पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४१

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फलकना १२८० फलदान --- फलकना-क्रि० प्र० [ अनु०] १. छलकना । उमगना। उ० फलाह-संशा पुं० [सं०] फन ग्रहण करना । लाम लेना (को०] । कैकेयी अपने करमन को सुमिरत हिय में दलकि उठी । सब फलरहि-वि० [ स०] फलयुक्त वा समय पर फननेवाला [को०] । देवन की मानि मनौती पूरन होइ के फलकि उठी।- फलपहिष्णु-० [स० ] फायुक्त (o] | देवस्वामी (शब्द०)। २. दे० 'फरकना' । फलग्राही-राजा पु० [सं० फलप्राहिन् ] वृक्ष । पेट। फलकयंत्र-सज्ञा पु० [ स० फलकयन्त्र] ज्योतिष संबंधी एक प्रकार फलचमस-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का पुराना व्यंजन । का यंत्र जिसो अनुसार ज्या प्रादि का निर्णय किया विशेप-प्रादतत्यानुसार यह वर की पाल को यूटगार जाता है। उसके चूर्ण को दही में मिलाकर बनाया जाता था। फलकर-सवा पुं० [हिं० फल + कर ] वह कर जो वृक्षों में फल पर लगाया जाय । फलो पर लगनेवाला महसूल । फलचारक-गजा पुं० [सं०] बौस मत के अनुसार प्रानीग काल के एक कार्मचारी पद का नाम । फलकर्कशा-संशा सी० [सं०] जंगली वेर । झड़वेरी। फलचोरक-नी: [0] चोर या चोर नाम का गंघद्रव्य । फलका'-संज्ञा पुं० अ० फलक ] नाव या जहाज फी पाटन मे वह दरवाणा जिसमें से होकर नीचे से लोग ऊपर जाते और फलछदन-रा पुं० [सं०] लकड़ी के ताने या फलक का बना घर सो०] । ऊपर से नीचे उतरते हैं । (लश०)। फलड़ा-सा पु० [हिं० फर + (प्रत्य॰)] (हथियार प्रादि फलकार--सशा पुं० [ स० स्फोटक, प्रा. फोडो, हिं० फोला ] से) फल का प्रत्यार्य रूप । जैसे, पात का फलदा। फफोला। छाला । झाका । उ०-कोमल घदन परे पहु फलके । कमल दलन पर जनु कन जल फे। -पमाकर फलतः-कि० वि० [ #० फारता] फलस्वरूप । परिणामतः । (शब्द०)। इसलिये । जैसे, लोगों ने पन देना बंद कर दिया और फलका 3-संज्ञा पुं० [हिं० फूलना, फुलका ] दे० 'फुलका' । उ०-- फलतः निकित्मालय बंद हो गया। पाटो वीच फलका मास बाटी दाल पारी|-शिखर०, फलता-संशजी० [हिं० फलना ] फलने गो निया या भाव । पृ० ५२ जैसे,—इस साल सभी जगह माम को फलत बहुत अच्छी फलकाम-वि० [सं०] जो कर्म के फल की कामना करता हो। जो निष्काम होकर काम न करे बल्कि सलाम होकर करे । फलत्रय-संस पु० [सं०] १. द्राक्षा, पप और पाममीरी, ये तीनो फलकारना-क्रि० स० [हिं०] ललकारना । बढ़ावा देना । फल । २. हड, बहेड़ा और प्रविना इन तीनों का समूह । त्रिफला। उ०-तरकि तरकि पति बन्न से डारे । मदमत ठढी फलकार।-नंद० ग्रं, पृ० १९२ । फलत्रिक-मज्ञा पुं० [ #०] १. भावप्रकार के अनुसार त्रिफला । फलकाल-संज्ञा पु० [ हट, बहेना और प्राक्ला । २. अमरगोश के अनुसार सोंठ, ] फल लगने का समय या मोसम [को०] । पीपल और काली मिर्च । फलका वन-संज्ञा पु० [ स०] एफ कल्पित वन का नाम जिसके संबंध में यह प्रसिद्ध है कि वह सरस्वती को बहुत प्रिय है । फलद-वि० [सं०] फल देनेवाला। जो फल दे। 30-जूस समै न विचारि तू, वादि फर अपसोस । अपने करम फलद चित, फलफी-वि० [सं० फलाकिन् ] १. फलक द्वारा निर्मित । काष्ठ के हरिकोट न दोस।-स० सप्तक, पु० २५८ । तस्ते का बना हुमा । २. ढाल से सज्जित (को०] फलको संज्ञा स्त्री० [स०] १. एक प्रकार की मछला जिसे चीतल फलद-संश पुं० वृक्ष । पेठ । कहते हैं । इसे फलि गौर फल्लकी भी कहते है। २. चंदन फलदाइक-वि० [सं० फल + दायक ] : 'फलदायफ' । उ०- (को०) । ३. काठ की चौकी (यो०) । जो तुम कहत तुमहू सब लाइक । जगनाइक पर सब फल- दान-द० प्र०, पृ० २२६ । फलकी वन-मंज्ञा पुं॰ [सं०] महाभारत के अनुसार एक वन का नाम जो किसी समय तीर्थ माना जाता था। फलदाता-वि० [सं० फलदातृ ] १. फल देनेवाला। २. फलित होनेवाला। ३. लाभदायक [को०] । फलकृच्छ-संज्ञा पु० [ स०] एक प्रकार का कृच्छ्र व्रत जिसमें वेल प्रादि फलो के क्वाप को पीकर एक मास तक रहना फलदान-नंज्ञा पुं० [हिं० फल + दान ] १. हिंदुनो को एक रीति जो विवाह होने के पहले उस समय होती जब कोई व्यक्ति पडता है। घपनी कन्या का विवाह किसी के लड़के के साथ करना फलकृष्ण-संज्ञा पु० [सं०] १. जल आंवला । २. करंज का पेड़ । निश्चित करता है। फलकेसर-सज्ञा पुं० [ स० ] नारियल का वृक्ष । विशेप-इसमें कन्या का पिता रुपए, मिठाई, अक्षत, फूल फलकोश, फलकोप-सज्ञा पु० [ स०] १. पुरुष की इंद्रिय । लिंग । प्रादि वस्तुएँ लोकप्रण के अनुसार शुभ मुहूर्त में वर के घर २.अंडकोष । भेजता है । उस समय विवाह निश्चित मान लिया जाता है । फलखंडन-सज्ञा पु० [सं० फलखण्डन ] फल की प्राप्ति न होना । इसे वरक्षा भी कहते हैं। निराशा को०] । २. विवाह संबंधी टीके की रसम । GO