पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३४७

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ब्रह्मकन्यका ३५५६ ब्रह्मघाती स० है, रस्सी का साप प्रतीत होना विवर्त है । यह जगत् ब्रह्म ब्रह्मकन्या-संज्ञा स्त्री॰ [ ] दे॰ 'ब्रह्मकन्यका। का विवतं है, प्रतः मिथ्या या भ्रम रूप है । ब्रह्म के अतिरिक्त ब्रह्मकर्म- संज्ञा पु० [ सहकर्मन् ] १. वेदविहित वर्म । २. ब्राह्मण और कुछ सत्य नही है। और जो कुछ दिखाई पडता है, का कर्म। उसकी पारिमार्थिक सत्ता नहीं है। चैतन्य प्रात्मवस्तु के ब्रह्मकला-संज्ञा स्त्री० [स०] दाक्षायनी । अतिरिक्त प्रौर किसी वस्तु की सत्ता न स्वगत भेद के ब्रह्मकल्प-संशा पु० [ स०] १. ब्रह्मा के तुल्य । २. उतना समय रूप मे, न सजातीय भेद के रूप में और न दिजातीय भेद जितने में एक ब्रह्मा रहते हैं। के रूप में सिद्ध हो सकती है। अतः शुद्ध अद्वैत दृष्टि मे जीवात्मा ब्रह्म का अंश (स्वगत भेद ) नही है, अपने ब्रह्मकांड-संज्ञा पु० [सं० ब्रह्मकाण्ड ] वेद का वह भाग जिसमे ब्रह्म की मीमांसा की गई है और जो कर्मकांड से भिन्न है। को परिच्छिन्न और मायाविशिष्ट समझता हुप्रा ब्रह्म ज्ञानकाड । प्रध्यात्म। ही है। सत् पदार्थ केवल एक ही हो सकता है। दो सत् पदार्थ मानने से दोनों को देश या काल से परिच्छिन्न ब्रह्मकाय-संज्ञा पुं० [सं०] एक विशेष जाति के देवता । मानना पड़ेगा। नाम और रूप की उत्पत्ति का नाम ब्रह्मकाष्ठ-मज्ञा पु० [सं०] तूत का पेड़ । शहतूत । ही मृष्टि है । नाम और रूप ब्रह्म के अवयव नही, क्योकि वह ब्रह्मकुशा-संज्ञा स्त्री॰ [म० ] अजमोदा । तीनो प्रकार के भेदो से रहित है। अतः प्रीत ज्ञान ही ब्रह्मकूट-तशा पुं० [स०] १. एक पर्वत का नाम । २. ब्रह्म का सत्य ज्ञान है। दंत या नानात्व ज्ञान अज्ञान है, भ्रम ज्ञाता, ब्राह्मण को० । है। 'ब्रह्म' का सम्यक् निरूपण करनेवाले प्रादिग्रंथ उप- ब्रह्मकूर्चे-सज्ञा पु० [सं०] रजस्वला के स्पर्श या इसी प्रकार की निषद् हैं। उनमें 'नेति' 'नेति' (यह नही, यह नहीं) और अशुद्धि दूर करने के लिये एक व्रत जिसमें एक दिन कहकर ब्रह्म प्रपंचो से परे कहा गया है। 'तत्त्वमसि' निराहार रहकर दूसरे दिन पंचगव्य पिया जाता है। इस वाक्य द्वारा प्रात्मा और ब्रह्म का अभेद व्यंजित ब्रह्मकृत-रज्ञा पु० [स०] १. वह जो प्रार्थना करता है। २. किया गया है। ब्रह्मसंबंधी इस ज्ञान का प्राचीन नाम विष्णु [को०] । ब्रह्मविद्या है, जिसका उपदेश उपनिषदों में स्थान स्थान ब्रह्मकोश- पर है । पीछे ब्रह्मतत्व का व्यवस्थित रूप मे प्रतिपादन व्यास [-सञ्ज्ञा पु० [सं० ] वेद [को०] । द्वारा ब्रह्मसूत्र मे हुआ, जो वेदांत दर्शन का आधार हुआ | ब्रह्मकोशी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] अजमोदा । दे० 'वेदांत'। ब्रह्मपत्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] विष्णु पुराण के अनुसार ब्राह्मण पौर २. ईश्वर । परमात्मा । ३. क्षत्रिय से उत्पन्न एक जाति । मात्मा। चैतन्य । जैसे,—जैसा तुम्हारा ब्रह्म कहे, वैसा करो। ४. ब्राह्मण (विशेषतः ब्रह्मगति-सज्ञा स्त्री० [सं०] मुक्ति । नजात । समस्तपदों में प्राप्त ) । जैसे ब्रह्मद्रोही, ब्रह्महत्या। उ०- ब्रह्मगाँठ-संज्ञा स्त्री० [ स० ब्रह्मग्रन्थि ] जनेऊ की गांठ । चल न ब्रह्मकुल सन बरिभाई। सत्य कहौ दोउ भुजा उठाई। ब्रह्मगायत्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] वह गायत्री मंत्र जो ब्रह्मा से संवद्ध —तुलसी (शब्द॰) । ५. ब्रह्मा (मधिकतर समास में ) । है और जो गायत्री मंत्र के आधार पर रचित है (को॰] । जैसे, ब्रह्मसुता, ब्रह्मकन्यका । उ०-(क) मोर बचन सबके ब्रह्मगिरि-सज्ञा पु० [सं० ] एक पर्वत का नाम । इसे ब्रह्मकूट भी मनमाना । साधु साधु करि ब्रह्म बखाना।—मानस, १११८५ । कहते हैं। (ख) ब्रह्म रचै पुरुषोतम पोसत संकर सृष्टि संहारन हारे । ब्रह्मगीता-सज्ञा स्त्री० [सं०] ब्रह्मा का उपदेश जो इस नाम से भूषण ०, पृ० ५१॥ ६. ब्राह्मण जो मरकर प्रेत हुआ हो। महाभारत के अनुशाउन पर्व मे सकलित है। ब्राह्मण भूत । ब्रह्मराक्षस । ब्रह्मगुप्त-संज्ञा पुं० [ स०] एक प्रख्यात ज्योतिविद् जो ईसा को मुहा०-ब्रह्म लगना = किसी के ऊपर ब्राह्मण प्रेत का अधिकार छठी शती ( ई० ५६८ ) मे हुए थे (को०] । होना । उ०-तासु सुता रहि सुछबि विशाला | ताहि लग्यो ब्रह्मगोल -संज्ञा पु० [स० ] ब्रह्मांड। इक ब्रह्म कराला ।-रघुराज (शब्द०)। ब्रह्मन थि-संज्ञा स्त्री० [स० ब्रह्मग्रन्थि ] यज्ञोपवीत या जनेऊ की ७. वेद । ८. एक की संख्या। ६. फलित ज्योतिष में २७ योगों मुख्य गांठ। मे से पचीसा योग जो सब कार्यो के लिये शुभ कहा गया ब्रह्मग्रह-संज्ञा पुं० [सं०] ब्रह्मराक्षस । है। १०. संगीत में ताल के चार भेदो मे से एक (को०) । ब्रह्मघातक-सज्ञा पु० [सं०] ब्राह्मण को हत्या करनेवाला । १२. ब्राह्मणत्व (को०)। १३. प्रणव । मोंकार (को०)। १४. ब्रह्मघातिनी-वि० सी० [म० ब्रह्मधा'तन् ] १. ब्राह्मण को मारने- सत्य (को०) । १५. धन (को०)। १६. भोजन (को॰) । वाली। २. रजस्वला होने के दूसरे दिन को सज्ञा (छत के ब्रह्मकन्यका-संशा स्त्री० [स०] १. ब्रह्मा की कन्या, सरस्वती। विचार से)। २. भारंगी नाम को बूटी जो दवा के काम में माती है। ब्रह्माघातो-वि० [स० ब्रह्मघातिन् ] [ सी० ब्रह्मघातिनी ] ब्राह्मण का - ब्राह्मी बूटी। मार डालनेवाला । ब्रह्महत्या करनेवाला ।