पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाव। थेरोजगार यौ०-बेरोकटोक निर्विघ्नतापूर्वक । बिना किसी रूकावट या बेला-संश पु० [सं० मल्ल या मल्ली ] वह स्थान जहाँ शक्कर अड़चन के। मादि तैयार होती है। वेरोजगार-वि० [फा० बेरोज़गार ] जिसके हाथ में कोई रोजगार बेल-सज्ञा पुं॰ [ पं० ] कपड़े या कागज प्रादि की वह बड़ी गठरी न हो। जिसके पास करने को फोई काम धंधा न हो। जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिये बनाई जाती वेरोजगारी-नंज्ञा स्त्री० [फा० बेरोजगारी ] वेरोजगार होने का है। गाँठ। बल'-समा रमा० [सं० बल्ली ] १. वनस्पतिशारम के यनुसार वे वेरौनक-वि० [फा० वेरौनक] जिसपर रौनक न हो । जिसकी शोभा छोटे कोमल पौधे जिनमे याह या मोटे तने नहीं होते धोर न रह गई हो। उदास । जो अपने बल पर ऊपर की भोर उठकर नहीं बढ़ सकते । क्रि० प्र०-छाना । —होना । वल्ली। लता । लतर । वेरौनको-पञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० वे नकी ] वेरौनक होने का भाव । विशप-साधारणत: वेल दो प्रकार की होती है। एक वह जो अपने उत्पन्न होने के स्थान से प्रारा पाम के पृथ्वीतन अथवा वेर्रा-- रज्ञा पु० [देश॰] १. मिले हुए जो घोर चने का पाटा । और किसी तल पर दूर तक फैलती हुई चली जाती है । २. कोई का फल । जैसे, पुम्हढे की बेल । दूसरी वह जो पास पाम के वृक्षो घरांबरार-संज्ञा पुं० [हिं० वेर्रा (= जौ और चना) +फा वरार अथवा इसी काम के लिये लगाए गए बोसो प्रादि के सहारे (= लादा हुमा) ] पन की उगाही । उनके चारो पोर घूमती हुई ऊपर की पोर जाती है। जैसे, बेलदा-वि० [फा० यलंद ] १. ऊंचा। उ०—(क) पद वेलद परे सुरपेचा, मालती, प्रादि । साधारणतः वेलों के तने बहुत ही जो पाऊं। तो लोको घर लोक न ठाऊ' ।-विश्राम कोमल और पतले होते हैं और ऊपर की मोर अपने माप (शब्द०)। (ख) रघुराज ब्याह होत ह गई वेतद प्रसि सड़े नहीं रह सकते। मिथिला निवासिन मिताई नई कीन्हें हैं। -रघुराज (शब्द०)। २, जो बुरी तरह परास्त या विफलमनोरथ हुमा हो। मुहा०-बेल मैदे चढ़ना = किसी कार्य का घंत तक ठीक ठीक पूरा उतरना । मारंभ किए हुए कार्य में पूरी सफलता होना । (व्यंग्य)। २. संतान । घंश। बेलंव-सज्ञा पु० [ स० विलम्ब ] दे० 'विलंब' । बेल-सज्ञा पु० [सं० यित्व ] मझोले प्राकार का एक प्रसिद्ध कंटीला मुहा०-वेल यदना=वंशवृद्धि होना । पुत्र पौत्र प्रादि होना। घृक्ष जो प्रायः सारे भारत में पाया जाता है। श्रीफल । ३. विवाह प्रादि में कुछ विशिष्ट अवसरों पर संबंधियो और विरादरीवालों की प्रोर से हज्जामों, गानेवातियों और इसी प्रकार के पौर नेगियों को मिलने वाला थोड़ा थोड़ा धन । विशेष-इसकी लकड़ी भारी और मजबूत होती है। और प्रायः खेती के औजार बनाने पोर इमारत के काम में पाती है। क्रि० प्र०-देना।—पड़ना । इससे ऊख पेरने के कोल्हू और मूसल प्रादि भी अच्छे बनते ४. कपटे या दीवार प्रादि पर एक पंक्ति में बनी हुई पून हैं। इसकी ताजी गीली लकड़ी चंदन की तरह पवित्र मानी पतिमादि जो देखने में वेल के समान जान पडती हों। जाती है और उसे चीरने से एक प्रकार की सुगंध निकलती ५. रेशमी या मखमली फीने मादि पर जरदोजी मादिसे है। इसमें सफेद रंग के सुगंधित फूल भी होते हैं। इसकी चनी हुई इसी प्रकार की फूल पचिया जो प्रायः पहनने के पत्तियां एक सीके में तीन तीन ( एक सामने और दो दोनों कपड़ों पर टांकी जाती हैं। भोर ) होती हैं जिन्हे हिंदू लोग महादेव जी पर चढ़ाते हैं । यो०--बेलबूटा । इसमें कैथ से मिलता जुलता एक प्रकार का गोल फल भी क्रि० प्र०-टोंकना ।—लगाना । लगता है जिसके ऊपर का छिलका बहुत कड़ा होता है और ६. नाव लेने का दौड़ । वल्ली । ७. घोड़ो का एक रोग जिसमें जिसके अंदर गूदा और बीज होते है। पक्के फल का गूदा उनका पैर नीचे से ऊपर तक सूज जाता है। बदनाम । वहुत मीठा होता है और साधारणतः खाने या शरबत मादि गुमनाम । बनाने के काम में माता है। फल पौषध के काम में भी बेज"- -प्रज्ञा पु० [ फा० बेलचह, ] १. एक प्रकार की कुदाली जिससे पाता है और उसके कच्चे गूदे का मुरब्बा भी बनता है। मजदूरे जमीन खोदते हैं। वैद्यक मे इसे मधुर, कसैला, गरम, हदय को हितकारी, रुचि यौ०-वेलदार। फारक, दीपन, ग्राही, रूखा, पित्तकारक, पाचक, मोर वाताति- २. सड़क मादि बनाने के लिये चुने प्रादि से जमीन पर डाली सार तथा ज्वरनाशक माना है। हुई लकीर जो केवल चिह्न के रूप मे प्रथवा सीमा निर्धारित पर्या०-वित्व । महाकपित्थ । गोहरीतकी । पूतिवात । मंगल्प । फरने के लिये होती है। विशिख | मालूर । महाफल । शल्य। शैलपत्र । पञनीप्ठ । क्रि० प्र०-ढालना। निपत्र । गंधपत्र । लक्ष्मीफल । गंधफल । शियगु म । सदा ३. एक प्रकार का लंबा खुरपा। फल ।सत्यफल । वेल-संचा पुं० [सं० मल्लिक ] १. दे० 'बेजा' । २. बेले का बिल्व।