पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३८७

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भलमनसत भर्तृधनी भर्तृप्नी- [- सश' स्त्री० [सं० ] वह स्त्री जो अपने पति की हत्या करे। भर्म-पंशा स० पुं० [स०] १. सोना । स्वणं । २. नाभि । ३. वेतन । पतिघ्नी । पतिघातिनी [को०) । भृति । मजदूरी (को०) । ४. एक सिक्का । भर्तृत्व 1-सज्ञा पु० [सं०] पति का भाव । स्वामित्व । भर्म' '- पु० [ स० भमन् ] १. पोषण भरण । २. मजदूरी । भर्तृदारक-सज्ञा पुं॰ [ स०] राजपुत्र । युपराज (को०) । वेतन । ३. सोना। ४. स्वर्ण मुद्रा। सोने का सिक्का । ४. धतूरा । ५. नाभि । ६. बोझा। वजन । ७. गृह । भान । भर्तृदारिका-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] राजपुत्री । राजकुमारी । मकान (को०] । भदेवता, भर्तृदेवता- सज्ञा स्त्री० [ म० ] वह स्त्री जो पति को भमेन-सज्ञा पु० [ स० भ्रमण ] दे० 'भ्रमण' । देवता रूप में माने [को०] । भमना-कि० अ० [सं० भ्रमण, हिं. भ्रमना ] चक्कर खाना । भर्तृमती-सञ्चा मी० [ स० ] सुहागिन । सधवा स्त्री। डाँपाडोल होना । उ०--काम वान सौ भमि चित केसे मिटिहै भतृव्रत-सज्ञा पु० [स०] पतिव्रत [को०] । खेद ।-प्रज० प्र०, पृ०६६ | भर्तृव्रता-सशस्त्री० [ स० ] पतिव्रता [को०] । भर्य-- III पु० [स०] भरण पोपण का व्यय । खर्चा | गुजारा। भर्तृहरि-सहा पु० [सं०] १. प्रसिद्ध कवि जो उज्जयिनी के राजा विशेप-कौटिल्य ने लिखा है कि विशेष अवस्याप्रो में राज्य की विक्रमादित्य के छोटे भाई और गधर्वसेन के दासीपुत्र थे । ओर से पत्नी को पति से 'भय' दिताया जाता था। विशेष-कहते हैं, ये धपनी स्त्री के साथ बहुत अनुराग रखने भर्रा-ज्ञा पु० [ भ' शब्द से अनु० ] १. पक्षियो की उड़ान । २. थे। पर पीछे से उसकी दुश्चरियता के कारण ससार से एक प्रकार की चिडिया | ३. झांसा । पट्टी । दम । चकमा । विरक्त हो गए थे । यह भी कहा जाता है कि काशी मे जैसे, एक ही भरे में तो वह सारा रुपया नुका देंगे । पाकर योगी होने के उपरात इन्होने शृगारशतक, नीतिशतक, क्रि० प्र०-पाना । वैराग्यशतक, वाक्यपदीय और भट्टिकाव्य आदि कई ग्रयों भरीना-क्रि० प्र० [ भर से अनु० ] भरं मरं शब्द होना । जैसे, की रचना की थी। कुछ लोगो का यह भी विश्वास है कि ये -प्रावाज भर्गना। उ०-उसका गला भर्राने लगा.- अपने भाई विक्रमादित्य के ही हाथ से मारे गए थे | प्राजकल ककाल, पृ० १५०। कुछ योगी या साधु हाथ मे सारगी लेकर इनके संबंध के भर्सन-सञ्ज्ञा स्त्री० [२० भर्सन] १. निदा । अपवाद । शिकायत । गीत गाते और भीख मांगते हैं। ये लोग अपने आपको इन्ही २. फटकार । डाँट डपट । के संप्रदाय का बतलाते हैं। भलंदन-संज्ञा पु० [सं० भलन्दन] पुराणानुसार कन्नौज के एक २. एक प्रसिद्ध वैयाकरण। राजा का नाम जिसको यज्ञकुंड से कानावती नाम की एक विशेष-संस्कृत व्याकरण की एक शाखा पाणिनीय व्याकरण के कन्या मिली थी। ये बहुत बड़े प्राचार्य थे। 'वाक्यपदीय' नामक व्याकरण दर्शन भल'-मंज्ञा पुं॰ [सं०] १. मार डालने की क्रिया। वध । २. दान । के अत्यंत प्रौढ़ नथ की उन्होंने रचना की है जो पाकरण में ३. निरूपण । ही नही अन्य संस्कृत दर्शन के ग्रयों में प्रमाणरूप से प्रादर- पूर्वक उचत किया गया है। 'हरि' सभवतः इनका नाम- भल-क्रि वि० [हिं० भला] दे॰ ला। उ०—तन मन दिया तो संक्षेप था और इसी नाम से इनका उल्लेख किया गया है। भल किया, सिर का जासी भार । कबहूँ कहै कि मैं दिया, महाभाष्यकार द्वारा निर्दिष्ट स्फोटवाद या शब्रह्मवाद धनी सहेगा मार ।-कबीर सा० स०, पृ० २। मत के प्रौढ़ प्रतिष्ठापक के रूप में 'हरि' का नाम प्रसिद्ध है। भल-प्रय [ म० भल ] अवश्य । निश्चय । तत्वतः । (वैदिक)। कहते हैं कि व्याकरण महामाष्य की टीका भी इन्होने लिखी भलका ---संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. एक विशेष माकार का बना हुमा थी जिसकी पूर्ण प्रति अब तक उपलब्ध नहीं है । सोने या चांदी का कडा जो शोभा के लिये नथ मे जडा जाता ३. एक संकर राग जो ललित और पुरज के मेल से बनता है है। २. एक प्रकार का बास । इसमें सा वादी और'म संवादी होता है। भलका@२-संज्ञा स्त्री॰ [सं० भल्ल (= वारणान)] तीर का फल । भर्त्सक-संज्ञा पुं० [सं०] भत्सना करनेवाला । गांसी। उ०-दादू भनका मोरे भेद सौ, साल मंझि पराण ।-दादू० बानी, पृ० १७ । भर्त्सन-संज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'भत्सना' । भर्त्सना-संज्ञा श्री० [स०] १. निंदा। शिकायत । २. डांट डपट । भलटी-संज्ञा स्त्री० [देश॰] हंसिया नाम का लोहे का प्रौजार । भलपति-संज्ञा पुं० [हिं० भला+स० पति ] भाला रखनेवाला। भर्सित'-वि० [सं०] निदित । तिरस्कृत । नेजेबरदार । उ०-ऊपर कनक मजूसा, लाग चंवर प्रौढार । भत्सिता-संज्ञा पु० दे० 'भन्संना'। मलपति बैठ भाल ले और बैठ घन्कार |-जायसी (शब्द॰) । भर्थरीि-सञ्ज्ञा पु० [ स० भर्तृहरि] दे० 'भर्तृहरि'। भलमनसत-पंज्ञा स्त्री० [हिं० भला+मनुष्य+त (प्रत्य॰)] भर्म-शा पु० [सं० भ्रम ] दे० 'भ्रम' । भलेमानस होने का भाव । सज्जनता । शराफत ।