पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३३६

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बोधिसत्व ३४४५ योरिया प्रभु योधिसत्व--संज्ञा पुं० [सं० योधिसत्य ] वह जो बुद्धत्व प्राप्त करने पोर'-गमा ९० [हिं० पोरना ] दाने को मिला। दुनाव । पैग,- का अधिकारी हो पर बुद्ध न हो पाया हो । एफ बोर में रग प्रधा नहीं चलेगा, यई दोरदो। विशेप-बोधिसत्व फी तीन अवस्थाएं होती है, जिन्हें पार करने कि.प्र०-देना। 30-अपने मन संगोप मारत निरंग पर बुद्धत्व की प्राप्ति होती है। चौर ६६।-कबीर, भा०३, पृ०४७ । योधी-वि० [सं० बोधिन् ] [वि० सी० बोधिनी ] १. वोपयुक्त । पोर' ---- पु० [सं० व ल] १. चादी का सोने या घना हुमा जाननेवाला। ज्ञाता। २. बनाने या बतानेवाला । समझाने गोस पोर फंगूरेदार घुध को मामूपों में एरं यत्रादि वाला [को०] । में गूपा जाता है । जैसे, पाजेय के घोर । 60-हिने रेशम के पोधोदय-संज्ञा पुं० [सं०] ज्ञान का जागरण । वोध या समझ छोर, शिजित है घोर बोर।-पन्ना, पृ०५१। २. गुबज होना। के पाकार का सिर पर पहनने का गहना जिममे मीनाकारी योध्य-वि० [म०] १. वोध के योग्य । जानने योग्य । २. जताने या का काम होता है और रत्नादि भी जड़े हुए होने हैं । इसे सूचित करने या समझाने के योग्य [को०] । 'वीजु' भी कहते हैं। घोनस-संशा पुं० [अ०] १. यह धन या रकम जो किसी को उसके वोर3-मंना पु० गट्ठा । सह। दिन । प्राप्य के अतिरिक्त दी जाय । २. वह धन जो किसी कर्मचारी चोर-शा पुं० [सं० पदर ] वेर का फन । बदरी फल | 20- को उसके पारिश्रमिक या वेतन के अतिरिक्त दिया जाय । उमगे भीलणी प्राना, ऐठो चोर प्ररोगे प्राप।-पु. पुरस्कार । पारितोषिक । बखशीस । ३. यह अतिरिक्त लाभ रू०, पृ० १४२ । या मुनाफा जो संमिलित पूजी से चलनेवाली कंपनी के थोरका-संज्ञा पुं० [हिं० चोरना ] १, दायात । २. मिट्टी की शेयरहोल्डरों या हिस्सेदारों को दिया जाय । दयात जिसमें लड़के सहिया घोलकर पाते हैं। योना'-क्रि० स० [सं० वपन, प्रा० ययण, ववण] १. वीज को जमने पोरना-कि० स० [सं०, हिं० ग्रुड यूटना] १. जल या किसो के लिये जुते सेत या भुरभुरी की हुई जमीन में छितराना । मोर द्रव पदार्थ में निमग्न मार देना। पानी या पानी मी किसी दाने या फल के बीज को इसलिये मिट्टी में डालना चीज में इस प्रकार ढालना कि चारों पोर पानी ही पानी जिसमे उसमें से अंकुर फूटे और पौधा उत्पन्न हो । हो जाय । दुवाना। २. हुवागार भिगोना। पानी मादि में संयोकिल-सालना-देना ।-लेना । शलकर तर करना । जैसे-कई बार चोरने में रंग पठेगा। २. विखराना । छितराना। इधर उधर ढालना । उ-जान उ०-मानो मजीठ को मा हुरी इव पोर ते चादनी बोरति बूझकर घोखा खाना है यह फोन पाकर । आम कहाँ से प्रापति ।-नृपसंभु (पाद०)। ५. प संगित करना। खानोगे जब बोते गए बबूर ।-भारतेंदु ग्र, भा० २, यदनाम कर देना । जैसे, युल बोरना, नाम दोरना । - पृ०५५२। (क) तामु दूत हं हम कुल वोरा । -रानमो (सन्द०)। योना-संज्ञा पुं० [सं० बुला ] एक प्रकार की वनस्पति । धूसर. (स) गावहिं पचरा मृट पावहिं चौरहिं सपा कमाई च्छदा । सफेद वोना। हो।-गुलाल०, पृ०२२ । ४. युक्त या मावेष्टित करना । योग देना या मिलाना । उ०-- पट छोरि यानी मृदुम पोपार-नंश पु० [सं० व्यापार ] पाणिज्य । व्यापार। उ.- बोलेउ जुगुति समेत ।-तुममी (पद०)। ५. पुने रंग बोपार तो यहाँ का बहुत किया अब वहाँ का भी कुछ सौदा में हुशार रंगना । उ०-लागो उधै ललिता पहिरावन माह कर लो।-राम धम०, पृ. ६४ | को कनुती फेसर बोरी।-पद्माकर (शब्द०)। योवला-स्त्री० पु० [ देश०] १. चाज रे फा भूसा । २. रेत । पाल । बोरसी-संदा पी० [हिं० गोरसी ] मिट्टी का वरतन जिममें भाग योपा-संज्ञा पुं० [ देश०] [पी० बोबी] १. स्तन । पन । सूची । रसार जलाते हैं। पंगीठी। उ०-शिशु उदास हजब तजि बोया। तब दो मिति योरा'- - [पुट (= दोना या पन) Jटार +7 यना लागत रोया ।-निश्चल (शब्द०)। २. घर का साज धेला जिसमे पनाज पते है. विशेषत: पी से जाने के लिये। सामान । पंगढ़ रांगड़। ३. गट्ठर | गठरी। उ०-जीन भयो यौ०-चौरायंदी। तह धोबी सोयी। ग्यासन पीठ लियो द्रुत योगी।-गर्ग- संहिता (शब्द०)। पोरा-मंग पुं० [हिं० पोर ] यादी या सोने से दना छोटा सुधरू । देवोर। पोयी-संशा दी० [ देश. ] पुनाग या सुलनाना पा की जाति का एक सदाबहार पेष्ट जो दक्षिण में पश्चिमी पाट की पहाड़ियों योरिफा-हि० पोरना ] ना मिट्टी का बग्नुम जिगर्ने पर मिलने के मिया मीनार योगा। मे होता है। योरिया- योय:- वो [फा०] १. गंध । वास । २. मुगंध । ३०- (घोराटामना । यस पारीस की पुष सो उठत पतर को योग । भयो योहि मारिया --0.12.] मटाई । दिनु । भाभी याहा उठी मचानक रोप-पदमाकर (शम्द०)। चौ.-कोरिया प्रमा।