पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भग्गू ३६०८ भजक भग्गू । उ०-प्राय भग्गुल लोग वरने युद्ध की सब गाथ। हुई बस्ती का बचा हुमा अंश । संडहर । २. किसी टूटे हुए केशव (शब्द०)। २. भागनेवाला । कायर । पदार्थ के बचे हुए टुकड़े। भग्गू-वि० [हिं० भागना+ऊ (प्रत्य॰)] जो विपत्ति देखकर भग्नाश-वि० [सं०] हताश । भागता हो । कायर । डरपोक । भागनेवाला। भग्नी-संशा स्रो० [सं०] भगिनी । बहन । भग्न'- वि० [ स०] १. टूटा हुअा। २. नष्ट (को०)। ३. जो हारा भग्नोत्साह-वि० [ म० ] निरुत्साह । जिनका उत्साह नष्ट हो या हराया गया हो। पराजित । ४. हताश । निराश । गया हो। भग्न-सञ्ज्ञा पु० हड्डियो अथवा उनके जोड़ों का टूट जाना । भग्नोत्सृष्टक-संज्ञा पुं० [सं० वे गोप जो साझीदार के समान -भग्नक्रम = क्रमरहित । जिसका क्रम टूट गया हो। अनुपयोगी गायो का पालन करते थे। भग्नचित्त = निराश । भग्नचेष्ट = विफल होकर चेष्टा से विरत । विशेप-कौटिल्य के समय में ऐसे लोगो के अधीन बीमार, भग्नताल = सगीत में एक प्रकार का ताल । भन्नदंष्ट्र = जिसके लंगड़ी, लूली, दूध दुहने में बहुत तंग करनेवाली या किसी दांत टूटे हो। भग्ननिद्र = जिसकी नीद टूट गई हो। जो सोते विशेष प्रादमी के हाथ से ही लगनेवाली और बछड़े को समय जगाया गया हो। भग्नपरिणाम = जो फल से वंचित हो। मार डालनेवाली गोएं रखी जाती थी। भग्नपारवं = बगल के दर्द से पीडित । भग्नपृष्ठ =(१) जिसको भचक- सी० [हिं० भचकना ] भचककर चलने का भाव । रीढ टूट गई हो। (२) सामने से पानेवाला । संमुखागत । लंगड़ापन । भग्नप्रतिज्ञ = जिसने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी हो । भन. भचकना-फि० अ० [हिं० भींचक ] पाश्चय्यं में निमग्न हो- मन = हतोत्साह । भग्नमनोरथ = विफल मनोरथ । भग्नाश । कर रह जाना। भग्नमान-अवमानित । तिरस्कृत । भग्नवतजिसका व्रत भंग भचकनारे-क्रि० प्र० [ भच अनु० ] चलने के समय पैर का इस हो गया हो । भग्नश्री=जिसकी शोभा नष्ट हो गई हो । भग्न प्रकार रुककर टेढ़ा पड़ना कि देखने मे लंगड़ापन मालूम सधि । भग्नसधिक । भग्नहृदय=जिसका मन टूट गया हो । हो। लंगड़ाना। भग्नचित्त । निराश । भचक्र-संश पुं० [सं०] १. राशियों या ग्रहों के चलने का मार्ग । भग्नदूत-सज्ञा पु० [सं०] १. रणक्षेत्र से हारकर भागी हुई वह कक्षा । २. नक्षत्रों का समूह । उ०-२७ नक्षत्रो में भचक्र सेना जो राजा के पराजय का समाचार देने आती हो। २. होने से २७४ २१ हैं।-वृहत०, पृ० ४६ । वह दूत जो विफल होकर पाया हो। उ०—जैसे थककर भचभचा-संज्ञा पुं० [अनु॰] वह खाट, माचा, मचिया प्रादि जिससे साध्य विहग घर वापस पाए । वैसे ही वे मेघदून अव भग्नदूत भच भच् की प्रावाज हो। उ०-नही तो वह गुढ़ गुढ़ी की से वापस पाए । -उडा०, पृ० ५४ । गुढगुढ़ाहट वा बड़े भचभचे की भचभचाहट ।-प्रेमघन० भग्नपाद-सज्ञा पु.[ ] फलित ज्योतिष के अनुसार पुनर्वसु, भा० २, पृ० २५८ । उत्तराषाढ़, कृत्तिका उत्तराफाल्गुनी, पूर्व भाद्रपद मोर विशाखा भचभचाना-क्रि० प्र० [अनु० ] गच् मच करना । ये छह नक्षत्र जिनमें से किसी एक मे मनुष्य के मरने से द्विपाद दोप लगता है। इस दोष की शाति प्रशोच काल के भचभचाहट-ज्ञा पु० [ अनु० ] भचभच करने का स्वर । बंदर ही कराने का विधान है। भच्छ-वि, संज्ञा पुं॰ [स० भक्ष्य ] दे० 'भक्ष्य' । भग्नप्रक्रम-सज्ञा पुं॰ [ स०] १. काव्य का एक दोष । रचना का भच्छक-संज्ञा पुं॰ [ स० भक्षक ] दे० 'भक्षक' । क्रम विगड जाना । २. क्रमरहित । भग्नक्रम । भच्छन-संशा पु० [सं० भक्षण ] दे० 'भक्षण'। उ०-माजु सवन्हि कई भच्छन करऊ।-मानस, ४।२७ भग्नसंधि-संज्ञा स्त्री० [ स० भग्नसन्धि ] हड्डी का जोड़ पर से भच्छना@f-क्रि० स० [सं० भक्षण ] खाना। भक्षण करना। टूट जाना। उ०-कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भग्नसंधिक-सज्ञा पुं० [स० भच्छही।-मानस, ५।३ । भग्नांश-सज्ञा पु० [ स०] १. मूल द्रव्य का कोई अलग किया हुआ भछना-संशा पु० [सं० भक्षण ] भोजन । भक्षण । भच्छन । उ०- भाग वा अंश । २. गणित शास्त्र के अनुसार किसी वस्तु रिपि जन पकरि भछन करि डारी।-नंद० ५०, के दो या अधिक किए हुए विभागों में से एक या अधिक पृ० २२३। विभाग । जैसे,—किसी वस्तु के किए हुए सात विभागो में भछना -क्रि० स० [सं० भक्षण ] भक्षना। भच्छना । खाना । से दो विभाग, अर्थात 3 मूल वस्तु का भग्नांश है । उ०-कंद मुल भछि पवन पहारी, पय पी तनहिं दहाही । भग्नात्मा-संज्ञा पुं॰ [ स० भग्नात्मन् ] चंद्रमा । -जग० बानी, पृ० ३६ । भग्नापद-वि० [सं०] जिसने विपत्तियो को चूर कर दिया हो । भजक-सवा पुं० [स०] १. भजन करनेवाला। भजनेवाला। भन्नावशेष-सजा पुं० [सं०] १, किसी टूटे फूटे मकान या उजड़ी २. विभाग करनेवाला। 1 मठा।