पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३९३

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भत्मगर्भ ३६३२ भांडागारिक भस्मगर्भ-संज्ञा पु० ] स०] तिनिश नामक वृक्ष । भस्मीभूत-वि० [सं० ] जो जलकर राख हो गया हो। विलकुल भस्मगर्भा-मवा खा० [स०] १. रेणुका नामक गंधद्रव्य । जला हुमा ।. २. शीशम । भरसड़-वि० [अनु० भरस ] बहुत मोटा और भद्दा । (विशेषतः भरमगात्र-संज्ञा पु० [सं०] जिसका शरीर भस्म हो गया हो। आदमी)। कामदेव को। भस्सी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ? ] कोयले प्रादि का चूरा । भस्मचय-सा पु० [सं०] भस्म राशि । भहरा-संक्षा पु० [ देश० ] गुफा । खोह । उ०—ये महात्मा उन नौ भस्मजावाल-संज्ञा पु० [स०] एक उपनिषद् का नाम । संतो मे से थे जो सुंदरदास जी के साथ फजहपुर के भहरे भस्मता--सशा सी [स०] भस्म होने का कर्म । (गुफा) मे १२ वर्ष तक तप (योगसाधन) मे रहे थे।- भस्मतूल-सञ्ज्ञा पु० [म.] तुपार । हिम । सुदर० ग्रं० (जी.), भा० १, पृ० ८४ । भस्मप्रिय-सज्ञा पुं० [स०] शिव । महादेव । भहराना-क्रि० प्र० [ अनु०] १. टूट पड़ना। २. झोक से गिर भस्मवाण-सज्ञा पु० [स०] ज्वर [को०] । पड़ना । एकाएक गिरना । उ०-(क) मलूक कोटा मांझरा भात परी भहरान । ऐसा कोई ना मिला जो फेरि उठाव भस्मभून-वि० [स० ] मृत । जो भस्म हो चुका हो [को॰] । भस्ममेह-सञ्ज्ञा पु० [स०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का आन । मलूक० बानी, पृ० ४० । (ख) आगि लगे वहि घाटे अश्मरी रोग जो मेह के कारण होता है। वाटे जहां किहेउ पयान। छीकत बरदी लादेहु नायक मांग सेंदुर महरान ।-पलटु० वानी, भा० ३, पृ० ८५ । भस्मवेधक-संज्ञा पु० [स० ] कपूर । -सज्ञा स्त्री॰ [ स० भ्रः] दे॰ 'भौंह' । भस्मशयन, भस्मशय्या-सज्ञा पु० [सं०] शिव । भांग'-वि॰ [ स० भाग ] भांग का बना हुमा। गांग का । भस्मशकरा-सज्ञा सी० [सं०] पोटास [को॰] । भांग -सज्ञा पु० दे० 'भागीन' [को०] । भस्मशायी-सज्ञा पु० [स० भस्मशायिन् ] शिव । भांगक-सज्ञा पु० [सं० भाङ्गक ] फटा हुआ कपड़ा । चिथड़ा (को०] । भस्मसात्-वि० [स० ] जो भस्मरूप हो गया हो। भस्मीभूत । भांगोन'-संज्ञा पुं० [सं० भाङ्गीन ] भाग का खेत । भस्मस्नान-संज्ञा पु० [ स० ] राख से नहाना । सारे शरीर में भांगीन-वि० भागनिर्मित । भांग का [को०] । राख मलना। भस्मांग-सत. पु० [ सं० भस्माङ्ग] १. एक प्रकार का पोत । भांजा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] भानजा । बहिन का पुत्र । २. एक रत्न । भस्म के रंग का पिरोजा [को०] । भाड-संशा पु० [ स० भाण्ड ] १. पात्र । वर्तन । २. पेटी। वक्स । भस्माकार-मज्ञा पुं० [स० ] धोबी। ३. मूलधन । ४. प्राभूषण । ५. अश्व का आभूषण । घोड़े का एक साज । ६. एक वाद्य । ७. दूकान का सामान । भस्म कूट-संज्ञा पु० [म.] पुगणानुसार फामरूप का एक पर्वत जिसपर शिव जी का वास माना जाता है । दुकान की समग्र वस्तुएं । ८. नदी का मध्यभाग । नदी का पेटा । ६. भांड़पन । भंड़ती। भीड का काम । १०. प्रौजार । भस्माग्नि-सक्षा स्त्री॰ [म० ] भस्मक रोग । यत्र । ११. सामान या माल रखने का पात्र । १२. गर्दभाड भस्माचल-संशा पु० [सं०] पुराणानुसार कामरूप के एक पर्वत नाम का वृक्ष [को०] । का नाम । यौ०-भाटगोपक = बरतनों का रखरखाव करनेवाला व्यक्ति भस्मावशेप-वि० [ स० भाम+अवशेष ] जो जलकर राख मात्र रह गया हो । राख के रूप में बचा हुमा को०] । (बौद्ध) । भांडपति=व्यापारी। भांडपुट = नापित । नाऊ । भांडपुप्प = एक प्रकार का सांप भांडप्रतिभांडक = वस्तु, भस्मासुर-सज्ञा पु० [सं०] पुराणानुसार एक प्रसिद्ध दैत्य । परिवर्तन । विनिमय । भांडभरक=पात्र मे रखी हुई वस्तुएँ। विशेप-शिव से वर प्राप्त करने से पहले इसका नाम 'वृकासुर' भाडमूल्य=पूजी जो वस्तु या सामान के रूप में हो। था। इसने तप करके शिव जी से यह वर पाया था कि भांडशाला= भंडार । भाडागार । तुम जिसके सिर पर हाय रखोगे, वह भस्म हो जायगा । पीछे से यह असुर पार्वती पर मोहित होकर शिव को ही जलाने भांडक-सञ्चा पु० [ स० भाण्डक ] १. छोटा बरतन । छोटा पात्र । पर उद्यन हुमा । तब शिव जी भागे। यह देखकर श्रीकृष्ण २. माल । व्यापार की वस्तुएं (को०] । ने बटु का रूप धरकर छल से इसी के सिर पर इसका हाथ भांडन-सञ्ज्ञा स० [स० लड़ाई। झगड़ा । संघर्ष । रखवा दिया जिससे यह स्वय भस्म हो गया। भाडागार-संज्ञा पु० [ स० भाण्डागार ] १. भडार । २. कोश । भस्माहव्य-सज्ञा पु० [सं०] कपूर । खजाना। भरिमत-नि- [म० ] १. जलाया हुआ | २. जला हुआ । भांडागारिक-सज्ञा पु० [स० भाण्डागारिक ] १. भंडार का निरी- भस्मोकरण-सस पु० [सं०] किसी वस्तु को राख के रूप में क्षक या प्रधान | भडारी। २. खजाची। उ०-भाडागारिक परिणत करना । पूर्ण रूप से जलाना । जो खजावे का प्रबंध करता था।-हिंदु० सभ्यता, पु० २६२ ।