पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३६१

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  1. भोरो

३६०० भँवरी ऐचि खरो पकरो पट। तो लगि गाय भभाय उठी कवि देव उ०-यह सुठि लहरि लहरि पर धावा । भवर परा जित बयू न मध्यो दधि को मट । जागि परी तौ न कान्ह कहूँ न थाह न पावा।-जायसी न०, पृ० २८६ । कदव को कुज न कालिंदी को तट ।—देव (शब्द०)। यो०-मबरकली। भंवरजाल | भँवरभीरा । अभीरी--संज्ञा स्त्री० [अनु० ] एक प्रकार का पतिंगा इसे जुलाहा ३. गड्ढा । गतं । उ०-3रज भनरी भंवर मानो मीनमणि भी कहते हैं। उ०-- बाल अवस्था को तुप धाई । उदत फाति । भृगुवरण हृदय चिह्न ये सब, जीव जल बहु भांनि । भंभीरी पकरी जाई । —सूर (शब्द०)। -यूर (शब्द०)। विशेष-इराकी पूछ लंबी और पतली, रंग लाल और बिलकुल भँवरफली-संज्ञा स्त्री० [हिं० भँवर + फली ] लोहे या पीतल की झिल्ली के समान पारदर्शक चार पर होते हैं। इसको घाँखें वह फाडी जो कील में इन प्रतार जडी रहती है कि वह जिघर टिड्डो की आँखों की तरह बडी घोर ऊपर निकली रहती चाहे, उभर सहज में घुमाई जा सकती है। हैं । यह वर्षा के अंत में दिखाई पड़ता है और प्रायः पानी विशेष—यह प्राय: पशुगो के गले को मिकड़ी या पट्टे गादि में के किनारे घासो के ऊपर उड़ता है। पकड़ने पर यह अपने लगी रहती है। पशु चाहे जितते नकार लगायें, पर इसकी परों को हिलाकर भन भन शब्द करता है । सहायता से उसकी सिादो मे बल नहीं पढ़ने पाता। घमने- भैंभीरी --संज्ञा ली. फिरहरी । फिरकी । फिरेरी । उ०-बाट प्रसूक वाली कुंनी या कही। प्रथाह गंभीरी । जिउ बाउर भा फिरै भंभोरी । -जायसी भंवरगीत-संज्ञा पुं० [हिं०भंवर (= भ्रमर)+गीत] ३० 'भ्रमरगीत' । ग्रं०, पृ० १५२ । ॐभेरिल-सशास्सी० [हिं० भैभरना] भय । डर । उ.-राज मराल भँवरगुंजार-संशा पु० दे० [देश॰] एक प्रकार का टिंगल गीत । इससे पहले पद में १६, दूसरे पद से धंत में दो लघु सहित को वालक पेलि के पालत लालत पुसर को। सुचि सुदर सालि सकेलि सुवारि के वीज बटोरत ऊसर को । गुन ज्ञान गुमान १४, तीसरे मे १४ प्रौर चतुर्थ पद के अंत में २ गुरु सहित ६ मात्राएं होती है। जैसे,—निज धनुष गह कर जगत भैभरि बड़ो कल्पद्रुम काटत मूसर को। कलिकाल अचार नायक, सात वेधे ताड़ सायफ। गहक दुदम फरक नभ मग, विचार हरी नही सूझे फछू घमधूसर को।—तुलसी (शब्द०)। जमे जस जागे ।-रघु० ६०, पृ० १५० ।

  1. मर, भैमरा-संज्ञा पुं० [सं० भ्रमर १. बड़ी मधुमक्खी।

सारग । डंगर । २. बरें। भिड़। भँवरगुफा-संशा नी० [हिं० ] योगियो द्वारा साधना में एक कल्पित गुफा । ब्रह्मरंध्र । उ०—(क) पिय की मीठी बोल भँवनि-सज्ञा सी० [सं० भ्रमण ] घूमना फिरना । उ०-देखत सुनत मैं भई दिवानी। भंवरगुफा के बीच उठत है सोहं खग निकट मूग खनन्हि जुत थकित बिसारि जहाँ तहां की बानी ।-पलटू०, भा० १, पृ० २। (ख) भंवरगुफा में है भवनि । —तुलसी (शम०)। तिवेनी सुरति निरति ले पायो ।-चरण वानी, पृ० ६६ । भँवना-क्रि० प्र० [ म० भ्रमण ] १. घुमना । फिरना । उ०—(क) भंवरजाल-सा पु० [हिं० भवर + जात ] समार और सांसारिक लंपट लुबुध मन भव से भक्त कहा करि भूरि भाव ताकी कगडे वये। भवजाल । भ्रमजाल । २०-भंवरजाल मे ग्रासन भावना भवन में |--मतिराम ( शब्द०)। (स) भोर माडा । चाहत मुख दुस संग न छाड़ा ।-कबीर (शब्द॰) । ज्यों जगत निशि चातक ज्यो भक्त श्याम नाम तेरोई जपत है।-केशव (शब्द०)। २. चक्कर लगाना। उ०- भेंवरभीख-शा री० [हिं० :वर+भीख ] वह भीख जो भौरे केशोदास प्रासपास भैरत भंवर जल केलि में जलजमुखी के ममान घूम फिरकर मांगी जाय । तीन प्रकार की भिक्षा जलज सी सोहिए। -के शव (शब्द०)। में मे दूसरी । उ-भवरीत मध्यम कही मुनी संत चित लाय । कहै कबीर जाको गही मध्यम माहिं समाय।- भँवर-सञ्ज्ञा पु० [ मं० भ्रमर, प्रा० भँवर ] १. भौंरा । उ०-कुदरत पाई खीर सो चित सों चित्त मिलाय । भंवर विलंबा कमल कचीर (ब्द०)। रस अब कैसे उडि जाय ।-कबीर (शब्द०)। २. पानी भवरा-सा पु[५० भ्रमर ]. 'भौरा'। के बहाव मे वह स्थान जहां पानी की लहर एक केद्र पर भंवरी-जरा सी० [हिं० भंवरा ] १. पानी का चक्कर । भंवर । चक्राकार घूमती है। ऐसे स्थान पर यदि मनुष्य या नाव उ०-जहें नदि नीर गंभीर तहां भल भंवरी परई। छिल प्रादि पहुँच जाय, तो उसके डूबने की संभावना रहती छिल सलिल न परे परे तो छवि नहिं करई।-नद० ग्रं, है। पावर्त । चक्कर | यमकातर । उ०—(क) तड़ित पृ० १३ । २. जंतुनो के शरीर के ऊपर वह स्थान जहाँ के रोएं विनिंदक पीत पट उदर रेख बर तीन । नाभि मनोहर और वाल एक केंद्र पर घुमे हुए हो। बालो का इस प्रकार लेत जनु जमुन भंवर छवि छीन । —तुलसी (शब्द०)। का घुमाव स्यानभेद से शुभ अथवा अणुभ लक्षण माना जाता (ख ) भागहु रे भागो भैया भागनि ज्यो भाग्यो, परे भव के है। उ०-माम उर सुधा दह मानी । ....... उरजु भंवरी भवन माँझ भय को भंवर है।-केशव ( शब्द०)। भंवर, मीनी नील मनि की काति । भृगुचरन हिय चिह क्रि० प्र०-पड़ना ।-परना। ये सब जीव जल बहु भांति ।-सूर०, १०।१८३८ । मुहा०-भँवर में पढ़ना = चक्कर में पड़ना । घबरा जाना । भँवरो-संशा सी० [हिं० भंवरना वा मॅविना] १. दे० 'भांवर'।