पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३५९

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भंभर रालो भंडताल भंभराली-संज्ञा सी० [सं० सम्भराली ] दे० 'भंभरालिका' । भया तो क्या भया माला पहिरी चार | ऊपर कलो लपेट के भभलो-संज्ञा पुं॰ [ देशी ] मुखं । -देशी०, पृ० २५६ । भीतर भरा भंगार। -कवीर (शब्द०)। भंभा-सज्ञा मो० [सं० भम्भा] भेरी । हिडिम । डुग्गी [को०] । भंगारि-सज्ञा स्त्री० [प्रा० भंगा+र, कुमा० भंगार (= राख) ] भंभा२-संज्ञा पुं० [सं० भम्भ = (चूल्हे का छेद); या० अनुव्व० ] गदगी। राख । छार । उ०-मुदर देह मलीन है राष्यो रूप संवारि। जार ते फलई करी गीतरि भरी भंगारि । वहुत बड़ा बिल या गर्त । भंभारव--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० भम्भारव ] गाय के रंभाने का शब्द [को॰] । -सुदर० ०, भा॰ २, पृ० ७२० । भमना-क्रि० प्र० [सं० भ्रमण, हिं० भँवना ] इधर उधर भेगारो-संशा झी० [सं० भट गारी ] मच्छड़ । दे० 'भकारी' । घूमना। भवना । उ०-इक बंघिय इक बधिय एक भंमिय भगिया-शा स्त्री० [सं० भङ्गा+हिं० इया ] दे॰ 'भाग' । उ०- भ्रम भीभर |-- पृ० रा०, ६.१२ । जोगिया भंगिया खवाइल, बीरानी फिरो दिवानी ।-जग० भैइस+-सञ्ज्ञा मो० [हिं० मैंस ] दे० 'भैस' । वानी, पृ० १३५॥ मैंकारी-संवा स्त्री० [स० भकारी] १. भुनगा । २. एक प्रकार का भगिरा-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० भंगरा। छोटा मच्छर । भगेड़ी-वि० [हिं० भाग + एड़ी ( प्रत्स० ) ] जिसे भांग पीने की भँगरा'-संज्ञा पुं० [प्रिं० भाग+रा (=का) ] भाग के रेशे से लत हो। बहुत अधिक मांग पीला । भांगड । बना हुमा एक प्रकार का मोटा कपड़ा जो विछाने या बोरा भँगेरा'-पंद्या पुं० [हिं० भाँग + पुरा (प्रत्य॰) 1 मांग की छाल का बनाने के काम में प्राता है। बना हुप्रा कपड़ा । भगरा । भंगेला । भँगरा-सज्ञा पुं० [सं० भृङ्गराज ] एक प्रकार की वनस्पति जो भंगेरा-संज्ञा पुं० [सं० भृङ्गराज ] मंगरा । भंगरया । बरसात मे, विशेषकर प्रायः ऐसी जगह, जहां पानी का सोता भंगेला-संज्ञा पुं॰ [हिं भांग+ एला (प्रत्य॰)] मांग की छाल का बहता है, या कूएं यादि के किनारे, उगती है। भैगरैया । वना हुमा कपड़ा । भंगेरा । भगरा । भृगराज। भँजना-क्रि० प्र० [अ० भजन ] १. किसी पदार्थ के सयोनक विशेप-इसकी पत्तियां लंबोतरी, नुकीली, कटावदार और मोटे घंगों का अलग अलग होना । टुकडे टुकटे होना । टूटना । २. दल की होती हैं, जिनका ऊपरी भाग गहरे हरे रंग का और किसी बड़े सिक्के का छोटे छोटे सिक्कों के रूप में बदला नीचे का भाग हलके रंग का खुर्दुरा होता है । इसकी पत्तियों जाना । भुनना । जैसे, रुपवा भंजना। को निचोड़ने से काले रंग का रस निकलता है । वैद्यक में भंजना-क्रि० प्र० [हिं० भांजना ] १. वटा जाना । जैसे, रन्सी इसका स्वाद कड़वा और चम्परा, प्रकृति रुखी और गरम वा तागे का भजना। २. कागज के तहतो का कई परतो मे तथा गुण कफनाशक, रक्तशोषक, नेत्ररोग पौर शिर की मोड़ा जाना । भांजा जाना । पीडा को दूर करनेवाला लिखा है और इसे रसायन माना है । भैंजनी-संज्ञा री० [हिं० भॉजना ] करघे का एक अंग जो ताने यह तीन प्रकार का होता है-एक पीले फून का जिसे स्वर्ण को विस्तृत रखने के लिये उसके किनारे पर लगाया जाता है । भुंगार, हरिदास, देवप्रिय प्रादि कहते हैं। दूसरा सफेद फूल यह बांस की तीन चिकनी, सीधी और हद लाडियो से बनता का और तीसरा काले फूल का जिसे नील भृगराज, महानील, है जो पास पास समानातर पर रहती हैं। इन्ही तीनों सुनीलज, महाभृग. नीलपुष्प या श्यामल कहते हैं। सफेद लकड़ियो के पीच की संधियो मे से कार नीचे होकर जागा भँगरा तोश्रयः सब जगह और पीला भंगरा कहीं कही होता लगाया जाता है । यह बुननेवाले के सामने किनारे पर रहता है; पर काले फून का भंगरा जल्दी नही मिलता । यह अलभ्य है। भंसरा। है और रसायन माना गया है। लोगो का विश्वास है कि काले फूल के मॅगरे के प्रयोग से सफेद पके बाल साल भैजाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० भाजना] १. हाया नोट यादि को भैजाने काले हो जाते हैं । सफेद फूल के भंगरे की दो जातियां हैं- के लिये दी जानेवाली रकम । २. भाजने की मजदूरी । ३. मांजने की क्रिया या भाव । एक हरे डंठलवाली, दूसरी काले डंठलवाली। पर्या-मार्कव । भृगराज । केशरंजन । रंगक । कुवेलवर्धन । भेजाना-क्रि० स० [हिं० भंजना ] १. भंजने का सकर्मक रूप । श्रृंगार । मर्कर। भागो वा मंशो मे परिणत कराना । तुडवाना । २. बड़ा भँगार'-सज्ञा पुं० [सं० भङ्ग] १ जमीन मे का वह गड्ढा जो सिक्का आदि देकर उतने ही मूल्य के छोटे सिक्के लेना। वरसात को दिनो में प्रापसे आप हो जाता है और जिसमे भुनाना । जैसे, रुपया भजाना। वर्षा का पानी समाता है। २ वह गड्ढा जो कुप्रो बनाते भँजाना-क्रि० सं० [हिं० भाँजना | भाजने का प्रेरणार्थक रूप । समय खोदा जाता है। दूसरे को भांजने के लिये प्रेरणा करना वा नियुक्त करना। भंगार-संज्ञा सं० [हिं० भौग ] घसि फूस । कूडा करकट । उ०- जैसे, रस्सी भजाना, कागज भजाना। (क) माला फेरे कुछ नही दारि मुना गल भार । ऊपर ढेला भेंटकटैया-संशा स्त्री० [हिं०] दे० 'भटकठया'। ही गला भीतर करा भंगार ।-कबीर (शब्द०)। (ख) वैष्णव भैंडताला-संज्ञा पुं० [हिं० भांड+ताल] एक प्रकार का निम्न कोवि