पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३७२

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भटेरा २११ भरती कौन भटू जो लटू नहिं कीनी। -रससान०, पृ० १४ । भट्टोत्पल-संशा पुं० [स०] वराहमिहिर के प्रयों की टीका करनेवाले २. सखी। गोइया । उ०-भरी भटु गड़ी है कटीली वह एक प्राचाय का नाम । दीठि मोहिं सुपने लखति फिरि जाति दुरि दुरि के । भट्ठा-ससा पु० [स० भ्राष्ट, प्रा० भ०] १. बड़ो भट्ठा । २. इंटे -दीन० ग्रं॰, पृ० ६ । ३. प्रिय व्यक्ति । वा खपड़े इत्यादि पकान का पजावा। यह बड़ा चट्ठी जिसमे भटेरा- सच्चा . [ देश०) वैश्यों की एक जाति । ईटे आदि पकती हो, चुना फूफा जाता हा, लाहा मादि भटेया-संशा क्षा॰ [हिं० मटकटैया ] दे० 'भट कटैया' । उ०-भीर गलाया जाता हा या इसा प्रकार का मोर कोई काम भटैया, जाहु जनि काट वहुत रस थोर । -गिरिधर होता हो । (शब्द०)। भट्ठो-संशा श्री० [० भ्राष्ट, प्रा० भठ्ठ 1. विशेष याकार और भटोट-सज्ञा पु० [देश॰] यात्रियो के गले में फांसी लगानेवाला ठग । प्रकार का ईटा आदि का बना हुआ वा चल्हा जिसपर (ठगो को वोली)। हलवाई पक्वान्न बनाते, लोहार लोहा गलात, वद्य लाग रस भटोला'-वि० [हिं० भाट+भोला (प्रत्य॰)] १. भाट' का । भाट प्रादि फुकत अथवा इसी प्रकार क और और काम करत संबंधी। २. भाट योग्य : है । ( भिन्न भिन्न कार्यों के लिय भट्ठियो का भाकर भोर भटोला-शा पु० वह भूमि जो भाट को इनाम के तौर पर दी प्रकार भी भिन्न भिन्न हुप्रा करता है।) गई हो।। मुहा०-भट्ठी दहकना=किसी का फारवार जोरो पर होना । भट्ट-पु० [सं० भट, भ] १. ब्राह्मणों की एक उपाधि जिसके धारण वहुत प्राय होना (व्यग्य )। फरनेवाले दक्षिण भारत, मालव, प्रादि कई प्रातों मे पाए २. देशी मद्य टपकाने का कारखाना । वह स्थान जहाँ देशी जाते हैं । २. महाराष्ट्र ब्राह्मण । ३. भाट । ४. योद्धा । शूर । भट। ५. शिक्षित ब्राह्मणों का एक संबोधन [को०] । ६. शराब बनती हो। शिक्षित व्यक्ति विद्वान या दार्शनिक [को०] । ७. स्वामी। प्रभु। भट्यानी-संज्ञा स्त्री॰ [ स० भटिनी ] भट्ट की स्पी। उ०-तव वा नाटक आदि में राजापों का आदरार्थक सवोधन (को०)। भट्यानी ने कही, जो मेरे कळू द्रव्य नाही है।-दो सो यौ०-भट्टनारायण-वेणीसंहार संस्कृत नाटक के रचयिता का वावन०, भा० १, पृ० ११ । नाम । भट्टप्रयाग -प्रयाग । भट्टाचार्य । भठ'-वि० [स० भ्रष्ट ] दे॰ 'भ्रष्ट' । उ०-साधु मतो क्यों माने भट्टाचार्य-संज्ञा पुं० [सं० भ+ प्राचार्य ] १. दशनशास्त्र का दुरमति जाको सबै सयान परयो भठ।-धनानंद, पृ० ४७२ । पडित । २. सम्मानित अध्यापक या विद्वानों के लिये पदवी भठ'-सा पु० [ स० भ्राट ] गहरा गड्डा या अधा कुप्रा, जो था रूप में प्रयुक्त शब्द । ३. बंगीय ब्राह्मणों की एक उपाधि । या पूरा पट गया हो । भाठ । उ०-जा करि हम दिज हमद भट्टार-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १. पूज्य व्यक्ति । माननीय पुरुष । २. भरे । गुरु कहाइ सठ मठ मैं परे।-नंद० प्र० पु. ३०४ । आदरार्थ पदवी रूप में प्रयुक्त शब्द । भाठयाना-क्रि० प्र० [हिं० भाठा+इयाना (प्रत्य॰)] समुद्र भट्टारक-वि० [सं०] [ी० भट्टारिका] पूज्य | माननीय । मे भाटा पाना । समुद्र पानी का नीचे उतरना । भट्टारक-संज्ञा पु० १. पूज्य व्यक्ति के आदरार्थ प्रयुक्त (पदवी रूप भठियारपन-शा पु० [हिं० भटियारा +-पन (प्रत्य॰)] १. में)। २. मुनि । तपस्वी । ३. पडित । ४. सूर्य । ५ देवता । भठियारे का काम । २. भठियारो की तरह लड़ना और ६. नाटक में राजा और प्रधान पुरुषो के लिये आदरार्थ अश्लील गालियां बकना । सबोधन [को०] । भठियारा-सा पु० [हिं० भट्ठा+ इयार (प्रत्य॰)] [ili यो०-भट्टारक वार, भहारक वासर = प्रादित्य वार । रविवार । भटियारन, भटियारिन, भाठयारी] सराय का प्रयष करने- भट्टारिका-शा सा[स०] सम्माननीया महिला । समारता स्त्री। वाला वा रक्षा जा यापियो के साने पीने और ठहरने मादि भट्टि-संशा खी० [सं०] संस्कृत के भट्टि महाकाव्य के लेखक। श्रीधर की व्यवस्था करता है। स्वामी के पुष । भठियारी-बारक्षा [हिं०] १. भठियारे की स्त्री। २. प्रत्यत भट्टिनी-सज्ञा स्त्री॰ [म] १. नाटक की भाषा मे राजा की वह पत्नी लड़ा ली। जिसका अभिपेक न हुआ हो। स्वामिनी । २. सम्माननीय महिला । ३. ब्राह्मण की पत्नी [को०] । भठियाल-सा पु० [हिं० भाटा ] समुद्र के पानी का उतरना । ज्वार का उलटा । भाटा। भट्टी' -संज्ञा नो [स० भ्राप्ट ] दे० 'भट्ठी' । भट्टी-संज्ञा पुं० [श] ३० 'भाटिया' 'भाटी' । उ०-मारू वजाद भांठहारा- पु० [हिं०] [स्त्री० भटिहारिन, भठिहारी : भट्टीन थान । घल भोमि लई बल चाहुवान ।-पु० रा०, 'भठियारा' । उ०-भए सय मतदार मतवारे । आपुनो अपुनो मत ले ले सब झगरत ज्यो भठिहारे । -भारतेंदु ६०, ना० १३६१३॥ २, पु० १३६। भट्टोजि-संग पु० [स०] भट्टोजी। सिद्धात कौमुदी के कर्ता भट्टोषि दीक्षित । भठुलो-या पी० [हिं० भट्टो + उना (प्रत्य॰)] ठठेरों की