पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३५३

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ब्रह्मा ३५६२ प्राहाण ब्रह्मा-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १. ब्रह्म के तीन सगुण रूपों में से सृष्टि की विशेष-मनु ने इस प्रदेश के परंपरागत प्राचार को सबसे श्रेष्ठ रचना करनेवाला रूप । सृष्टिकर्ता । विधाता । पितामह । माना है। विशेष-मनुस्मृति के अनुसार स्वयंभू भगवान् ने जल की ब्रह्मासन-पंज्ञा पुं० [सं०] यह प्रारान जिससे वैठकर ब्रह्म का ध्यान सृष्टि करके जो वीज फेका, उसी से ज्योतिर्मय अंड उत्पन्न किया जाता है । २. तंत्रोक्त देवपूजा में एक प्रासन । हा जिसके भीतर से ब्रह्मा का प्रादुर्भाव हुा । (दे० ब्रह्मास्त्र-संशा पु० [१०] एक प्रकार का प्रस्त्र जो मंत्र से पवित्र ब्रह्माड)। भागवत पादि पुराणो मे लिखा है कि भगवान् फरफे चलाया जाता था। यह अमोघ अस्प सप प्रस्त्रों में श्रेष्ठ विष्णु ने पहले महत्तत्व, अहकार, पंचतन्मात्रा द्वारा एकादश कहा गया है। २. एक रसौषध जो सन्निपात में दिया जाता इद्रियां और पचमहाभून इन सोलह कलापों से विशिष्ट है। यह रस पारे, गंधक, सौंगिया और फाली मिर्च के योग विराट रूप धारण किया। एकारणंव में योगनिद्रा से बनता है। मे पड़कर जब उन्होंने शयन किया, तब उनकी नामि ब्रह्मिष्ठ-वि० [सं० ] ब्रह्मा या वेद का पूर्ण ज्ञाता (को०] से जो कमल निकला उससे ब्रह्मा की उत्पति हुई। व्रह्मिप्ठा-मज्ञा स्री० [स०] दुर्गा । ब्रह्मा के चार मुख माने जाते है जिनके संबंध मे मत्स्यपुराण में यह कथा है-ब्रह्मा के शरीर से जव एक अत्यंत सुंदरी ब्रह्मो-वि० [ म० मिन् ] वेद संवधी फो०] । कन्या उत्पन्न हुई, तब वे उसपर मोहित होकर इधर उधर ब्रह्मो२-संज्ञा पुं० विष्णु [को०] । ताकने लगे। वह उनके चारों ओर घूमने लगी। जिधर वह ब्रह्मी-सक्षा श्री० १. एमपोपधि । २. एक प्रकार की मछली (को०) । जाती, उधर देखने के लिये ब्रह्मा को एक.सिर उत्पन्न होता ब्रह्मीभूत-सज्ञा पु० [सं०] १. शकराचार्य का एक नाम । २. ब्रह्म- था । इस प्रकार उन्हें चार मुह हो गए। सायुज्य । कैवल्यलाभ [को०] । ब्रह्मा के क्रमश. दस मानसपुत्र हुए-मरीचि, अत्रि, मंगिरा, ब्रह्मशय- संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु । २. कार्तिकेय या एक पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, प्रचेता, वसिष्ठ, भृगु और नारद । इन्हे नाम (को०] । प्रजापति भी कहते हैं । महाभारत में २१ प्रजापति कहे गए ब्रह्मोपदेश- सझा पु० [सं०] वेद या ब्रह्मज्ञान की शिक्षा [को॰] । हैं । दे० 'प्रजापति'। यो०-ब्रह्मोपदेशनेता = पलाश। पुराणों मे ब्रह्मा वेदों के प्रकटकर्ता कहे गए हैं । कर्मानुसार ब्रह्मोपनेता संज्ञा पुं० [सं० ब्रह्मोपनेत्] पलाश का वृक्ष [को०] । मनुष्य के शुभाशुभ फल या भाग्य को गर्भ के समय स्थिर ब्रांडी-संज्ञा पुं० [अं॰] एक प्रकार की अंगरेजी पाराव । करनेवाले ब्रह्मा माने जाते है। २. यज्ञ का एक ऋत्विक् । ३. एक प्रकार का धान जो बहुत ब्राह्म-वि. [सं०] ब्रह्म संबंधी । जैसे, ब्राह्म दिन । ब्राह्म मुहूर्त । बात-संशा [सं० नात्य] दे॰ 'वात्य' । जल्दी पकता है। ब्रह्माक्षर-सझा पु० [स०] प्रणव । पोंकार (को०) । ब्राह्म-संज्ञा पुं० १. विवाह का एक भेद । २. एक पुराण । ३. ब्रह्माग्रभू-सज्ञा पु० [म०] अश्व [को०] । नारद । ४. राजानों का एफ धर्म जिसके अनुसार उन्हें पर्या-ब्रह्माग । ब्रह्मात्मभू गुरुकुल से लौटे हुए ब्राह्मणों की पूजा करनी चाहिए । ५. ब्रह्माणो-सज्ञा सी० [4] १. ब्रह्मा की स्त्री। ब्रह्मा की शक्ति । एक नक्षत्र | रोहिणी नक्षत्र । ६. हथेली में अंगूठे के मूल से नीचे का हिस्मा। ७. पारा। पारद । उ.-ग्रासिम दे दे मगहहिं सादर उमा रमा ब्रह्मानी । -तुलसी (शब्द०)। २. सरस्वती। ३. रेणुका नामक ब्राह्मण-संश पु० [ ] [ सी० ब्राह्मण ] १. चार वर्णों में सबसे गंघद्रव्य । ४ एक छोटी नदी जो कटक जिले मे वैतरणो श्रेष्ठ वणं । प्राचीन पायों के लोकविभाग के अनुमार सबसे नदी से मिली है। ५. दुर्गा को एक नाम (को०)। ६. ऊँचा माना जानेवाला विभाग। हिंदुप्रो मे सबसे ऊंची जाति पीतल (को०)। जिसके प्रधान कर्म पठन पाठन, यज्ञ, ज्ञानोपदेश आदि हैं। २. उक्त जाति या वर्ण का मनुष्य । ब्रह्मदनी-सशा खी० [ स० ] हंसपदी । रक्त लज्जालु । ब्रह्मानंद-संज्ञा पुं० [ स० ब्रह्मानन्द ] ब्रह्म के स्वरूप के अनुभव का विशेष-ऋग्वेद के पुरुष सक्त में ब्राह्मणों की उत्पत्ति विराट् या श्रानंद । ब्रह्मज्ञान से उत्पन्न प्रात्मतृप्ति । ब्रह्म के मुख से कही गई है। अध्यापन, अध्ययन, यजन, याजन, दान और प्रतिग्रह ये छह कर्म व हाणो के कहे गए हैं, ब्रह्माभ्यास-सज्ञा पुं० [म०] वेद का अध्ययन (को॰) । इसी से उन्हे पट कर्मा भी कहते हैं। ब्राह्मण के मुख में गई ब्रह्मारण्य-सज्ञा पुं० [सं०] १. वेदाध्ययन या वेदपाठ का स्थान । हुई सामग्री देवताप्रो को मिलती है। अर्थात् उन्ही के मुख से २. एक वन का नाम [को०] । वे उसे प्राप्त करते हैं । ब्राह्मणो को अपने उच्च पद की मर्यादा ब्रह्मार्पण-संज्ञा पुं० [ स०] ईश्वर को समर्पित किया हुआ कर्म या रक्षित रखने के लिये पाचरण प्रत्यंत शुद्ध और पवित्र रखना कर्मफल [को०] । पड़ता था। ऐसी जीविका का उनके लिये निषेध है जिससे ब्रह्मावर्त्त-सझा पु० [ स०] एक प्रदेश का प्राचीन नाम | सरस्वती किसी प्राणी को दुख पहुँचे । मनु ने कहा है कि उन्हे प्रत, और दृशक्ती नदियो के बीच का प्रदेश । अमृत, मृत, प्रमृत या सत्यानृत द्वारा जीविका निर्वाह करना स०