पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३१५

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घेनवर ३५५४ रपये किसी पर अवलंबित न हो। जिसे किसी की चाह न हो। वेनिसाफ-संज्ञा पुं॰ [फा० बेइन्साप. ] भन्याय । उ-जानी हती उ०-मानू अल्ला एक है और न दूजा कोय। यारी वह पवई तो हिंगे हमारी सुपि जापै फरि बिना सुधि वेनिसाफ सब खल्क कू बेनयाज हैं सोय ।-दक्खिनी०, पृ० ३८४ । लेसो रे।-अज००, पृ० १३५ । वेनवर:-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बिनौला'। वेनी-संवा ती० [ स० वेणी ] १. रियों की चोटी । उ०—मूदी वेनवा-वि० [फा० ] दरिद्र । दीन । कंगाल (को०] । न रासत प्राप्ति अली यह गूंदी गोपाल के हाथ की बनी। बेनवाई -तज्ञा स्त्री॰ [फा०] दरिद्रता। विवशता । अकिंचनता। -मतिराम (पध्द०) । २. गंगा, सरस्वती और यमना या उ.-सवब वेनवाई के जंगल तजे फफीर के सबब मुशहर संगम । त्रिवेणी। उ०-नन प्रयाग घरयन विच मिली। कूतजे ।-दक्खिनी०, पृ० ३४६ । बेनी भई गो गेमावली |जायमी (गब्द०)। ३. frail वे सीव-वि० [हिं० वे+प्र. नसब ] जिसका नसीब अच्छा न के विमी परले में लगी हुई एक छोटी लपढ़ी गे दूसरे पल्ले हो । प्रभागा । बदकिस्मत । फो शुलने से रोकती है । उ०-चोगिन गनी दिगो निसेनी । घहि सोल्यो कपाट की बेनी1-गज (ब्द०)। वेनसेढ-सच्चा पु० [अं० विंडसेल ] जहाज में टाट प्रादि का बना हुमा नल के प्राकार का वह बडा थैला जिसकी सहायता से विशेष-जिस पल्ले में येनी लगी होती है, जब तक वह न जहाज के नीचे के भागो में ऊपर की ताजी हवा पहुंचाई सुले तब तक पूमरा परजा नहीं गुन सकता। इमलिये निमी जाता है । (लश०)। एकपल्ले में यह बेनी लगाकर उसी में मिटफनी या निकटी लगा देते हैं जिससे दोनो पलने बंद हो जाते हैं । वेनाt'-सज्ञा पु० [सं० वेणु ] १. बांस का बना हुआ हाथ से झलने का छोटा पखा। उ०-जहवा प्रांधी चलै वेना को वर्न ४. एक प्रकार वा घान जो भादों के अंत या बुंधार के प्रारंभ बतावै ।-पलटू०, पृ० ७४ । २. खस । उशीर । उ०- मे तैयार हो जाता है। किन्हेसि अगर कस्तुरी बेना। कीन्हेसि भीमसेनि अरु चेना। बेनीयाना-शा पुं० [हिं० ] दे० 'बेटी' । (गहना)। —जायसी (शब्द०)। ३. बाँस । वेनु-संश पुं० [म० येग ] १. दे० 'वेणु' । २. दी। मुरली । वेना-मज्ञा पुं॰ [सं० वेणी ] एक गहना जो माथे पर बेंदी के बीच ३. वास । उ०-नु फे यस भई बसुरी जो अनर्थ करे तो में पहना जाता है । उ०-वेना सिर फूलहि को देखत मन अचज यहा है -गारतेंदु म, भा० २, ५० ८२१ । भूल्यो। रूप की लता में मनों एक फूल फूल्यो ।-भारतेंदु चेनुली /-संशः सी० [ देश ० ] जाते या चक्ली मे वह छोटी सी ग्र०, भा॰ २, पृ० ४४० । लकड़ी जो पिल्ले फे टपर रखी जाती है और जिसके दोनों वेनागा-कि० वि० [फा० वे+० नागह ] विना नागा डाले । सिरों पर जोती रहती है। निरतर । लगातार । नित्य । चेनूर-वि० [फा०] प्रकाश रहित । ज्योतिहीन । निष्प्रभ । उ०- वेनाम-वि० [फा० वे+सं० नाम ] बिना नाम का। नामहीन । चढा दार पर जव शेख मंसूर । हुए उस वक्त सूरज चद गुमनाम। वेनूर । -कवीर पं०, पृ० ६०६ । वेनिमून@-वि० [फा० + नमूना ] अद्वितीय । मनुपम । उ० नोटीg'-० [हि० बिनौला ] पास के फूल की तरह पीले वेनिमून वै सबके पारा । माखिर काको करो दिदारा । का। फपासी। -कबीर (शब्द०)। वेनौटी २-शा पु० एक प्रकार का रंग जो कपास के फूल के रंग का वेनियन-सञ्चा पुं० [हिं० वनिया ] वह व्यापारी या महाजन जो सा हलका पीला होता है । कपासी। यूरोपीय कोठीवालों ( हाउसवालों) को आवश्यकतानुसार वेनौरा-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे॰ 'बिनौला' । धन की सहायता देता है। बेनौरी-संशा गो० [हिं० विनौला ] अाकाश से वर्षा के नाय विशेप-'वेनियन' धनी बंगाली और मारवाड़ी होते हैं। गिरनेवाले छोटे छोटे पत्पर जो प्रायः बिनौले के पासर के हाउसवालों से इनकी लिखा पढ़ी रहती है कि जब जितने होते हैं। प्रोला । पत्थर । बिनौरी। रुपए फी आवश्यकता होगी देना पड़ेगा। एक. हाउस या कोठी का एक ही वेनियन होता है। लाम होने पर वेनियन वेपंत-व० [सं० /वेप का वर्तमान कृवंत प्र० ५० ] कंपमान । को भी हिस्सा मिलता है पौर घाटा होने पर उसे हानि भी कांपता हुपा। उ०-सीतल सलिल कंठ परजंत। तहे ठाढ़ो सहनी पड़ती है। पर घर वेपंत ।-नंद ग्रं०, पृ० २६६ । वेनियाँ-ज्ञा स्त्री० [सं० व्यजन, प्रा० विश्रण ] बेना। पखी। वेपनाह-वि० [फा०] शरणविहीन । प्राश्रयरहित [को०] । उ०-जहँ प्रभु बैसि सिंहासन प्रासन डांसव हो। तहवा वेपर-वि० [ फा० वेपर ] पंखरहित । विना पंस का। वेनिया डोल इवों, बड़ सुख पाइब हो।-संतबानी०, भा० मुहा०-वेपर की उड़ाना-प्रसंभव और अविश्वसनीय बात २, पृ० १२७ । २. वह लकड़ी जो फिवाड़ के दूसरे पल्ले कहना। उ०-दूसरे ने फहा अच्छी वेपर की उड़ाई।- को रोकने के लिये लगाई जाती है। वि० दे० 'बेनी' । फिसाना०, भा० ३, पृ० ५०७ । बेपर की वार-प्रसंभव