पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४२६

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भीमसेनी ६६६५ भील' स० भोभसेनी-वि० भीमसेन संवधी। भीमसेन का । जैसे, भीमसेनी भीरा-वि० [स० भीरु ] डरपोक । कायर । एकादशी। भीरी-नंज्ञा स्त्री॰ [ देश०] १. अरहर की टाल । २. अरहर का भीमसेनी एकादशी-चा स्त्री० [हिं० भीमसेनी + एकादशी ] बोझ । ३. भीड़ । गुट । समूह। उ०-कहत कि सुनहु भिया १. ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी। निजला एकादशी। २. माघ ही हीरी। अवर खेल खेलहु वटि भीरी।-नंद० प्र०, शुक्ला एकादशी। पृ०२८५। भीमसेनी कपूर-सज्ञा पु० [सं० भीमसेनी + ३ पूर ] दे० 'कपूर'। भोरु'- वि० [सं०] डरपोक । कायर | बुजदिल । कादर । भीमा-मज्ञा सा. [ स०] १. रोचना नाम का गंधद्रव्य । २. भीरु-पंज्ञा स्त्री० [स०] १. शतावरी। कंटकारी। भटकटैया । कोड़ा । चाबुक । ३. दक्षिण भारत की एक नदी जो पश्चिमी ३. बकरी । ४. छाया। ५. भीत या डरपोक स्त्री। ६. घाट से निकलकर कृष्णा नदी मे मिलती है । ४. दुर्गा । रजत | चाँदी (को०)। ५. एक प्रकार की नाव । ४० हाथ लबी, २० हाथ चौड़ी भीरु ३---संज्ञा पुं० [सं०] १. शृगाल । सियार । गीदड़ । २. व्याघ्र । तथा १० हाथ ऊंची नाव । (युक्तिव लातरु ।। बाघ । ३. ऊख की एक जाति । ४. खजुर (को०)। भीमा-वि० स्त्री० भयकर | भोपण । भीरुक-संज्ञा पु० [सं०] १. वन । जंगल । २. उल्लू । ३. एक भीमान्-[ सं० भीमत् ] भयंकर । भयावह । प्रकार की ईख । ४. चाँदी ५. व्याघ्र (को०)। ६. भालू भीमू-सहा पु० [हिं० ] भोमसेन । भल्लूक (को०)। ७. सियार । शृंगाल (को॰) । भीमोत्तर-संज्ञा पु० [सं०] कुम्हडा । कूष्माड । भीरुक-वि० डरपोक । कायर। भीमोदरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा का एक नाम । भीरुचेता-संज्ञा पु० [ सं० भारुचेतस् ] हिरण । भीम्राथली-शा पुं० [ देश० ] घोड़ो की एक जाति । उ०-जपानी भीरुचेतार-वि० डरपोक । पर्वती चीनिया भोटो ब्रह्मा देशी । धन्नी भीम्र थनी काठिया भीरुता-संज्ञा स्त्री० [ ] १. डरपोकपन । कायरता । बुजदिली । मारवाड़ मघि देशी।-रघुराज (शब्द॰) । २. डर | भय। भोया@f-प्रज्ञा पुं० [हिं० भैया ] भाई। उ०—गोरख भाँगि भोरुताई -सञ्चा सी० [सं० भीरुता+ई ] दे० 'भोरुता'। भषी नहिं कबहू सुरापान नहिं पीया । झुठहिं नाव लेत सिद्धन भीरुत्व-संज्ञा पुं० [स० ] दे० 'भीरता'। को नरक जाहिगो भोया ।-सुदर० ग्र, भा० २, भीरुपत्री, भीरुपर्णी-संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शतमूली' । पृ० ७१। भोरुयोध-वि० [स] ( राज्य या राजा) जिसके योदा अर्थात् भीर@-सज्ञा स्त्री० [हिं० भीड़ ] १. दे० 'भोड' । २. कष्ट । सैनिक डरनेवाले हो [को०] । दुख । तकलीफ । ३. संकट । विपत्ति। आफत । उ०- भीरुरंध्र-संज्ञा पुं० [सं० भीरुरन्ध्र ] भट्ठी। चूल्हा । (क) जब जब भीर परत संतन पर तब तब होत सहाई।- तुलसी (शब्द॰) । (ख) भोर बाँह पीर की निपट गखो भीरुसत्व-वि० [सं० ] स्वभावतः डरनेवाला [को०] । महाबीर कान के सकोच तुलमी के सोच भारी । -तुलसी भीरुहृदय'--संज्ञा पुं० [स०] हिरन । (शब्द॰) । (ग) अपर नरेश करै कोउ भोरा । वेगि जनाउब भीरुहृदय-वि० दे० 'भीरुचेता। धर्मज तीरा-सबल (२०६०) । भीरू-वि० [सं० भीरु ] 'भोर' । क्रि० प्र०-नाना ।-पड़ना । भीरू-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. स्त्री। (दि०) भीरु स्वभाववाली स्त्री। भीर-वि० [स० भीरु १. डरा हमा। भयभीत । उ०-वामदेव भीरे-क्रि० वि० [हिं० भिड़ना ] समीप । नजदीक । पास । राम को सुभाव सील जानि जिय नातो नेह जानियत रघुगेर भील-संज्ञा पु० [ स० भिल्ल ] श्री. भीलनी] एक प्रसिद्ध भीर हो ।-तुलसी (शब्द०)। २. डरपोक । डरनेवाला । जंगली जाति । भिल्ल । उ०-चौदह वरष पाछे पाए रघुनाथ कायर । साहसहीन । उ०-नृपहिं प्रान प्रिय तुम रघुवीरा । नाथ साथ के जे भील कहें पाए प्रभु देखिए ।-प्रियादास सील सनेह न छाडिहि भोरा।-तुलसी (शब्द०)। (शब्द०)।' भीरना--कि० अ० [सं० भी या हिं० भीरु ] डरना । भयभीत विशेष-बहुत ही प्राचीन काल से यह जाति राजपूताने, सिंध होना । उ०-सुनौ एक वात सुत तिया लै करो तगात चीरें और मध्य भारत के जंगलों और पहाड़ों में पाई जाती है। धोरें भीरें नाहिं पीछे उन भापिए। -प्रियादास (शब्द०)। इस जाति के लोग बहुत वीर और तीर चलाने में सिद्धहस्त भोरा-ज्ञा पु० [देश० ] एक प्रकार का वृक्ष जो मध्य भारत तथा होते है। ये क्रूर, भीषण और अत्याचारी होने पर भी सीधे दक्षिण भारत में होता है। इसकी लकड़ियो से शहतीर सच्चे और स्वामिभक्त होते हैं । कुछ लोगों का विश्वास है बनते हैं और इनमें से गोद, रंग और तेल निकलता है। कि ये भारत के प्रादि निवासी हैं। पुराणों में इन्हे ब्राह्मणी भोरा-संज्ञा सी० दे० 'भीर' या 'भीड़। कन्या और तीवर पुरुष से उत्पन्न सकर माना गया है। ७-५२