पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४४५

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भूभाग ३८४ भूमिचंपक जान गिन्यो, सीतल बनाउ ताहि सुरत सवादिनी । मखमल वैद्यक मे क्टु. उष्ण, वृष्य और पित्त तथा वीर्यवर्धक माना भूभन भी लूह सीरी पास भई दूरी भई तेरे यह धूम मई जाता है। चाँदनी।-भारतेदु ग्र०, भाग० २, पृ० १६६ । भूमिका'-सज्ञा सी० [सं०] १. रचना । २. अभिनय करना। भेस वदलना। ३. वक्तव्य के सवंव में पहले की हुई सूचना । भूभाग-सज्ञा पुं० [स०] भूखंड । प्रदेश । ४. किसी ग्रथ के प्रारभ की वह सूचना जिससे उस ग्रंय के भभज-संज्ञा पुं॰ [सं०] राजा। संबंध की पावश्यक और ज्ञातव्य वातों का पता चले । भूभुरिल -संज्ञा स्त्री० [सं० भू+- भुर्ज ] भूभल । ततूरी । गर्म रेत । मुखबध । दीवाचा । ५. स्वान । प्रदेश (को०)। ६. मरातिब । उ०—(क) पोछि पसे ऊ बयारि करौ अरु पार्य पखारिही मंजिल । तल्ला | खंड (को०) । ७. लिखने की तखती या भूभुरि डाढ़े |-तुलसी (शब्द॰) । (ख) जायहु वितै दुपहरी पाटी (को०)। ८. नाटक में प्रयुक्त वेशभूषा (को०)। ६. मैं वलि जाऊं। भुई भूभुरि कस घरिही कोमल पाउँ । वेदात के अनुसार चित्त की पांच अवस्थाएं जिनके नाम ये -प्रतापनारायण (शब्द०) । हैं-क्षिप्त, मूढ, विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध । भूभृत्-संज्ञा पुं० [सं०] १. राजा । २. पहाड़ । विष्णु (को०) । विशेष-जिस समय मन चंचल रहता है, उस समय उसकी ४. सात की संख्या (को०)। अवस्था क्षित; जिस समय वह काम, क्रोध आदि के वशी- भूभ्रत्त-संज्ञा पुं॰ [स० भूभृत् ] भूभृत् । पर्वत । उ०-भय भून रहता है उसपर तम या प्रज्ञान छाया रहता भूभ्रत्त असच चढ़िय जुग्गिन तिन उप्पर।-पृ० रा०, है, उस समय मूढ; जिस समय मन चंचल होने पर भी ७११२ । वीच मे कुछ समय के लिये स्थिर होता है, उस समय भूमंडल-संज्ञा पु० [ स० भूमण्डल] १. पृथ्वी । २. पृथ्वी की परिधि (को०)। विक्षिप्त; जिस समय मन बिलकुल निश्चल होकर किसी एक वस्तु पर जम जाता है, उस समय एकाग्र; प्रौर भूम-संज्ञा पुं॰ [सं० ] पृथ्वी। जिस समय मन किसी प्राधार की अपेक्षा न रखकर स्वतः भूमणि-संज्ञा ॰ [स० ] राजा [को०] । विलकुल शात रहता है, उस समय निरुद्ध अवस्था भूमय-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० भूमयी ] धरती का । धरती सवधी कहलाती है। धरती की मिट्टी का बना हुमा [को०] । १०. पृथ्वी । जमीन । भूमि । धरती । उ०—रसा अनंता भूमिका भूमयी-संज्ञा स्त्री॰ [ स० ] सूर्य की पत्नी, छाया । विलाइला कह जाहि !-नददास (शब्द॰) । भूमा-संज्ञा पु० [स० भूमन् ] १. अधिकता । वहुत्व । विशालता । मुहा०-भूमिका बाँधना=किसी बात को कहने के लिये पृष्ठ- प्रचुरता। २. ऐश्वर्य । संपत्ति । ३. विराट् पुरुष । ब्रह्म । ४. भूमि तैयार करना। किसी बात को थोडे मे न कहकर उसमें धरती। पृथ्वी । उ०—यही दुख सुख विकास का सत्य यही इधर उधर की बहुत सी बातें लाकर जोड़ तोड़ भिड़ाना। भूमा का मधुमय दान |-कामायनी, पृ० ५४ । ५. जीव । प्राणी । ६. बहुवाचकता (को॰) । यौ०-भूमिकागत = अभिनय मे निर्दिष्ट नाटकीय वस्त्र पहनने- नाला । भूमिकाभाग = कुट्टिम । (1) फर्श । (२) किसी भूमि-संज्ञा प्रो॰ [ स०] १. पृथ्वी । जमीन । वि० दे० 'पृथ्वी' । ग्रंथादि फा वह अंश जिसमें प्रस्तावना लिखी हो। मुहा०-भूम होना = पृथ्वी पर गिर पड़ना । उ० -वीर मूछि भूमिकुप्मांड-संज्ञा पु० [सं० भूमिकूष्माण्ड ] गरमी के दिनों में तब भूमि भयो जू -केशव (ब्द०)। होनेवाला कुम्हडा जो जमीन पर होता है । भुइँ कुम्हड़ा । २. स्थान 1 जगह। भूमिखजूरिका-मज्ञा स्त्री० [सं०] भूमिखजूरी | छोटी खजूर [को०] । यौ०-जन्म भूमि। ३. पाघार । जड़ । बुनियाद । ४. देश । प्रदेश । प्रात । जैसे, भूमिखजूरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की छोटी सजूर । पायं भूमि । ५. योगशास्त्र के अनुसार वे अवस्थाएं जो क्रम भूमिगत -वि० [सं०] १. जमीन पर गिरा हुआ। भूपतित । २. क्रम से योगी को प्राप्त होती हैं और जिनको पार करके वह छिपा हुप्रा । लुका हुअा। पूर्ण योगी होता है। ६. जीभ । ७. क्षेत्र। ८. मूमि । भूसंपत्ति भूमिगम - -सज्ञा पु० [ ] ऊँठ। (को०)। ६. एक का संख्यावोधक शब्द (को०) । १०. खड। भूमिगत-संज्ञा स्त्री० [सं० ] पृथ्वी के अंदर का गतं । गुहा । गुफा । मंजिल । तल्ला (को०)। ११. नाटक मे पात्र का अभिनय । भूमिगृह-संज्ञा पु० [ स० ] तहखाना । भूवरा । भूमिका [को०)। भूमिगोचर- संज्ञा पुं॰ [ स०] मानव । मनुष्य [को०] । भूमिफंदक-सज्ञा पु० [ मं० भूमिकन्एक ] कुकुरसुता । भूमिचंपक-संज्ञा पुं० [ स० भूमिचम्पक ] एक प्रकार का फूलवाला भूमिकंदर-सज्ञा पु० [ स० भूमिकन्दर ] छत्रक । कुकुरमुत्ता [को०)। पौधा । भुइचंपा। भूमिकंदली-संज्ञा स्त्री॰ [ स० भूमिकन्दली ] एक प्रकार की लता। विशेप-यह पौधा भारत, बरमा, लंका, जावा यादि मे प्रायः भूमिकंप-संज्ञा पुं॰ [ सं० भूमिकम्प ] भूकंप | भूडोल । होता है। इसके लंबे लवे पत्ते बहुत ही सुंदर पौर फूल भूमिकदंब-संज्ञा पुं० [स भूमिकदम्ब ] एक प्रकार का कदम जो बहुत सुगंधित होते हैं। और इसी लिये यह प्रायः बगीचों में TO स०