पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३७४

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भडिल भदावर भडिल-संज्ञा पुं० [सं०] १. वीर। योद्धा। २. सेवक । चेत । भणियां सु भेलप नही, हुरकणियां तूं हेत ।- चाकर [को०] । बाँकी नं०, भा० २, पृ० १ । भडिहा -संज्ञा पुं० [सं० भाण्डहर ] चोर । तस्कर । (बुदेलखडी) : भत-संशा लो. [हिं० भाँति ] दे० 'भांति' । भडिहाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० भडिहा + ई ] चोरी । तस्करी । भतरौड़-संज्ञा पु० [हिं० भात+रौढ़ ? ] १. मथुरा और बृदावन भडिहाई-क्रि० वि० [हिं० भदिहा+श्राई ] चोरों की तरह । के बीच का एक स्थान जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि लुक छिप या दवकर । उ०-इत उतचिते चला भडिहाई । यहाँ श्रीकृष्ण ने चौबाइनों से भात मंगवाकर खाया था। —तुलसी (शब्द०)। उ.--भटू जमुना भतरोड लो औंडी ।-रसखान (शब्द०)। २. ऊँचा स्थान । ३. मदिर का शिखर । भड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बढ़ाना या भड़काना ] वह उत्तेजना जो किसी को मूर्ख बनाने या उत्तेजित करने के लिये दी जाय । भतवान-संज्ञा पु० [हिं० भात + दान (प्रत्य॰)] विवाह की एक झूठा बढ़ावा । घोखा। उ०-बस चलिए हटिए यह भड़ी रीति जिसमे विवाह के पहले कन्यापक्ष के लोग भात, दाल किसी ऐसे वैसे को दीजिए। यहाँ बड़े बड़ों की पाखे देखो हैं । आदि कच्ची रसोई बनाकर वर और उसके साथ चार -फिसाना०, भा० १, पृ०५। कुंभारे लड़को को बुलाकर भजन कराते हैं । व्याह के पूर्व क्रि० प्र०-देना। में आना । जैसे--सबके सव मेरी भड़ी में होनेवाली कच्ची ज्योनार । आ गए। भताया -सञ्ज्ञा पु० । स० भतरि] दे० 'भतार' । उ०-प्रेम प्रीति भड़ आ-संज्ञा पु० [हिं० भाँड+उपा] १. वह जो वेश्याओं की मन रातल हो, हमरो मरल भताय । ---गुलाल० बानी दलाली करता हो। पुश्चली स्त्रियो की दलाली करनेवाला । पृ० ८१ । २. वेश्याप्रो के साथ तवला या सारंगी आदि बजानेवाला । भतारी-सज्ञा पु० [ स० भत्त, भर्ता ] पति । खाविंद । खसम । सफरदाई। उ-ज्यौ तिय सुरत समय सितकारा। निफल जाहिं जो भड़ेरिया-~संज्ञा पुं० [हिं० ] एक जाति जो हाथ देखने, शकुन बताने बघिर भतारा ।-नंद० ग्र०, पृ० ११८ । मादि का कार्य करके अपनी जीविका चलाती है। भड़रिया। भति-संज्ञा स्त्री॰ [ पु० भणिति ] कथन । विचार । भनिति । उ०-पागम कह न संत भड़ेरिया कहत हैं।-पलटु०, उ०-भति सुनी भीम सब अमरसीह। -पृ० रा०, १२।२०८ । पृ० ७६। भतोज-सज्ञा पु० [सं० भ्रातृज, भ्रातृजात ] दे० भतीजा'। उ०- भडुर-संज्ञा पुं० [सं० भद्र ] ब्राह्मणों मे बहुत निम्नकर्मा श्रेणी की भीमलणी हरनाथ भयंकर । जसो भतीज महा जोरावर । एक जाति । इस जाति के लोग ग्रहादिक का दान लेते हैं -रा० रू०, पृ०२६२ । अथवा यात्रियो को दर्शन श्रादि कराते है। भंडर । भतीजा-संज्ञा पुं० [सं० भ्रातृज, भ्रातृजात] [स्त्री० भतीजी ] भाई भडुरो-संशा पुं० [हिं०] १. दे० 'भड्डर' । २. दे० 'भड़ेरिया'। ३. का पुत्र । भाई का लड़का । भड़ेरिया जाति का व्यक्ति । ४. एक कहावत कहनेवाले का नाम । जैसे, घाघ और भड्डरी की कहावतें । भतुआ-संज्ञा पु० [ देश० ] सफेद कुम्हड़ा । पेठा । भण-संज्ञा पुं॰ [ ? ] ताड़ का वृक्ष । (डिं० )। भतुला-संज्ञा पु० [ देश० ] गकरिया। बाटो। भणक्कना-क्रि० अ० [सं० भण वा अनुध्व० ] भनकना । ध्वनि भत्ता-सञ्ज्ञा पु० [स० भरण या मृत्ति ] १. दैनिक व्यय जो किसी करना। बज उठना । उ०-मंदिर बोली मारुवी, जाणि कर्मचारी को यात्रा के समय दिया जाता है। २. वेतन के अतिरिक्त वह धन जो किसी को यात्राकाल में विशेष रूप भणक्की वीण | -ढोला०, दू० ४६२ । से दिया जाता है। भणन-संज्ञा पुं० [सं० ] कहना । वर्णन । भणना-क्रि० प्र० [सं० भण] कहना । बोलना । उ०-मन भदंत'-वि० [स० भद्] १. पूजित । २ सम्मानित । लोभ मोह मद काम बस भए न केशवदास भणि । सोई भदंत-शा पु० बौद्ध भिक्षु । परब्रह्म श्रीराम है अवतारी अवतारमणि | केशव (शब्द०)। भदई-वि० [हिं० भादों ] भादों संबधी । भादों का । २. पढ़ना । बोलना । उ०-भणवा कारण भरत नै, मेले नृप भदई २-सञ्ज्ञा स्त्री॰ वह फसल जो भादों में तैयार होती है । मुसाल ।-रघु० ७०, पृ० ६६ । भदभद्-वि० [अनु०] १. वहुत मोटा । २. भद्दा । भणित-संज्ञा स्त्री० [सं०] कही हुई बात । वार्ता । कथा । भदयल-सा पुं० [हिं० भादों ] मेढक । भणित-वि० [सं०] कहा हुआ । जो कहा गया हो । कथित । भदवरिया-वि० [हिं० भदावर+इया (प्रत्य॰)] भदावर प्रांत भणिता-वि०, संज्ञा पु० [सं० भणित] बोलनेवाला । वक्ता । विद्वान् । का । भदौरिया। भणिति-सज्ञा नो० [सं०] कथन । वार्ता । भनिति । भदाक-सञ्ज्ञा पु० [स०] उन्नति । सौभाग्य । अभ्युदय [को०] । भणियाज-सज्ञा पुं० [स० भणितृ>भरिणता] विद्वान् । भदावर--संज्ञा पुं० [वि० भगवर ] एक प्रांत जो आजकल ग्वालियर बोलनेवाला। उ०-सावल प्रणियां सांकही, चोरंग बरिणया राज्य में है। । वक्ता।