पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४११

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साव अहंत ३६५० भावना द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय ये छह पदार्थ भावज्ञ-वि० [सं०] भाव या मनोभावों को समझनेवाला । उ०- जिनका अस्तित्व होता है। प्रभाव का उल्टा। ४१. फोख । घिर' काल रसाल ही रहा, जिस भावज्ञ कवीद्र का कहा, कुक्षि (को०)। जय हो उस कालिदास की।-साकेत, पृ० ३२० । भावग्रहंत-प्रज्ञा पुं॰ [स० भावअर्हन्त] एक प्रकार के तीर्थंकर (जैन)। भावठी-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] कच्ची खाल । विना पकाई हुई खाल । भावइ-प्रव्य [हिं० भावना या भाना (= अच्छा लगना), उ०-भरी प्रधौड़ी भावठी, बैठा पेट फुलाय । दादू सूकर मि० पं० भावे ] जी चाहे । इच्छा हो तो। उ०-भावइ स्वान ज्यो, ज्यों आवै त्यों खाइ ।-दादु०, पृ० २६० । पानी सिर पर इ, भावइ परे अंगार |—(शब्द०)। भावत -वि० [स०] [वि० सी० भायती] आपका । श्रीमान का भावईल -सवा स्त्री॰ [ स० भाविन्>भावी ] होनहार । भावी। (प्रादरार्थक प्रयोग)। उ०—पसु प्राखेटक करन को, संग नृपति बरदाइ । असे में भावता-वि० [हिं० भावना ( = अच्छा लगना) +ता (प्रत्य॰)] इह भावई, अफसमात हुप्राइ ।-पृ० रा०, ६।२८ । [ सी० भावती ] जो मला लगे। उ०-(क) सरद चंद भावक'-क्रि० वि० [सं० भाव+ क (प्रत्य॰)] किंचित् । थोड़ा सा । निंदक मुख नीके | नीरज नयन भावते जी के । -तुलसी जग सा । कुछ एक । उ०-भावक उभरोही भयो कछुक (ब्द०)। (ख) सुनियत भव भावते गम है सिय भावनी परयो भरु प्राय । सीपहरा के मिस हियो निसि दिन हेत भवानि हैं । —तुलसी (शब्द०)। जाय । --बिहारी (शब्द०)। भावता-पज्ञा पु० प्रेमपात्र । प्रियतम । उ०-पथिक मापने पथ भावक'- वि० [सं०] भाव से भरा। भावपूर्ण । उ०-भेद त्यों लगी इहाँ रहो न पुपाइ । रसनिधि नैन सराय में एक भावतो अभेद हाव भाव हूँ कुभाव केते, भावक सुबुद्धि यथामति आइ ।-रसनिधि (शब्द०)। निरधार ही।-रघुराज (शब्द०)। भावताव-संज्ञा पुं० [ हिं भाव+ताव ] मिसी चीज का मूल्य या भावक-सज्ञा पु० [सं०] १. भावना करनेवाला । २. भावसंयुक्त । भाव प्रादि। निखं । दर । ३. भक्त । प्रेमी । अनुगगी। उ०—ताहू पर जे भावक पूरे क्रि० प्र०—करना ।—जाँचना। देखना । ते दुख सुख सुनि गाथा ।-रघुराज (शब्द॰) । ४. भाव । भावती-वि० स्त्री० [हिं० भावता] जो भला लगे। भला लगने. भावक-वि० [सं०] उत्पादक । उत्पन्न करनेवाला । वाली। उ०-बाल विनोद भावती लोला पति पुनीत पुनि भावकोश-सज्ञा पु० [स० भाव+कोश] भावों का क्षेत्र। भावचक्र । भाषी हो ।—सूर (शब्द०)। मन की गति का वह अंश जहाँ तक भाव जा सकते हैं। भावत्क-वि० [सं०] [वि० सी० भावस्की ] दे॰ 'भावत' [को०] । १०-प्रीति वैर गर्व अभिमान तृष्णा इंद्रियलोलुपता इत्यादि भावदत्त दान--संज्ञा पुं० [स० ] वास्तव मे चोरी न करके, चोरी भावकोश ही माने गए हैं। रस०, पृ० १७० । की केवल भावना करना । यह जैनियो के अनुसार एक प्रकार भावगति-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० भाव+गति इरादा । इच्छा । विचार । का पाप है। उ०—जरा छिपे रहो, जिससे, मैं महाराज की भावगति भावदया-वि० [स० ] किसी जीव की दुर्गति देखकर उसकी रक्षा जान सकू।-रत्नावली (शब्द॰) । के अर्थ अंतःकरण में दया लाना । (जैन)। भावगम्य-वि० [स० ] भक्तिभाव से जानने योग्य । जो भाव की भावदर्शी-वि० [सं० भावदर्शिन् ] ३० भालदी' । सहायता से जाना जा सके । उ.--त्रयः शूल निर्मुलन शूल- पाणिम् । भजेऽह भवानीपति भावगम्यम् ।—तुलसी (शब्द०)। भावन-वि० [हिं० भावना (= अच्छा लगना)] मच्छा लगनेवाला । प्रिय लगनेवाला । जो गला लगे। भानेवाला। भावग्राहिता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० भाव+ग्राहिता] भाव ग्रहण करने उ०-इमि कहि के व्याकुल भई, सो लखि कृपानिधान । की शक्ति या प्रकृति । भावप्रवणता । भावुकता । उ०-उसी धीर धरहु भापत भए, भव ‘भावन भगवान |-गिरिधर के अनुसार उसकी भावनाहिता होगी।-रस क०, पृ० १६ । (गन्द०)। भावग्राहो-वि० [ स० भावग्राहिन् ] भावों को या तात्पर्य को यौ०-मनभावन । समझनेवाला । रसज्ञ । भावन-सञ्ज्ञा पु० [स०] १. भावना। २. ध्यान । ३. विष्णु । भावग्राह्य --वि० [सं०] १. भक्ति से ग्रहण करने योग्य । जिसे ४. शिव (को०) । ५. निमित्त कारण (को०)। ६. अन्वेषण | ग्रहण करने में मन में भक्तिभाव लाने की आवश्यकता हो । 'अनुसंधान (को०)। ७. चिंतन । कल्पना करना (को०)। ८. २. भाव द्वारा ग्राह्य । प्रमाण (को०) । ६. सुगंधित करना (को०)। १०. द्रव पदार्थ भावचेष्टित-क्रि० वि० [स०] शृंगारी या प्रेमसंबधी चेष्टा । से तर करके खरल करना (को०) । भावज'-वि० [सं०] भाव से उत्पन्न । भावन-वि० दे० भावक' [को॰] । भावज-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] कामदेव । भावना'-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मन में किसी प्रकार की चिंता भावज-संशा औ• [ स० भ्रातृजाया हिं० भौजाई ] भाई की स्त्री । करना । ध्यान | विचार । ख्याल । उ०-जाकी रही भावना भाभी। गौजाई। जैसी। हरिमूरति देखो तिन्ह तैपी।—तुलसी (शब्द०)।