पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३४५

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व्यातना ब्यौरा जैसे-तुमने अपनी न्योत तो कर ली; और किसी को चाहे खंड | जैसे,—(क) सब १०० रुपया खर्च हुप्रा जिसका व्योरा मिले या न मिले। नीचे लिखा है । (ख) उसके स्वरूप में इस प्रकार तल्लीन क्रि० प्र०—करना ।-वैटाना । होना पड़ता है। एक एक ब्योरे पर ध्यान जाय |-रस०, पृ० १२०॥ मुहा-व्योंत खाना= ठीक इंतजाम वैठना । व्यवस्था अनुकूल पड़ना । व्योंत फैलना= दे० 'व्योंत खाना'। यौ०-व्योरेवार । ७. प्राप्त सामग्री से कार्य के साधन की व्यवस्था काम पूरा ३. वृत्त । वृत्तांत । हाल । समाचार । उ०-उसने वहाँ का उतारने का हिसाब किताब । जैसे,-~+पड़ा तो कम है, पूरे सब व्योरा कह सुनाया ।- लल्लू (शब्द०)। की ब्योंत कैसे करें? व्योसाय-संज्ञा पुं॰ [सं० व्यवसाय ] दे० 'व्यवसाप' । मुहा०-व्योत खाना = पूरा हिसाब किताब वैठना । व्योत व्योहर-संज्ञा पुं० [सं० व्यवहार ] लेन देन का व्यापार । रुपया ऋण फैलना= दे० 'योत खाना। देना । उ०-ऋण में निपुण, व्याज लेने में निपुण, भए ८. साधन या सामग्री की सीमा। समाई। जैसे,-जहाँ तक व्योहार निपुण, स्वर्ग कौड़ी की कमाई है। -रघुराज व्योत होगा, वही तक न खर्च करेंगे । ६. पहनावा बनाने के (शब्द०)। लिये कपड़े की कार छोट । तराश । किता। मुहा०-व्योहर चलाना= सूद पर रुपया देना। महाजनी यौ-कतरब्योत। करना। व्योतना-क्रि० स० [हिं० व्योत ] १. कोई पहनावा बनाने के व्योहरा-संज्ञा पुं० [हिं० व्योहार ] सूद पर रुपया देनेवाला । हुंडी लिये कपडे को नापकर काटना छाँटना । नाप से कतरना । चलानेवाला । उ०—(क) मोटो एक थान पायो राख्यो है विछाइ के। व्योहरिया-संज्ञा पुं० [सं० 'व्यवहार ] सूद पर रुपए के लेन देन का लावो वेगि याही क्षण मन की प्रवीन जानि, लायो दुख प्रानि व्यापार करनेवाला । महाजनी करनेवाला । उ०-जेहि व्योंति लई है सियाइ के ।-प्रिया (शब्द०)। (ख) कह्यो न ब्योहरिया कर व्योहारू । का लेइ देव जो छेकिहि वारू।- काहू को कर बहुरि बहुरि परै एक ही पाईदै पग पकरि जायसी ग्रं॰, पृ०२०। पछारयो। सूर स्वामी प्रति रिस भीम की भुजा के मिस व्योहार-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'व्यवहार'। उ०-यह उरले व्योहार व्योतत वसन जिमि तासु तन फारयो।-सूर०, १०९४२१७ । दूर दुरमति घरो। कबीर श०, भा० ४, पृ०१। (ग) दरजी किते तिते धन गरजी । व्योतहिं पटु पट जिमि नृप मरजी।-गोपाल (णब्द०)। (२) मारना । काटना। व्योहारी-वि०, संज्ञा पुं० [हिं० व्योहार] दे॰ 'न्योहारा', न्यौहरिया' । मार सालना । (बाजारी)। उ.-कागद लिखै सो कागदी, की ज्योहारी जीव ।-कबीर व्योताना-क्रि० स० [हिं० व्योतना का प्रेरणा ] दरजी से नाय सा० सं०, पृ. ८५॥ के अनुसार कपड़ा कटाना। व्यौंत-संज्ञा स्त्री०, पुं० [सं० व्यवस्था ] दे० 'ब्योंत' । व्योपार-संज्ञा पुं० [स० व्यापार ] दे० 'व्यापार' । व्यातना-क्रि० स० [हिं० ब्यौत ] दे० 'व्योंतना'। उ०—ज्यों कोपारी-पज्ञा पुं० [ मं० व्यापारिन् ] दे० 'हयापारी' । कपरा दरजी गही व्यौतत काष्टहि को बढ़ई कसि पाने ।- व्योरना-क्रि० स० [, विवरण ] १. गुथे या उलझे सुदर ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ३५६ । को अलग अलग करना। उ०-वेई कर व्योरहि कहै व्योरो व्यौछारा-सज्ञा स्त्री० [हिं० बौछार ] दे० 'बौछार' । उ०-चहुँ कर न विचार । जिनही उरझो मों हियो तिनही सुरझे दिसि टपकन लागी बू'दै । व्यौछारन विजब भीजगो, द्वार वार ।-बिहारी (शब्द०)। २. सून या तागे के रूप की पिछोरी मूदै ।-नंद० ग्रं॰, पृ० ३६० । उलझी हुई वस्तुप्रो के तार तार अलग अलग करना । व्यौपारी-संज्ञा पु० [हिं० व्योपार ] दे० 'व्यापार' । उ०-मौर व्योरनि-सशा स्त्री॰ [हिं० व्योरा ] दे० 'योरनि । जो कोई वैष्णव चाकरी न करतो ता को अपनी गोठि तें व्योरा-संज्ञा पुं० [सं० विवरण, हि० व्योरना] १. किसी घटना द्रव्य दै के व्यापार करावतें।-दो सौ बावन०, भा० १, । के अंतर्गत एक एक बात का उल्लेख या कथन । विवरण । पृ०२३५। तफसील । उ०-एक लड़के ने पेड़ गिरने का ब्योरा ज्यों व्यौरन, व्यौरनिg+-संज्ञा स्त्री० [सं० विवरण, हिं० ब्योरा, ] त्यो कहा। लल्लू (शब्द०)। व्यौरा ] बालों को संवारने को क्रिया या ढंग । बाल संवारने यौ०-व्योरेवार=एक एक वात के उल्लेख के साथ । की रीति । उ०-वेई कर, न्योरनि वहै व्यौरी कौन बिचार । सविस्तर । विस्तार के साथ । जिनहीं उरभयौ मो हियो तिनही सुरझे वार ।-बिहारी २. किसी विषय का अंग प्रत्यंग। किसी एक विषय के भीतर र०, दो० ४३६। फी सारी बात । किसी बात को पूरा करनेवाला एक एक व्यौरा-संज्ञा पुं० [हिं० ब्योरा] विवरण । लेखा जोखा । हिसाब । हुए बालों