पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३१३

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निर्दय । वेद' वेदारी वेद-शा पुं० [फा० बेंत ] दे० 'बेंत'। चिताएं चटक रही रावी तट पर, थे अभी हजारों भटक वेद-संज्ञा पु० [ स० वेद ] दे० 'वेद'। रहे वेघर बेदर ।-सूत०, पृ० ४४ । वेदरी-वि० [हिं०] दे० 'विदरी' । वेद- ज्ञा स्त्री॰ [ वेदना ? ] पोड़ा। वेदना । उ०-मंत्र दवा अरु प्राप सौ वेढब मिटै न वेद |-ब्रज० ०, पृ० ६६ । वेदरेग-वि० फा० वेदरेग ] वेबड़क । निस्संकोच । मागा पीछा न सोचनेवाला। वेदक-संज्ञा पुं० [ म० वेद + क (प्रत्य॰)] वेद को माननेवाला-हिंदू वेदर्द-० [फा०] जिसके हृदय में किसी के प्रति मोह या दया (डि०)। वेदखल-० [फा० दखल ] जिसका दखल, कब्जा या अधिकार न हो। जो किसी की व्यथा को न समझे। कठोगहृदय । न हो । अधिकारच्युत । जैसे-डिगरी होते ही वह तुम्हें वेदखल कर देगा। इसका व्यवहार केवल स्थावर संपत्ति वेदर्दी'-संज्ञा स्त्री० [फा०] वेदर्द होने का भाव । निर्दयता । के लिये ही होता है)। वेरहमी। फठोरता। येदख़ली-सशा स्त्री० [फा० बोदखली ] दखल या वजे का हटाया वेदो-वि० [ फ० वेदर्द ] दे० 'वेददं'। जाना अथवा न होना । अधिकार में न रहने का भाव । वेदलैला-पंछा पुं० [फा० ] एक प्रकार का पौधा जिसमें सुदर ( इसका व्यवहार केवल स्थावर संपत्ति के लिये होता है।) फूल लगते हैं। वेदन-रज्ञा पु० [सः वेदन ] दे० 'वेदन' । उ०—हे सारस तुम वेदहन-वि० [हिं० वेदहत ] निर्भय । निडर । 30-एक बेमेल नीकें बिछुरन वेदन जानी-भारतेंदु ग्रं०, भा० १, पृ० ४३८ । वेदहल लो से, मेल कर तेल को मिला फल क्या ।-नुभते०, पृ० ६५। वेदनरोग-शा पु० [ म० वेदना+रोग ] पशुप्रों का एक प्रकार का छूतवाला भोषण ज्वर जिसमें रोगी पशु बहुत सुस्त होकर वेदाल-संग प्री० [सं० विदा ] दे० विदा' । उ०—जो प्रभू कॉरने लगता है। उसका सारा शरीर गरम पौर लाल हो हम पए वेदा लेब ।-विद्यापति, पृ० ३७५ । जाता है । उसे भूख चिल्कुल नही और प्यास बहुत अधिक बेदाग-वि० [फा० वेदाग] १. जिसमें कोई दाग या धब्बा न हो। लगती है और पाखाने के साथ प्रांव निकलती है । साफ । २. जिसमें कोई ऐव न हो। निर्दोष । शुद्ध । ३. वेदनि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० वेदना ] वेदना का भाव या क्रिया । उ० जिसने कोई अपराध न किया हो । निपराध । बेकसूर । मैं वेदनि कासनि पांखू, हरि बिन जिव न रहै कस राखू वेदाद-संवा सी० [फा० ] अन्याय । अत्याचार [को॰] । २० बानी, पृ०५२ । चेदाना-संज्ञा पुं० [हिं० बिहीदाना या फा० वे+दानह ] एक प्रकार वेदवाफ-मज्ञा पुं॰ [ फा० वेदबाफ़ ] [ संशा सी० वेश्याफी ] वह का बढिया कावुनी प्रनार जिमका छिलका पतला होता है । व्यक्ति जो बेत की बुनाई का काम करता हो । २. बिहीदाना नामक फल का बीज जिसे पानी में भिगाने से वेदम-वि० [फा०] १. जिसमें दम या जान न हो । मृतक । मुरदा । लुपाब निकलता है। लोग प्रायः इसका शबंत बनाकर पोते २ जिसकी जीवनी शक्ति बहुत घट गई हो। मृतप्राय । हैं । यह ठढा और बलकारक माना जाता है । ३. एक प्रकार प्रधमग। ३. जो काम देने योग्य न रह गया हो। जर्जर । का जरिएक जिसे अंचरवारी या कश्मल भी कहते हैं । बोदा। दारुहलदी। चित्रा। वि० दे० 'मंघरबारी'। ४. एक प्रकार वेदमजनूँ-सज्ञा पुं॰ [ फा०] एक प्रकार का वृक्ष जिसकी शाखाएं का मीठा छोटा शहतूत । ५. एक प्रकार की छोटे दाने की बहुत झुकी हुई रहती हैं और जो इसी कारण बहुत मुरझाया मीठी वुदिया जो बहुत रसदार होती है । और ठिठुरा हुअा जान पडता है । इसकी छाल और फलों वेदाना-वि० [हिं० वे (प्रत्य०)+फा० दाना (= बुद्धिमान) ] प्रादि का व्यवहार औषध मे होता है। जो दाना या समझदार न हो । मूर्ख । बेवकूफ । उ०- वेदमल, वेदमाल-सज्ञा पु० [ देश० ] लकड़ी की वह तरुती जिसपर वेदाना से होत है दाना एक किनार । वेदाना नहिं प्रादरै दाना एक अनार ।-स० सप्तक, पृ० १७६ । तेल लगाकर सिकलीगर लोग अपना मस्किला नामक प्रौजार रगडकर चमकाते हैं। वेदाम' - प्रज्ञा पुं॰ [ फा० वादाम ] दे॰ 'बादाम' । वेदमुश्क-संज्ञा पुं० [फा० ] एक प्रकार का वृक्ष जो पच्छिम भारत वेदाम-क्रि० वि० [हिं० बे+दाम ] विना दाम का। जिसका मे और विशेषत: पंजाब में अधिकता से होता है। कुछ मूल्य न दिया गया हो । विशेप-इसमे एक प्रकार के बहुत ही कोमल और सुगंधित वेदार-वि० [फा०] १ तेज । २. चौकन्ना । जागरूक । फूल लगते हैं जिनके अर्क का व्यवहार प्रौषध के रूप मे यौ०-वेदारयस्त = भाग्यशाली । जिसकी किस्मत जागरूक हो । होता है । यह अकं बहुत ही ठढा और चित्त को प्रसन्न करने बेदारमरज = तेज दिमागवाला। तीव्रबुद्धि । वेदारबास% वाला माना जाता है। जागरूक रहो । जागते रहो । (पहरेदार)। चेदर-वि० [फा०] जिसका ठिकाना न हो। उ०-थीं पभी 'वेदारी-संज्ञा स्त्री॰ [ फा०] चौकन्ना रहना । जागरूकता [को०] । .