पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३३४

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बोट । जहाज। बीझना धौता क्रि० प्र०-पड़ना। बोट-संशा स्त्री मं०] १. नाव । नौका। २. स्टीमर । प्रगिन- ५. किसी कार्य को करने में होनेवाला श्रम, कष्ट या व्यय । मिहनत, हैरानी, खचं या तकलीफ जो किसी काम को बोटा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० वृन्त, वोएट ( = डाल, लट्ठा) ] १. लकडी करने में हो। कार्यभार । जैसे,—(क) तुम सब कामों का का काटा हुप्रा मोटा टुण्डा जो लबाई में हाथ दो हाथ बोझ हमारे सिर पर डाल देते हो । (ख) गृहस्थी का सारा लगभग हो, वडा न हो। कुंदा। २. काटा हुना टुकडा । खड । बोझ उसके सिर पर है। (ग) वे इस काम में बहुत रुपए बोटी-संज्ञा स्त्री० [हिं० घोटा ] मास का छोटा टुकड़ा । दे चुके हैं, अब उनपर और बोझ न डालो। (घ) उनपर मुहा०-चोटी बोटी काटना = तलवार, छुरी आदि से शरीर ऋण का बोझ न डालो। को काटकर खंड खंड करना । बोटी बोटी फड़कना = (१) क्रि० प्र०-उठाना।-उतारना ।-डालना ।-पड़ना । बहुत अधिक नटखट होना । (२) उत्साह या उमग से भर ६. वह व्यक्ति या वस्तु जिसके संबंध में कोई ऐसी बात करनी उठना । स्फूर्ति से भर उठना। हो जो कठिन जान पड़े। जैसे,—यह लड़का तुम्हें बोझ हो, बोड़ी-सज्ञा स्त्री० [३०] सिर पर पहनने का एक प्राभूषण । तो, मैं इसे अपने यहां ले जाकर रखूगा। ७. घास, लकड़ी थोड़र--संज्ञा स्त्री० दे० [हि० बौर ] 'वार', 'वल्ली' । प्रादि का उतना ढेर जितना एक आदमी लेकर चल सके। षोडरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बोंदी ] तोंदी। नाभि । तुदकूपिका । गट्ठर । जैसे,-बोझ भर से ज्यादा लकड़ी नही है। ८. उतना ढेर जितना वैल, घोडे, गाड़ी आदि पर लद सके। बोडल-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] पक्षी जिसे जेबर भी कहते हैं। इसकी जैसे, अब गाड़ी का पूरा बोझ हो गया, अब मत लादो । चोच पर एक सींग सा होता है। यह एक प्रकार का पहाड़ी महोख है। मुहा०—योझ उटना = किसी कठिन बात का हो सकना । किसी बोड़ा-संज्ञा पुं॰ [ देश०] प्रजगर । बड़ा साँप । कठिन कार्य का भार लिया जा सकना । बोझ उठाना = किसी कठिन कार्य का भार ऊपर लेना। कोई ऐसी वात बोड़ा-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की पतली लंबी फली जिसकी करने का नियम करना जिसमें बहुत मेहनत, खर्च, हैरानी, तरकारी होती है । लोबिया । वजरबट्ट । या तकलीफ हो। जैसे, गृहस्थी का घोझ उठाना; खर्च का बोड़ो'-संज्ञा स्त्री० [?] १. दमलो । दमड़ी कौड़ी । २. अत्यंत अल्प बोझ उठाना । बोझ उतरना = किसी काम से छुट्टी पाना । धन । उ०-जांचे को नरेस देस देस को कलेस करै, देहे तो चिता या खटके की बात दूर होना । जी हलका होना । प्रसन्न ह्र बड़ी बड़ाई वोड़ियै ।-तुलसी (शब्द०)। जैसे,-प्राज उसका रुपया दे दिया, मानो बड़ा भारी बोक घोड़ो २-सज्ञा स्त्री० [हि० ] दे० 'बौड़ो', 'बौड़ी'। उतर गया। बोझ उतारना = (१) किसी कठिन काम से योत--संज्ञा पुं॰ पुं० [ देश० ] घोड़ों की एक जाति । उ०-कोइ छुटकारा देना । चिंता या खटक की बात दूर करना । (२) अरबी जंगली पहारी। विरचेचक पंपा कंधारी। कोई कोई ऐसा काम कर डालना जिससे चिंता या खटका मिट काबुली कंबोज कोइ कच्छी । वोत नेमना मुजी लच्छी।- जाय । जैसे,—धीरे धीरे महाजन का रुपया देकर बोझ विश्राम (शब्द०)। उतार दो (३) किसी काम को बिना मन लगाए यों ही किसी प्रकार समाप्त कर देना । बेगार डालना।' षोतक-संज्ञा पुं० [ देश० ] पान की पहले वर्ष की खेती । वोमना-क्रि० स० [हिं० बोझ ] बोझ के सहित करना । लादना । बोतल-संज्ञा स्त्री० [अं० घॉटल ] १. कांच का वह लबी गरदन किसी नाव या गाड़ी पर माल रखना । उ०—(क) नैया का गहरा वरतन जिसमें द्रव पदार्थ रखा जाता है। २. मद्य । मेरी तनक सी बोझी पाथर भार | -गिरधरराय (शब्द०) मदिरा। शराब । (लाक्ष.)। उ०-जैसी जब मौज हुई, बोतल का सेवन करते थे।-शराबी, पृ० ११ ॥ (ख) अवसर पड़े तो पर्वत बोझ तहूँ न होवे भारी। धन सतगुरु यह जुगत बताई. तिनकी मैं बलिहारी । मलूक०, मुहा०-धोतल चढ़ाना-मद्य पीना । योतल पर बोतल चढ़ाना= पृ०३. बहुत मद्य पीना। बोझल-वि० [हिं० बोझ ] दे० 'बोझिल' । यौ०-बोतलवासिनी, बोतलवाहिनी = मदिरा । शराब । योमा-शा पुं० [हिं० योम ] १. दे० 'योझ' । २. संदूक की तरह योतलिया -वि० [हिं० बोतल ] बोतल में रंग सा । कालापन की तंग कोटी जिसमें रात के बोरे इसलिये ऊपर रखे जाते हैं जिसमें शीरा या जूसी निकल जाय । बोतलिया-पंज्ञा स्त्री० [हिं०] छोटी बोतल । योमाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बोमना+प्राई (प्रत्य॰)] १. वोझने या वोतली-वि०, संज्ञा स्त्री० [हिं० बोतल का अल्पा० स्त्री० ] लादने का काम । २. बोझने की मजदूरी । दे० 'बोतलिया। घोमिल-वि० [हिं० थोझ+इल (प्रत्य॰)] [ वि० सी० योझोली] बोता-संज्ञा पुं० [सं० पोत ] केंट का बच्चा जिसपर अभी सवारी वजनी | भारी। वजनदार । गुरु । न होती हो। लिये हरा।