पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३७५

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भद्रगधिका संबंधी। विशेष-यहाँ के क्षत्रियों का एक विशिष्ट वर्ग है। यहाँ के बैल पध, प म प, म ग म, ग रे ग, रे सा रे, सा नि सा । १३. भो बहुत प्रसिद्ध होते हैं। व्रज के ८४ वनो मे से एक वन । २४. सुमेरु पर्वत । १५. भदेसा-वि० [हिं० भद्दा + बेस (= वेथ)] भद्दा । भोडा । कुरूप । कदव । १६. सोना । स्वर्ण १७ मोथा। १८, रामचद्र की वदशकल । उ०-भनिति भदेस बस्तु भलि वरनी। राम सभा का वह सभासद जिसके मुह से सीता की निंदा सुनकर कथा जग मगल करनी ।—मानस, १।१०। उन्होने सीता को वनवास दिया था। १६. विष्णु का वह द्वार- पाल जो उनके दरवाजे पर दाहिनी ओर रहता है । २०. भदेसिल-वि० [हिं० भद्दा+ देसिल ( = देश का)] दे० 'भदेस' । देवदारु वृक्ष (को०)। २१. दाभिक । दंभी। कपटी । छली । भदैला -सज्ञा पुं० [हिं० भ.दों ? ] मेंढक । धूर्त (को०)। २२. लौह । लोहा (को०)। २३. ज्योतिष में भदैला-वि० [हिं० भादों+ ऐला (प्रत्य॰)] भादों मास में उत्पन्न सातवां करण । २४. पुराणानुसार स्वायभुव मन्वतर मे होनेवाला । भादों का। विष्णु से उत्पन्न एक प्रकार के देवता जो तुपित भो भदौंहां-वि० [हिं० भादों+ह (प्रत्य॰)] भादो मास में होनेवाला । कहलाते हैं। उ०-वह रस यह रस एक न होई जैसे पाम भदोह । भद्र-नशा पु० [ स० भद्राकरण ] सिर, दाढ़ी, मूछो प्रादि सबके -देवस्वामी (शब्द०)। वालों का मुंडन । उ०-लीन्हो हृदय लगाय सूर प्रभु पृथत भदौहाँ-वि० [हिं० भादों+ हाँ (प्रत्य॰)] भादो में होनेवाला । भद्र भए क्यो भाई।—सूर (शब्द॰) । भदोह। भदौरिया ---वि० [हिं० भदावर ] भदावर पात का। भदावर भद्रअवज्ञा-संञ्चा पुं० [स० भद्र+थवज्ञा] दे० 'सविनय कानून भंग' । भद्रकंट-सज्ञा पु० [ स० भद्रकण्ट ] गोक्षुर । गोखरू । भदौरिया-सज्ञा पु० [हिं० भदावर] १. क्षत्रियों की एक जाति भद्रक-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. एक प्राचीन देश का नाम । २. चना, २. भदावर प्रांत का निवासी। मूग इत्यादि अन्न । ३. एक वृत का नाम जिसके प्रत्येक aru sil. Sis. III. ss. ill. sis. lil. S. (+777 भद्द-वि० [सं० भद्र, प्रा० भद्द ] दे॰ 'भद्र'। उ०-रचि रूप भद्द तरु अद्द पली मनि दामिनि गोपी सु हर ।-१० न र न ग) और ४, ६, ६, ६, पर यति होती है । ४. नागर- मोथा। ५. देवदार। रा०, २।३८५। भद्द-ज्ञा पु० [सं० भाद्र ] दे० 'भादो'। उ०—कितिक दिवस भद्रकपिल-सञ्ज्ञा पु० [ स०] शिव । महादेव । मंतरह रहिय प्राधान रानि उर । दिन दिन कला बढ़त मे भद्रकल्पिक-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] एक बोधिसत्व का नाम । ज्यो बढ़त भद्द धुर । -पृ० रा०, १५८४ । भद्रकांत-संचा पु० [सं० भद्रकाल ] रूपवान प्रेमी या पति। भद्दा-वि० पु० [स० भद्र] [स्त्री० भद्दी] १. जिसकी बनावट में भद्रका-संचा श्री० [सं०] इंद्रजव । मग प्रत्यंग की सापेक्षिक छोटाई बड़ाई का ध्यान न रखा गया भद्रकाय-संज्ञा पुं० [सं०] १. हरिवंश के अनुसार श्रीकृष्ण के एक हो । २. जो देखने में मनोहर न हो । वेढगा । कुरूप । पुत्र का नाम । २. वह जिसके शरीर की गठन सुदर हो। भद्दापन-संज्ञा पुं॰ [हिं० भद्दा+पन (प्रत्य॰)] १. भद्दे होने का भद्रकार-वि० [स०] मंगल या कल्याण करनेवाला । भाव । २: अशिष्टता । असामाजिकता । अनौचित्य । भद्रकारक'-वि० [ ] दे॰ 'भद्रकार'। भद्रकर-वि० [स० भद्रकर ] भद्र करनेवाला। मंगलकारक । भद्रकारकर-संज्ञा पु० एक प्राचीन देश का नाम जिसका उल्लेख शुभकर्ता [को०] । महाभारत में है। भद्रकरण-संज्ञा पु० [ स० भद्रण ] मंगलसाधन । भद्रकाली-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. दुर्गा देवी की एक मुर्ति जो १६ भद्र'-वि० [स०] १. सभ्य । सुशिक्षित । २. कल्याणकारी। हाथोंवाली मानी जाती है। २. कात्यायिनी । ३. कार्तिकेय ३. श्रेष्ठ । ४. साधु । ५. सुदर (को०)। ६. प्रिय (को०)। की एक मातृका का नाम । ७. अनुकूल (को०)। भद्र-सञ्ज्ञा पु० [स०] १. कल्याण । क्षेम । कुशल । २. चंदन विशेष-पुराणानुसार इसकी उत्पत्ति दक्ष यज्ञ के समय भगवती ३. हाथियो की एक जाति जो पहले विंध्याचल में होती के क्रोध से हुई थी। इसने उत्पन्न होते ही वीरभद्र के साथ मिलकर यज्ञ का ध्वंस किया था। थी। उ०-च्यारि प्रकार पिष्पि बन बारन । भद्र मंद मृग ४. गधप्रसारिणी। ५. नागरमोथा। जाति सधारन । -पृ. रा०, २७।४ । ४. बलदेव जी का एक सहोदर भाई । ५. महादेव । ६. एक प्राचीन देश का नाम । भद्रकाशी-सज्ञा श्री० [०] भद्रमुस्ता । नागरमोथा [को०] । ७. उत्तर देश के दिग्गज का नाम । ८. खंजन पक्षी।.६. भद्रकाष्ठ-सज्ञा पु० [ स०] देवदारु वृक्ष। वैल । १०. विष्णु के एक पारिषद् का नाम । ११. राम जी भद्रकुभ-सञ्ज्ञा पु० [म० भद्रकुम्भ] वह स्वर्णकलश जिसमें तीर्थो का के एक सखा का नाम । १२. स्वरसाधन की एक प्रणाली जो (विशेषतः गगा का ) पवित्र जल रहा हो जिसका उपयोग इस प्रकार है-सा रे सा, रे ग रे, ग म ग, म प म, पपप, राजा के संस्कारार्थ होता था [को०] । धनि ध, नि सा नि, सा रे सा। सा नि सा, नि ध नि, ५ भद्रगंधिका-संवा स्त्री॰ [ स० भद्रगन्धिका ] नागरमोया [को०] ।