पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३८

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फरूकना १२७७ रुकना@ -क्रि० स० [सं० स्फुरण, प्रा० फुरण; राज० फरुक्क, फरोश-वि० [फा० फ़रोश ] बेचनेवाला। जैसे, मेवाफरोण, फरक ] दे० 'फरकना । (क) श्राज फल्का खियो, नाभि दवाफरोश। भुजा शहरांह। सही न छोड़ा सज्जा, साम्हां किया घरांह। विशेष—यह समास के अंत में प्राता है । -ढोला०, दू० ५१६ । (ख) उ०-म्हारी आँख फल्के फरोशी-संज्ञा स्त्री० [फा० फरोश ] विक्री । देचना । उ०-बात- वाई । म्हानै साधु मिले के साई।-राम० धर्म०, पृ० ३१ । फरोशी हाय हाय । वह लस्सानी हाय हायं । -भारतेंदु ग्रं०, फरद, फरेंदा-सज्ञा पुं॰ [ सं० फलेन्द्र, प्रा० फलेंद ] [ सी० फरेंदी ] आ० २, पृ० ६७८ । जामुन की एक जाति का नाम । फर्क-संज्ञा पुं० [१० फ़क़ ] दे० 'फरक' । विशेप-इसके फल बहुत बड़े बड़े और गूदेदार होते हैं । इसकी फर्च-वि० [हिं० ] दे॰ 'फरच' । पत्तियां जामुन की पत्तियों से अधिक चौड़ी और बड़ी होती फर्चा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे॰ 'फरचा' । हैं। फल प्रापाढ़ में पकते हैं और खाने में मीठे होते हैं। यह पाचक होता है। विशेष दे० 'जापुन' । फर्जद-संज्ञा पु० [फा० फज ८ ] दे० 'फरजंद' । फर्ज-संज्ञा पुं० [० फ़ज़ ] १. मुसलमानी धर्मानुसार विधिविहित फरेफ्ता-वि० [फा० फ़रफ्तह, ] लुभाया हुआ । पासक्त । शाशिक । कर्म जिसके न करने से मनुष्य को प्रायश्चित्त करना पड़ता फरेब-संज्ञा पुं० [ फ़ा फ़रेब ] छल । कपट । धोखा। जाल । है । धामिक कृत्य । २. कर्तव्य कर्म । जैसे,—उनसे माफी क्रि० प्र०—करना ।-देना ।—होना । मांगना आपका फर्ज है। ३. उत्तरदायित्व। ४. कल्पना । यौ०-फरेबकार = धोखेबाज । फरेयखुर्दा = वंचित । ठगा हुप्रा मान लेना। जैसे,—फर्ज कीजिए कि वे खुद पाए, तब फरेवदिहिंदा- छली। धोखेबाज । प्राप क्या करेंगे? फरेविया-वि० [हिं० फरेक + इया (प्रत्य०)] दे॰ फरेवी' । यौ०-फर्जमुहाल = असंभव को संभव समझना या मानना। फरेबी-वि० [फा० फरेवी ] फरेब या छल कपट करनेवाला । मुहा०-फर्ज अदा करना = कर्तव्य का निर्वाह करना । फर्ज षोखेवाज । कपटी। करना=मान लेना । कल्पना करना। फर्ज होना = अवश्य कर्तव्य होना। फरेरा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० फरहरा ] दे० 'फरहरा' । फजीनगी- स्त्री० [फा० फर्जानगी ] योग्यता । बुद्धिमत्ता । फरेरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फलहरी या 'फल = रा (प्रत्य॰)] जंगल के फल । जंगली मेवा। उ०—मुख कुरवार फरेरी खाना। अक्लमंदी। उ०-ऐ खिरदमदो मुबारक हो तुम्हे फर्जानगी। वहु विपभा जब व्याध तुलाना ।—जायसी (शब्द॰) । हम हों औ सहरा हो श्री वहशत हो यो दीवानगी। कविता कौ०, भा०४, पृ० ४३ । फरैदासज्ञा पुं० [ फ़ा० परिदह, हिं० परिंदा ] एक प्रकार का फर्जी-वि० [फा० फ़र्जी ] १. कल्पित। माना हुमा । २. नाम तोता। मात्र का । सत्ताहीन । फरो-वि० [फा०] दवा हुआ। तिरोहित । जैसे, झगड़ा फरो फर्जी-संज्ञा पुं० [फा० फ़र्जी ] दे० 'फरजी'। करना। फर्त-संज्ञा पुं० [अ० फ़त ] अधिकता । बहुतायत । फरोख्त-संज्ञा ती० [फा० फ़रोस्त ] बेचने या विकने की क्रिया या भाव । विश्य । बिक्री । फर्द-संज्ञा स्त्री० फा० फ़र्द ] १. कागज वा कपड़े आदि का टुकड़ा जो किसी के साथ जुड़ा वा लगा न हो । २. कागज का फरोख्ता-वि० [फा० फ़रोस्तह ] विक्रीत । बेचा हुआ। टुकड़ा जिसपर किसी वस्तु का विवरण, लेखा, सूची दा फरोग-संज्ञा पुं० [फा० फ़रोग] १. प्रकाश । रोशनी । २. शोभा । सूचना प्रादि लिखी गई हों या लिखी जाय । ३. प्रसिद्धि। यौ०-फर्द करारदाद जुर्म = फौजदारी की अदालत की कार्र- फरोगुजाश्त--संज्ञा पुं० [फा० फ़िरोगुजारत, उर्दू फरोगुजारत वाई में वह लेख जिसके द्वारा न्यायाधीश वा मजिस्ट्रेट (= गफलत, कोताही)] छोड़ देना । उपेक्षित करना। भूल अभियुक्त व्यक्ति को किसी अपराध का अपराधी ठहराकर जाना । उ०-जाने का ख्याल विलकुल फरोगुजाश्त कर चुके उससे उत्तर मांगता है। फर्दतालिका = वस्तुओं की वह सूची हैं ।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १३५ । जो कुरकी करनेवाले को अदालत में देनी पड़ती है। फर्द फरोदस्त-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] एक प्रकार का संकर राग जो गौरी, सजा= फौजदारी विभाग में वह कागज जिसपर अपराषी कान्हड़ा घोर पूरबी के मेल से बना होता है । कहते हैं, यह के दंड का विवरण वा व्यवस्था होती है। फर्दहकूक-बंदो- राग अमीर खुसरो ने निकाला था। बस्त में वह कागज जिसमें किसी गाँव के स्वत्वाधिकारियों २. एक ताल जो १४ मात्राओं का होता है और जिसमें ५ माघात के स्वत्व का विवरण लिखा रहता है। फर्दहिसाब = हिसाब और २ खाली होते हैं। इसके तबले के बोल इस प्रकार हैं- का लेखा या चिठ्ठा । धिन', धिन, पाकेटे ३, ताग घिन घा गदे ता, तेटेकता, ३. रजाई, थाल मादि का ऊपरी पल्ला जो अलग वनता और गदिधेन । धा। बिकता है । चद्दर । पल्ला । दे० 'फरद' । ४. वह पशु या