पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३३५

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पोक्कों बोधिवृक्ष बोदका-संज्ञा स्त्री॰ [ रूसी वोदका ] रूस में बनी एक प्रकार की परमोध बोधक पुरान । रामाइन सुन भारथ निदान :- मदिरा। पृ० रा०, ११३५२। बोदकी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] कुसुम या बरे की एक जाति जिसमें योधकर-चा पु० [ स०] १. वैतालिक | बंदीजन । २. शिक्षक । काटे नहीं होते और जिसके केवल फूल रंगाई के काम में उपदेशक । ३. बोध करानेवाला या जगानेवाला व्यक्ति को०] । प्राते हैं । बीजो से तेल नहीं निकाला जाता। पोधगम्य-वि० [सं०] समझ में प्राने योग्य । बोदरा--संज्ञा स्त्री० [ देश० ] लचीली छड़ी। बोधगया-संचा पु० [हिं० बोध+गया ] विहार प्रदेश के गया जिले बोदर-सञ्ज्ञा पुं० [ देश० ] ताल या जलाशय के किनारे सिंचाई का का वह स्थान जहाँ बुद्ध को पीपल के नीचे सबोघि प्राप्त हुई पानी चढ़ाने के लिये बना हुमा स्थान जिसमें कुछ नीचे दो थी । उ०-वह वोधगया भी एक से अधिक वार हो माया मादमी इधर उधर खड़े होकर टोकरे आदि से उलीचकर था।-किन्नर०,पृ० ४० । पानी ऊपर गिराते रहते हैं। बोधन-संशा पुं० [सं०] [ वोधनीय, बोध्य, घोधित ] १. वेदन । बोदा -वि० [सं० अयोध] [वि॰ स्त्री० बोदी ] १. जिसकी बुद्धि ज्ञापन । जताना । सूचित करना । २. जगाना । ३. उद्दीपन । तीव्र न हो। मूर्ख । गावदी। उ०-~-गुरु के पथ चले सो मग्नि या दीपक को प्रज्वलित करना । (दिया) जगाना । ४, जोधा । गुरु के पथ चले का बोदा ।-सहजो०, पृ० ५। २. गध दीप देना। दोपदान | ५. मंत्र जगाना । ६. बुध ग्रह (को०)। जो तत्पर बुद्धि का न हो । ३. सुस्त । मटर । ४. जो दृढ़ या बोधना-क्रि० स० [ स० वोधन ] १. बोध देना। समझाना कड़ा न हो। फुसफुसा। उ०पहाड़ पानी के बरेले सहते बुझाना। कुछ कह सुनकर सतुष्ट या शात करना । उ०- सहते वोदे हो गए हैं। सैर०, पृ० ३६ । सूर श्याम को जसुदा वोषति गगन चिरेया उड़त दिसावति ।- घोदापन-सञ्ज्ञा पु० [हिं० योदा+पन (प्रत्य॰)] १. बुद्धि को सूर (शब्द०)। २. ज्ञान देना । जताना । प्रतत्परता । अक्ल का तेज न होना । २. मूर्खता । नासमझी । पोधनो-संक्षा नी० [सं०] १. प्रबोधिनी एकादशी । २. पिप्पली । घोदारा-सञ्ज्ञा पुं० [फा० बू ( = गंध) दार ] सुगंध से युक्त, इत्र । ३. समझ । ज्ञान । जानकारी (को०)। उ०-प्राणी हिलवी पादरस, वोह यमनी बोदार।-चाको योधनीय-वि० [स० ] ज्ञातम्य । बोषयोग्य । २. जानने लायक । ग्रं, भा० ३, पू० ५७ । ज्ञात कराने योग्य । घोदुला-संज्ञा पुं॰ [देश॰] मझोले भाकार का एक वृक्ष जो प्रवष, बोधयिता-संशा पुं० [सं० बोधयित ] १. मध्यापक । बुदेलखंड और बंगाल मे पाया जाता है। उपदेशक । २. जगानेवाला। विशेष-इसकी पचियां टहनियों के सिरों पर गुच्छों के रूप में घोघवासर-संज्ञा पुं० [सं०] प्रबोधिनी एकादशी। देवोत्यान होती हैं और पशुओं के चारे के काम में प्राती हैं । इसकी एकादशी को०] । लकड़ी बहुत मुलायम होती है। बोधान'–वि० [सं०] वुद्धिमान । चतुर । विन [को०] । योद्धव्य-वि० [स०] १. जानने योग्य । समझने योग्य । शेय । २. बोधान-मंचा पु० १. देवगुरु । वृहस्पति । २. विज्ञ या चतुर बोध्य । उ०-जब घोद्धव्य प्रसंगानुसार पाक्षेप कर लेता है व्यक्ति (को०] । तभी उसे शब्दबोष होता है ।-शैली०, पृ०७३ । मोधायन-संज्ञा पुं० [सं०] ब्रह्मसूत्रवृत्ति के रचयिता एक प्राचार्य घोद्धा-वि० [सं० षोधु ] जाननेवाला । वूझनेवाला [को०] । का नाम | २. एक श्रौतसूत्र के रचयिता माचार्य । बोद्धा-संज्ञा पुं० [सं०] न्यायशास्त्र का विद्वान् । नैयायिक [को॰] । घोधि 1-पुं० [सं०] १. समाधिभेद । २. पीपल का पेड़ । ३. कौमा। काक (को०)। ४. बुद्ध का एक नाम (को०)। बोध-संज्ञा पुं० [सं०] १. भ्रम या अज्ञान का प्रभाव । ज्ञान । जान- बोधित-वि० [सं०] जिसे वोघ या ज्ञान कराया गया हो। बुझाया, कारी । जानने का भाव । २. तसल्ली । धीरज । संतोष । उ०- जोध नाम तब जब मन को निरोध होइ, बोध को विचारि जताया या समझाया हुमा [को०] । सोध प्रातमा को करिए।-सुदर० प्र०, भा॰ २, पृ.६१०। बोधितरु-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'बोधिद्रुम' क्रि० प्र०-देना ।—होना । योधितव्य-वि० [सं०] ज्ञापन करने योग्य [को०] । यौ०-बोधकर । योधगम्य । बोधवासर । बोधिहम-संशा पुं० [सं०] गया में स्थित पीपल का वह पेड़ जिसके घोधक-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. ज्ञान करानेवाला । ज्ञापक । जताने नीचे बुद्ध भगवान् ने संबोषि (बुद्धत्व) प्राप्त की थी। वाला । २. शृगार रस के हावों में से एक हाव जिसमें किसी विशेष-बौद्धों के धर्मग्रंथों के अनुसार इस वृक्ष का कल्पांत संकेत या क्रिया द्वारा एक दूसरे को अपना मनोगत भाव में भी नाश नहीं होता और इसी के नीचे बुद्धगण सदा जताता है। उ०—निरखि रहे निधि बन तरफ नागर संबोधि प्राप्त करते हैं। नदकुमार | तोरि हीर को हार तिय लगी बगारन बार । बोधिमंडल-संज्ञा पु० [सं० पोधिमण्डल ] वह स्थान जहाँ बुद्ध दे पदमाकर (शब्द० ) । ३. जासूस । गुप्तचर । संबोषि प्राप्त की थी। बोधगया। बोधक०२--वि० [सं० बौद्ध] बौद्ध संबंषो । बौदों का । ७० बोधिवृक्ष-संज्ञा पुं० सं०] दे० 'बोषितरु' । शिक्षक।