पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३६८

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भगवा' ३५०० भग्गुल 1 भागा ठोर कहूँ रहै नाहीं। सदा भगवल्लीला के प्रावेस में छक्यो विषय बासना छाड़ भगीता। चरण प्रताप काल तुम जीता। रहे ।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० ४३ । -कबीर० सा०, पृ० २८४ । भगवा'-संज्ञा पुं० [?] एक प्रकार का कापाय रंग । गैरिक रंग। भगीरथ'-संज्ञा पुं० [सं०] मयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जो राजा दिलीप के भगवार-वि० भगवा रंग का। साधु संन्यासियों की तरह वस्त्रवाला। थे। पुत्र जैसे, भगवा झंडा, भगवा वस्त्र । उ०-एक तो भगवा भेस विशेष-कहते हैं, कपिल के शाप से जल जाने के कारण बनाए और वेद वेदांत ले हाथ में खप्पर लिए फिरते। सगरवंशी राजानों ने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रयत्न किया -कवीर मं०, पू. ३५६ । था, पर उनको सफलता नहीं हुई। अंत में भगीरथ घोर भगवान् , भगवान'-वि० [सं० भगवत् का कर्ता एकव० भगवान् ] तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और इस प्रकार १. भगवत् । ऐश्वर्ययुक्त । २. पूज्य । ३. ऐश्वयं, बल, यश, उन्होंने अपने पुरखामों का उद्धार किया था। इसीलिये श्री, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न । गंगा का एक नाम 'भागीरथी' भी है। भगीरथर-वि० [स०] भगीरथ की तपस्या के समान । भारी । भगवान् . भगवान:- संचा पुं० १. ईश्वर । परमेश्वर । २. विष्णु । बहुत बड़ा । जैसे, भगीरथ परिश्रम । ३. शिव । ४. बुद्ध । ५. जिन । ६. कार्तिकेय । ७. कोई पूज्य और आदरणीय व्यक्ति । जैसे, भगवान वेदव्यास । भगेड़-वि० [हिं० भागना+ऐड, (प्रत्य॰)] भागनेवाला ! दे० भगेलू'। उ०-जो न दूसरे को अपने पास बुलाता और न भगवृत्ति-वि० [स०] भग द्वारा जीविका करनेवाला [को०] । भगेड़ों का पीछा करता ।-प्रेमघन० पू० २७३ । भगशास्त्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] कामशास्त्र । भगेलू-वि० [हिं० भागना+ एलू (प्रत्य॰)] १. भागा हुआ। भगहर-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भागना ] दे॰ 'भगदर' । जो कहीं से छिपकर भागा हो। २. जो काम पड़ने पर भगहा-संज्ञा पुं० [ ० भगहन् ] दे० 'भगहारी' | भाग जाता हो । कायर। भगहारी-संज्ञा पुं० [स० भगहारिन् ] १. शिव । महादेव । २. भगेश-संज्ञा पुं० [सं०] ऐश्वर्य का देवता । विष्णु का एक नाम (को०)। भगोड़ा-वि० [हिं० भागना+थोड़ा (प्रत्य०)] १. भगांकुर-संज्ञा पुं॰ [सं० भगाङ्कुर ] प्रशं रोग । बवासीर । हुमा । २. भागनेवाला । कायर । भगाई-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भागना ] भागने की किया। भागना । भगोल-संज्ञा पुं० [सं०] नक्षत्रचक्र । वि० दे० 'खगोल'। भगाड़-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'भंगार' । भगोष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] भग के बाहरी हिस्से का किनारा । भगाना'-क्रि० स० [सं० /भञ्ज] १. किसी को भागने में प्रवृत्त भगौती-संज्ञा स्त्री० [सं० भगवती ] दे० 'भगवती'। करना । दौड़ाना । २. हटाना । दूर करना । खदेड़ना । उ० भगौहाँ'-वि० [हिं० भागना +ौहाँ (प्रत्य॰)] १. भागनेवाला । दरस भूख लागै हगन भूखहि देत भगाइ।-रसनिधि भागने को तैयार या उद्यत । २. कायर । (शब्द०)। ३. वहलाकर या फुसलाकर ले जाना। भगौहाँ-वि० [हिं० भगवा] गेरू से रंगा हुप्रा । भगवा । गेरुमा। भगाना-क्रि० स० दे० 'भागना' । उ०—(क) उछरत उतरात उ०-बरुनी बघबर में गूदरी पलक दोऊ, कोए राते बसन हरात मरि जात भभरि भगात जल थल मीचु मई है। भगौहें भेष रखियो।-देव (शब्द)। —तुलसी (शब्द०)। (ख) सभय लोक सब लोकपति चाहत भग्गना-कि० अ० [हिं० भागना ] भागना। पलायन करना । म भरि भगान ।-तुलसी (शब्द०)। उ०-भग्गा नाहर राइ पाई मुक्के नाहर जिम । जिम जिम भगाल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] आदमी की खोपड़ी। भर क्ट्टई रोस लग्गा बर तिम तिम ।-पृ० रा०,७।१६५ । भगाली-संज्ञा पु० [स० भगालिन् ] पादमी की खोपड़ी धारण भग्ग-संज्ञा पुं० [ देश० ] दे० 'भगर' और 'भगल' । उ०-फिरें करनेवाले, शिव । रंड बिनमुड रस रोस राचे। मनो भग्गर नट्ट विद्या कि भगास्त्र-संज्ञा पु० [स] प्राचीन काल का एक अस्न । नाचे ।-पृ० रा०, १३।८६ । भगिनिका- संज्ञा स्त्री॰ [सं०] भगिनी । सहोदरा [को०] । भग्गल -संज्ञा पु० [ देश० दे० 'भगर', 'भगल' । उ०-रिनं राइ भगिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] बहन । सहोदरा । उ०-शूर्पणखा चामुड पेलं करूरं। मनो भग्गलं नट्ट मंड्यौ बिरूरं ।- रावण की भगिनी पहुँची वहाँ विमोहित सी।-साफेत, पृ० रा०, १२।३७७ । पृ०३७८। भग्गा-संज्ञा पु० [हिं० भागना] लड़ाई से भागा हुआ पशु या पक्षी। यौ०-भगिनीपति, भगिनीभर्ता-बहनोई । भगिनीपुत्र, भगिनी. भग्गी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भागना ] बहुत से लोगों के साथ मिलकर सुत= भाजा। भागने की क्रिया | भागल | भगिनीय-संज्ञा पुं० [स] बहन का लड़का । भगिनेय । भानजा। क्रि० प्र०-पटना ।- मचना । भगीत-वि० [हिं० भागना ] भागा हमा। पलायित । उ०- भग्गुल-[हिं० भागना ] १. रण से भागा हुआ। भगोड़ा।