पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४३०

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भुक्तपूर्व ५५६६ भनेत्र भुक्तपूर्व-वि० [सं०] १. जो पहले खाया वा भोगा जा चुका हो । नो लोग दुखी अपने दुग्व में नुगत्यों जग क्लेश अगारा |- २. जो भोग कर तुका हो किो० । निश्चल (शब्द०)। भुक्तभोगी-वि० [स. भुक्तभोगिन् ] [ वि० सी. भुक्तभोगिनी ] विशेप-इस क्रिया का प्रयोग 'अनिष्ट भोग' के रहने में होता जो किसी चीज का सुख दुःख उठा चुका हो । है । जैसे, सजा भुगनना । दुःख गुगतना । सं० कि०-बेना। भुक्तवृद्धि-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] भुक्त वस्तु की वृद्धि अर्यात पेट । अन्न का फूलना। मुहा०-भुगत लेना = समझ लेना । निपट लेना । जैसे,—पाप भुक्तशेप-संज्ञा पु० [सं० ] अन्न आदि जो खाने से बचा हुआ हो । चिंता न करें, मैं उनसे भुगत लगा। २. उच्छिष्ट । जूठ। भुगतना-हि. भ. १. पूरा होना। निबटना। जैसे, देन का भुक्तसुप्त-वि० [स०] भाजन करके सोनेवाला (को०] । भुगतना; काम का भुगतना । २. वीतना । चुकना । जैसे, दिन भुगतना । भुक्ति-तच्या स्त्री० [सं०] १. भोजन । प्राहार । २. विषयोपभोग । लौकिक सुख । ३. धर्मशास्त्रानुसार चार प्रकार के प्रमाणो भुगतान-सा पुं० [हिं० भुगतना] १. निपटारा । फेनता। २. मे से एक । वजा । दखल । ४. ग्रहो का किसी राशि में एक मूल्य या देन नु काना। बेबाकी । जैसे, हुडो का भुगतान; एक अंश करके गमन वा भोग । ४. सीमा को०] । पड़े का गतान । ३. देना । देन । भुक्तिपात्र--सा पु० [सं०] भोजन का पान । खाने का बरतन । भुगतान घर-1 पु० [हिं॰ भुगतान+घर ] [ पं० क्लियरिंग हाउस बैंक व्यवस्था का एक प्रावश्यक प्रग जहां पर भुक्तिप्रद-वि० [स०] | वि० स्ना भुक्तिप्रदा] भोग देनेवाला । के पारस्परिक भुगतान की रकम का निबटारा किया भोगदाता। जाता है। भुक्ति प्रद २-सञ्चा पुं० मुंग। भुगताना-क्रि० स० [हिं• भुगतना का सझ० रूप] १. भुगतने का भुक्तिवर्जित-वि० [सं०] जिसका भोग उपभोग वजित हो (को॰) । सकर्मक रूप। पूरा करना। संपादन करना। उ०-घाम भुक्तोच्छिष्ट-सचा पु० [ स० ] जुठन । जुठ [को०] । धूम नीर श्री समीर मिले पाई देह, ऐसो धन कैसे दूत काज भुखमरा-वि० [हिं० भूख + मरना ] १. जो भूखो मरता हो । भुगतावैगो।-लक्ष्मण सिंह (शब्द०)। २. बिताना । लगाना। मरभुक्खा । भुक्खड़। २. जो खाने के पीछे मरा जाता जैसे-जरा से काम में सारा दिन भुगता दिया। ३. हो। पेटू। नुकाना। देना । बेबाक करना । जैसे, हुडी भुगताना । ४. भुखमरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] अन्न आदि खाद्य पदार्थों के अभाव में भुगतना का प्रेरणार्थक रूप । दूसरे को भुगतने में प्रवृत्त भूखों मरने की स्थिति । अकाल । करना । झेनाना । भाग कराना । ५. दुःख देना । दुःख सहने के लिये बाध्य करना। भुखमुहा-वि० [हिं० ] दे० 'भुखमरा' । भुखानी-संशा ती० [हिं० भूख] बुभुक्षित होने की स्थिति या भाव। भुगति. ---संशा सो० [स० भुक्ति ] दे० 'भुक्ति' । उ० --भुगति भूमि पिय क्यार वेद सिंधिय जल पूरन ।-पू० रा०, १४ । भुखाना--क्रि० अ० [हि० भूख ] भूख से पीड़ित होना । भखा होना। क्षुधित होना । उ०-सुनहु एक दिन एक ठिकाने । भुगाना-क्रि० स० [हिं० भोगना का प्रे० रूप] भोगना का गए चरावन सखा भुखाने ।-विश्राम ( शब्द०)। प्रेरणार्थक रूप। भाग कराना। भुखालू-वि० [हिं० भूख + थालू (प्रत्य॰) ] जिसे भूख लगी हो। भुगुता-संज्ञा जी० [स० भुक्ति ] प्रौकात । विसात । भूखा। उ०—तो भो भुखालू और गुरसेल है।-जतुप्रवध भुति " - स्त्री० [ स० भुक्ति ] दे० 'भुक्ति' । उ०-चला भुगुति (शब्द०)। मांग रह साजि कथा तप जोग |-पदमावत, पृ० १२२ । भुगत-सशा स्त्री॰ [ भुगुभुगु - सवा श्री. [H] अग्नि के प्रज्वलन की ध्वनि । भाग भुक्ति ] दे० 'भुक्ति'। जलने की आवाज (को०)। भुगतना-क्रि० स० [स० भुक्ति ] भोग करना । विषय करना। उ०-वालक ह भग द्वारे पावा। भग भुगतन • पुरिष भुगगना-क्रि० अ० [हिं० ] ३० 'भोगना'। उ०-जीव सो पर भुग्गय जुझ्न सुरपुर वास । -ह० रासो, पृ० १२१ । कहावा ।-कबीर न, पृ० २४४ । भुग्गा'-वि० [.] बुदबू । नूर्य । उ०-~-यह है भुगा, वह बहत्तर भुगतनारे-क्रि० स० [१० भुक्ति] सहना । झेलना । भोगना । उ०- घाट का पानी पिए हुए।-गोदान, पृ० ७५। (क) देह धरे का दंड है सब काहू को होय । ज्ञानी भुगतै ज्ञान करि अज्ञानी भुगते रोय । -कवीर (शब्द॰) । (ख) हम भुग्गा-ज्ञा पु० तिल आदि का एक प्रकार का तैयार किया हुप्रा तो पाप कियो भुगते को पुण्य प्रगट क्यों निठुर दियो री। क्रि० प्र०-झूटना। सूरदास प्रभु रूप सुधानिधि पुट थोरी विधि नही वियो री।-सुर (शब्द)। (ग) पहले हौं भुगतों जो पाप । भुग्न-वि० [सं०] १. टेढ़ा । व। २. रोगो । रुग्ग । तनु घरि के सहिही संताप । लल्लू (शब्द०) । (घ ) मौर भुग्नेत्र-मा पु० [ स०] एक प्रकार का प्रसाध्य सन्निपात । TO मीठा चूरा।