पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४४४

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। भूतोपदेश भूतों या पिशाचों के आक्रमण के कारण हो। वि० दे० एक राग जो मेघ राग का पुत्र माना जाता है। ३. शिव 'माधव निदान, पृ० १२४ । (को०)। ४. इद्र (को०) । ५. बटुक भैरव । भूतोपदेश-संज्ञा पुं० [सं०] किसी बीती हुई या उपस्थित वात का भूपतित-वि० [ स०] पृथ्वी पर गिरा हुमा । उ०-दीन नमस्कार निर्देश । अतीत या वर्तमान बात का संकेत (को०] । दिया भूपतित हो जिसने, क्या वह भी कवि? -प्रनामिका भूतोपसृष्ट, भूतोपहत-वि० [सं०] भूतादि से ग्रस्त । जिसे भुत पृ० १४०। लगा हो [को०] । भूपद-सञ्चा पुं० [स• ] वृक्ष । पेड़। भूत्तम-संज्ञा पु० [सं० ] सोना । स्वणं । भूपदो-तशा स्त्री॰ [ स० ] मल्लिका । चमेली। भूदान-सञ्चा पुं० [सं०] १. पृथ्वी का दान । २. एक अांदोलन जिसके प्रवर्तक विनोवा जी हैं। अधिक भूमिवालो से भूमि दान में भूपरा-सञ्ज्ञा पु० [ स० भूप ] सूर्य । (डि०) । लेकर भूमिहीनों में इसका वितरण किया जाता है। दे० भूपरिधि-सञ्ज्ञा पु० [सं०] पृथ्वी का घेराव । पृथ्वी की परिधि [को०] । 'भूमिदान'। भूपल-सञ्चा पुं० [स०] एक प्रकार का चूहा । घुस (को०] । भूदार - सञ्चा पुं० [सं०] सूपर । शूकर । भूपलाश-समा पु० [ स० ] एक प्रकार का वृक्ष । भूदारक-संज्ञा पुं० [सं०] शूर । वीर । भूपवित्र-सा पु० [ स०] गोबर । गोमय । भूदेव, भूदेवता-संज्ञा पुं॰ [सं० ] ब्राह्मण । भूपाटलो-सञ्चा खा. [ स०] एक प्रकार का पौधा [को०] । भूधन-सज्ञा पु० [ सं०] राजा । भूपाल-सरा पु० [स०] १. राजा। २. राजा भोज का एक भूधर-संज्ञा पुं० [स०] १. पहाड़ । २. शेष नाग । ३. विष्णु । नाम (को०)। ४. राजा। ५. वाराह अवतार । ६. वंद्यक के अनुसार एक भूपाली-सञ्चा स्त्री॰ [ स० ] एक प्रसिद्ध रागिनी जिसका स्वरांग प्रकार का यंत्र जिसमे किसी पात्र में पारा रखकर, मिट्टी से इस प्रकार है-सा, ग, म, घ, नि, सा। अथवा-रि, ध, उस पात्र का मुह बद करके उसे भाग में पकाते हैं । ७. सात सा, रि, ग, म,प। की संख्या या वाचक शब्द । ८. शिव । महादेव । उ० विशेष-इस रागिनी के विषय में प्राचार्यों में बहुत मतभेद भूधर पर्वत, वाह मेघ, अथवा भूधर राजा। वाह तुरंग । है । कुछ लोग इसे हिंडोल राग की रागिनी पोर कुछ माल- अथवा भूषर महादेव वाह वृषभ ।-दीन० प्र०, पृ० १७८ । कोश की पुत्रवधू मानते हैं। कुछ का यह भी मत है कि यह भूघरराज--संज्ञा पुं० [स०] हिमालय । संकर रागिनो है पोर कल्याण, गोड़ तथा बिलावल के मेले भूधरेश्वर-संज्ञा पुं० [सं०] पर्वतों का राजा, हिमालय । से बनी है। कुछ लोग इसे संपूर्ण जाति की भोर कुछ मोड़व भूधात्री-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] भूई प्रावला । जाति की मानत हैं। यह हास्य रस की रागिनी मानी जाती है। पर कुछ लोग इसे धार्मिक उत्सवों पर गाने के लिये भूध्र-संज्ञा पुं॰ [सं० ] पर्वत । पहाड़ । उपयुक्त बतलाते है। इसके गाने का समय रात को ६ दड से भून@t-संज्ञा पुं० [सं० अणगर्भ का बच्चा। १० दड तक कहा गया है। भूनना-कि० स० [सं० भजन ] १. अग्नि में डालकर पकाना | आग पर रखकर पकाना। जैसे, पापड़ भूनना। २. गरम भूपुत्र-सञ्चा पु० [सं०] १. मगल ग्रह । २. नरकासुर नामक राक्षस । वालू में डालकर पकाना । जैसे, चना भूनना । ३. गरम घी या तेल आदि में डालकर कुछ देर तक चलाना जिससे उसमें भूपुत्री-सज्ञा सो॰ [सं०] जानकी । सीता । सोधापन आ जाय । तलना । भूपेन्द्र ] राजायों का इंद्र । सम्राट् । संयोकि०-ढालना ।-देना। भूपेष्ट -सचा पु०1 ] खिरनी का वृक्ष । राजादनी वृक्ष [को०] । ४. बहुत अधिक कष्ठ देना। तकलीफ पहुंचाना । ५. गोली, भप्रकंप-संशा पु० [सं० भूप्रकम्प ] भूकंप । गोले और मशीन गनों से बहुत से लोगों का वध करना। भूफल-सज्ञा पुं॰ [स०] १. हरा मूग। २. एक प्रकार का चूहा । भनाग-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] केंचुपा । भूमिनाग [को॰] । दे० 'भूपल' (को०)। भूनिव-संज्ञा पुं॰ [ स० भूनिम्य ] चिरायता। भवदरी-सञ्ज्ञा पु० [ स०] एक प्रकार का छोठा वेर। भूनीप-संज्ञा पुं० [सं०] भूमिकदंव । भूभर्ता-मक्ष पुं० [ स० भू+भर्तृ] १. पृथ्वी का स्वामी । राजा । भनेता-संश पु० [ स० भूनेतृ ] राजा । २. पर्वत । भूघर [को०] । भूप-संज्ञा पुं० [सं०] १. राजा। उ०-भूर भवन भोर भई सब भभर-सवा पु० [स० भू+भर (= भार)] भूमि का भार । को जीउ जियो।-घनानंद, पु. ५५२ । २. सोलह की उ०-तिनहिं निदारहो भूमर हरिहो। संतन की रसवारी संख्या का वाचक शब्द (को०)। करिहो।-नद० प्र०, पु० २२८ । भूपग-संश पु० [सं० भूप] राजा (डि.) । भभल-वश श्री० [सं० भू+भुज या अनु ? ] गर्म राज वा भूपटल-संशा पुं० [सं०] पृथ्वी का पटल या जारी स्तर । धूल । गर्म रेत । ततुरी । उ०-उरे गृ६ चवत न दुख मुख भूपति-वंधा पुं० [सं०] १. राजा । भूर । २. हनुमत के मत से भूपेद्र- '-सा पु० स० [ HO