब को वेत्ता प्राहि । -नंद० प्र०, पृ० ३११ । बेताज का राजा था।-किन्नर०, पृ० २। वेदंत-वि० [स० वेद + अन्त या सं० विद्वत् ] वेदपारग या वेताब --वि० [ फ़ा० ] १. जिसमें ताब या ताकत न हो। दुर्बल । वेदज्ञ । विद्वान् । उ०-ग्रह नव सुदान विधि विद्ध दीन । कमजोर । २. जो बेचैन हो। विकत । व्याकुल । बेदत विप्र मभिपेक कीन।-पृ० रा०, ८.। 1 बेमेल । उ०- से । वेतरह।