पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४५

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स० फलाहारी ३२८४ फलोपेत फलाहारी'- संज्ञा पुं० [सं० फलाहारिन् ] [स्त्री० फलाहारिणी ] होती हैं और सूख जाने पर पशुओं के भी खाने के काम में फल खानेवाला । वह जो फल खाकर निर्वाह करता हो। पाती हैं । जैसे, मटर की फली, सेम की फली। फलाहारी २-वि० [हिं० फलाहार+ई (प्रत्य॰)] फलाहार संबंधी । फलीकरण-संज्ञा पुं० [सं०] भूसे या भूसी से अनाज को पल- जिसमे अन्न न पड़ा हो । जो केवल फलों से बना हो । गाना (को०] | फलिल'-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'फली' । उ०—फैलि परी हित की फलीकृत-वि० [सं०] १. मांडा या दोया हुमा। २. कूटा हुमा । फलि, अतरसूल गई | भागनि वल यह सुभ घरी विधि बनाय ३. फटककर साफ किया हुप्रा [को॰] । दई।-घनानद, पृ० ५५६ । फलीता-संशा पुं० [अ० फ़क्षीतह ] १. वड़ मादि के बररोह या फक्षि'- पु० [सं०] १. एक प्रकार की मछली जिसका मांस भारी, छाल प्रादि रेशों से वटी हुई रस्सी का टुकड़ा जिसमें तोड़े- चिकना, बलकारक और स्वादिष्ट होता है । २. शराव । दार बदूक दागने के लिये प्राग लगाकर रखी जाती है। पलीता। २. बची। ३. पत्ती डोर जो गोट लगाते समय पात्र । भाजन (को०)। फलिक'-वि० [ ] फल का भोग करनेवाला । सुंदरता के लिये कपड़े के भीतर किनारा छोड़कर ऊपर से वखिया की जाती है । ४. प्रेतवाधित को वाघाशांति के लिये फलिकर -सज्ञा पु० पहाड़ । पर्वत (को०] । धूनी देने वाली तावीज की वत्ती। फलिका-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. एक प्रकार की निष्पावी (सेम) जो मुहा०—फलोता दिखाना = (१) अाग लगाना । (२) तोप या हरे रंग की होती है । हरे रंग की सेम । २. सरपत प्रादि के बंदूक को दागना । फलीता सघाना = तावीज या जंतर की मागे का नुकीला भाग । धूनी देना। फलित'- वि० [ स०] १. फला हुप्रा । २. संपन्न । पूर्ण । फलीभूत-वि० [सं०] लाभदायक । फलदायक । जिसका फल या यौ०-फलित ज्योतिष = ज्योतिष का वह अंग जिसमें ग्रहों के परिणाम निकले । जैसे, परिश्रम फलीभूत होना । योग से शुभाशुभ फल का निरूपण किया जाता है । विशेष- फलुई।-संज्ञा स्त्री० [सं० ? ] एक मछली का नाम । दे० 'ज्योतिष'। फलूप-सज्ञा पुं० [सं०] एक लता [को०] । फलित-संज्ञा पु० १. वृक्ष । पेड़ । २. पत्थरफूल । शैलेय । छरीला । फलेंद्र-संशा पुं० [ सं० फलेन्द्र ] फलेंदा । बड़ा जामुन । फलितव्य-वि० [सं०] जो फलने के योग्य हो । फलने लायक । फलंदा-संशा पुं० [सं० फलेन्द्र ] एक प्रकार का जामुन जिसका फल फलिता-संशा स्त्री॰ [सं०] रजस्वला स्त्री । ऋतुमती स्त्री [को०] । वड़ा, गूदेदार और मोठा होता है। इसके पेड़ और पत्ते भी फलितार्थ-संज्ञा पुं० [सं०] साराश । तात्पर्यार्थ [को०] । जामुन से बड़े होते है । फरेंदा। फलिन-सज्ञा पुं० [ स०] १. वह वृक्ष जिसमें फल लगते हो । २. पर्या-नद । राजजंबू । महाफला । सुरभिपत्रा । महाजंबू । कटहल । ३. श्योनाक वृक्ष । ४. रीठा । फलेपाकी-संज्ञा स्त्री० [सं०] गंधमुस्ता। फलिनी-प्रज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. प्रियंगु। २. अग्निशिखा वृक्ष । फलेपुष्पा-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] गूमा । ३. सली । ४. इलायची। ५. मेंहदी। नखकरंज'। ६. फलेरुहा-संशा जी० [सं०] पाटलि या पाडर का वृक्ष । श्योनाक । ७. प्रायमाणा लता । ८. जलपीपल । ६. दुधिया । फलोच्चय-संज्ञा पुं० [सं०] फल का ढेर । दूधी । १०. दाख का बना हुमा पासव । फलोत्तमा-संशा जी० [सं०] १. काकली दाख । २. दुग्धिका । फली १-सञ्ज्ञा पुं० [सं० फलिन् ] १. श्योनाक । २. कटहल । ३. वह दुधिया । ३. त्रिफला। वृक्ष जिसमे फल लगते हों। फलोत्पत्ति-संशा पुं० [सं०] आम का पेड़ । फली-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. प्रियंगुलता। फलोत्पत्ति-संज्ञा स्त्री० १. फल पाना वा लगना । फल की उत्पत्ति विशेष-कवियों ने इसे प्राम की पत्नी कहा है। देखिए रघुवंश २. लाभ [को०] । के अष्टम सर्ग का ६१ वा श्लोक । फलोदक-संज्ञा पुं० [सं०] एक यक्ष का नाम । २. मूसली । ३. अमड़ा । ४. एक छोटी मछली । फलि (को॰) । फलोदय-मधा पुं० [सं०] १. लाभ । २. हर्ष। ३. देवलोक । फली-सज्ञा स्त्री० [हिं० फल+ई (प्रत्य॰)] छोटे छोटे पौधों में ४. निग्रह । प्रतीकार (को०)। ५. परिणाम या फल की लगनेवाले वे लवे और चिपटे फल जिनमें गूदा नही होता उत्पति (को०)। बल्कि उसके स्थान पर एक पंक्ति में कई छोटे छोटे बीज-, फलोद्भव-वि० [ सं०] जो फल से उत्पन्न हुमा हो । होते है। फलोपजीवी-वि० [सं०. फलोपजीविन् ] फल बेचकर जीविका । विशेष-ये फल खाए नहीं जाते बल्कि कच्चे ही तरकारी आदि चलानेवाला (को०] । के काम मे पाते हैं । प्रायः सभी फलियां खाने में बहुत पौष्टिक फलोपेत-वि० [सं०] फलयुक्त । फलवाला [को॰] । .