पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३३७

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बोरी TO फलक। २३७६ घोलनिहारा मुहा०-घोरिया उठाना या बोरिया बँधना उटाना चलने की चायन में माई हुई वस्तुप्रो के संबंध में स्त्रियां बोलती हैं)। तैयारी करना। प्रस्थान करना । 30-जलसा वरख्वास्त । जैसे,-सी बोल पाए थे, चार चार लह वाट दिए । नाच रंग वद, चहल पहल मौकूफ । तवलियो ने वोरिया पोला २-राश झी [हिं० बोल ] कथन । वार्ता । कथा | उ०- बंधना उठाया ।—फिसाना०, भा० १, पृ० १० । (क) ससनेही सय तणां कलि मा रहिया बोल ।- ढोला०, बोरी--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० योरा ] टाट की छोटी थैली। छोटा दू० ६७५ । (ख) घी को बोल नूमानीयो बाप ।-वी. बोरा । उ०-सूर श्याम विश्न बदी जन देत रतन कचन की रासो०, पृ. २४ । बोरी।-सूर (शब्द॰) । योलर-संक्षा पु० [देश॰] एक प्रकार का सुगंधित गोंद जो स्वाद मुहा०-बोरो बाँधना=चलने को तैयारी करना । उ०—जानउँ मे फह प्रा होता है। यह गुगल की जाति के एफ पेड़ से लाई काहु ठगोरी। खन पुकार खन वधि बोरी ।—जायसी निकलता है जो अरब में होता है। (शब्द ) घोलकर-संचा पु० [ देश० ] जलभ्रमण । (दि०) । बोरो-संज्ञा पुं० [हिं० योरना ] एक प्रकार का मोटा धान जो नदी बोलचाल-सश स्त्री० [हिं० पोल+ चाल ] १. यातचीत । के किनारे की सीड़ मे बोया जाता है। कथनोपकथन । बातो का कहना सुनना। २. मेलमिलाप । बोरोबॉस-संशा पु० [ देश० बोरो+हिं० बोस ] एक प्रकार का यांस परस्पर सद्भाव । जैसे,-माज कल उन दोनो में बोलचाल जो पूर्वी बंगाल में होता है। नही है। ३. छाट। ४. चलती मापा । रोजमर्रा या बोर्ड-संज्ञा पु० [ ] १. किसी स्थायी कार्य के लिये बनी हुई नित्य के पयहार की बोली । जैसे-वे भघिय तर बोलचाल समिति । २. माल के मामलो के फैसले या प्रवष के लिये की भाषा का व्यवहार करते हैं। बनी हुई समिति या कमेटी। पोलता-संग पु० [हिं० बोलना] १. शान कराने और बोलने- यौ.-बोर्ड आफ डाइरेक्टर्स = सचालक समिति या मंडल । वाला तत्व । बारमा 1 30-बोलते को जान से पहचान से। ५. कागज की मोटी दफ्ती। ४. लकड़ी का तरुता । काष्ठ. बोलता जो कुछ फहे सो मान ले। -(शब्द०) । २. जीवन- तत्व । प्राण । उ०-यह घोलता फित गया काया नगरी वोर्डर-Hश पुं० [सं०] वह विद्यार्थी जो बोडिंग हाउस मे तजि के । दश दरवाजे ज्यों के त्यों ही कौन राइ गयो भजि रहता हो। क। -चरण पानी, पृ० ३३२ । ३. प्रथंयुक्त पान्द बोलनेर वोर्डिग हाउस-संशा पुं० [अं॰] वह घर जो विद्यार्थियों के रहने वाला प्राणी । मनुष्य । ४. हुक्का (फपीर)। के लिये बना हो। छात्रावास । घोलता-वि० १. सूब बोलनेवाला । वाक्पटु । वाचाल । २. प्राण- पोलंगी बाँस-मज्ञा पुं० [ देश० वोलगी+हि० बोस ] एक प्रकार युक्त । जीवनी शक्तिवाला। ३. बोलनेवाला । पात करने- का वास जो उड़ीमा और चटगांव की पोर होता है। यह वाला । जैसे, बोलता सिनेमा, बोलती तसवीर । घरों में होता है और टोकरे बनाने के काम मे पाता है। बोलती- पी० [हिं० योलना ] बोलने की शक्ति। वाक् । बोल'-संश पु० [हिं० बोलना ] १. मनुष्य के मुह से उच्चारण वाणी। किया हुआ शब्द या वाक्य । वचन । वाणी । २. ताना । मुहा०-चोलती बंद होना = लज्जा. शमं या अपराधी होने की व्यग्य । लगती हुई वात । स्थिति में होना । दुःखादि के प्राधिक्य से बोल न पाना । योलती मारी जाना=बोलने की शक्ति न रह जाना । मुह कि प्र०-सुनाना। से शब्द न निकलना। मुहा०-बोल मारना = ताना देना । व्यंग्य वचन कहना । बोलनहार, बोलनहारा-संशा पुं० [हिं० बोलना+हार (= ३ बाजों का बंधा या गठा हुअा शब्द । जैसे, तबले का बोल, (= वाला) सितार का बोल । ४. कही हुई वात या किया हुअा वादा । (प्रत्य०) ] शुद्ध प्रात्मा । बोलता । कथन या प्रतिज्ञा । जैसे, उसके बोल का कोई मोल नहीं। बोलनिहारा-संज्ञा पुं० [हिं० ] ३० - 'वोलनहार'। उ०-पराधीन मुहा०-(किसी का ) योलवाला रहना = (१) बात की साख देव हौं स्वाधीन गुसाई। योलनिहारे सो फरे वलि विनय कि भाई।-तुलसी (शब्द॰) । बनी रहना । बात स्थिर रहना । वात का मान होते जाना। (२) मान मर्यादा का बना रहना। भाग्य या प्रताप का संयो० कि०-उठना । उ०-माप ही कुंज के भीतर पैठि वना रहना । घोल बाला होना = (१) बात को साख होना । सुधारि के सुदर सेज बिछाई। बात बनाय सटा के नटा बात का माना जाना या प्रादर होना । (२) मान मर्यादा करि, माधो सो प्राय के राधा मिलाई। पाली कहा कहीं को बढती होना । प्रताप या भाग्य बहकर होना। (३) हाँसी की बात विदूषक जैसी करी निठुराई । जाय रह्यो प्रसिद्धि होना। कीति होना । (किसी का ) बोल रहना = पिछवारे उतै पुनि चोलि उठ्यो वृषभानु की नाई। साख रहना । मान मर्यादा रहना । इज्जत रहना । -(शब्द०)। ५. गीत का टुकड़ा । अंतरा । १. अदद । संख्या (विशेषतः यो-योलना चालना बात चीत करना ।