पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४५४

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भै ३३३ भेजवाना संयो॰ क्रि-देना। भेड़-संज्ञा स्त्री० [हिं० भिड़ाना या भेड़ना (= थ,ड़ मारना) ] भेजवाना-कि० स० [हिं० भेजना का प्र० रूप ] भेजने के लिये चाँटा । थप्पड़ । (बाजारू) । प्रेरणा करना । दूसरे को भेजने में प्रवृत्त करना । भेजने का भेड़ना-संज्ञा पु० [हिं० भिड़ाना ] भिडाना । जकडना । दो चीजो काम दूसरे से करना। को मिलाना । जैसे, दरवाजा भेड़ना । उ० - इस उम्र में इश्क संयो॰ क्रि०-देना । जिव मे जाग, यो भेड़ लिया ज्यो भेड कुवाग -दक्खिनी०, पृ०१६८। भेजा'-संज्ञा पु० [सं० मज्जा ] खोपड़ी के भीतर का गूदा । सिर के अंदर का मज । भेडा -सशा पु० [हिं० भेड़ ] भेड़ जाति का नर । मेढ़ा । मेष । उ०-फले फल मुहा०-भेजा खाना= बक बक कर सिर खाना। बहुत बक दाख के पेड़ा। रहत जेहि भूमि पर भेड़ा।-घट०, पृ० २४७ । बककर तग करना। भेजा-संज्ञा पु० [हिं० भेजना ] चदा । वेहरी । भेड़िया-सज्ञा पुं० [हिं० भेड़ ] १. एक प्रसिद्ध जगली मासाहारी जंतु जो प्रायः सारे एशिया, यूरोप और उत्तर अमेरिका मे भेजाबरार-1 पु० [हिं० भेजा ( = चंदा) + फ़' ० बरार ] एक पाया जाता है । २. सियार, शृगाल | प्रथा जिसके अनुसार देहातो मे किसी दरिद्र या दिवालिए का देना चुकाने के लिये आस पास के लोगो से चदा लिया विशेष—यह प्रायः ३.३॥ हाथ लबा होता है और जंगली कुत्तों जाता है। से बहुत मिलता जुलता होता है। यह प्रायः बस्तियो के आस पास झुड बांधकर रहता है और गांवों मे से भेड़, भेट-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'भेंट। बकरियो, मुरगों अथवा छोटे छोटे बच्चो भादि को उठा भेटना-क्रि० स० [हिं० भेंटना ] दे॰ 'भेटना'। ले जाता है। यह अपने शिकार को दौड़ाकर उसका पीछा भेटनार-संज्ञा पु० [ देश०] कपास के पौधे का फल । कपास भी करता है और बहुत तेज दौड़ने के कारण शीघ्र ही फा डॉडा। उसको पकड़ लेता है। यह प्रायः रात के समय बहुत शोर भेटिया-वि० [हिं०] भेंट लानेवाला । उपहार या नजर मचाता है। यह जमीन में गड्ढा या मांद बनाकर रहता लानेवाला। है और उसी में बच्चे देता है। इसके बच्चों की प्रांखे जन्म भेड-संशा पुं० [सं०] १. भेड़ । २. तरणि । भेरा [को॰] । के समय बिलकुल बंद रहती हैं और कान लटके हुए होते हैं । इसके काटने से एक प्रकार का बहुत तीव्र विष चढ़ता है भेड़ -संज्ञा ली० [स० मेप या भेड ] [ सज्ञा पुं० भेंडा ] १. वकरी की जाति का, पर प्राकार में उससे कुछ छोटा एक प्रसिद्ध जिससे बचना बहुत फठिन होता है । चौपाया जो बहुत ही सीधा होता है और किसी को किसी भेडिहर-संज्ञा पु० [हिं० ] भेड़ पालनेवाला । गड़ेरिया। प्रकार का कष्ट नहीं पहुंचाता । गाडर । भेड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं०] भेड़ । भेड़ी । मेषी [को०] । विशेष-भेड़ प्रायः सारे संसार मे पाई जाती है। यह दूध, भेड़ी-सशा स्त्री॰ [हिं० ] २० 'भेड़' । उ० –भेप जगत की ऐसी ऊन और मांस के लिये पानी जाती है। इसका दूध गौ के रीति । ज्यों भेड़ी जग बहै मनीति ।-घट०, पृ० २२५ । दूध की अपेक्षा गाढ़ा होता है और उसमे से मक्खन अधिक भेडू-संक्षा पुं० [सं०] भेड़ा । मेष । निकलता है इसका मांस वकरी के मास की अपेक्षा कुछ कम भेतव्य-वि० [ स०] भय करने योग्य । जिससे डरा जाय । स्वादिष्ट होता है; पर पाश्चात्य देशों में अधिकता से खाया जाता है। इसके शरीर पर उन बहुत निकलता है और भेत्ता-वि० [सं० भिद् + तृच (प्रत्य॰)] १. भेदन करनेवाला। प्रायः उसी के लिये इस देश के गड़ेरिए इसे पालते है। कहीं २. विघ्न डालनेवाला। ३. भेद खोलनेवाला। ४. षड्यंत्र कही की भेड़ें प्राकार में बड़ी भी होती हैं और उनका मांस रचनेवाला। भी स्वादिष्ट होता है । इसके नर को भेड़ा और बच्चे को भेद-संज्ञा पुं० [सं०] १. भेदने की क्रिया। छेदने या अलग करने मेमना कहते हैं। इसकी एक जाति की दुम बहुत चौड़ी की क्रिया। २. प्राचीन राजनीति के अनुसार शत्रु को वश में पौर भारी होती है जिसे दुबा कहते हैं । दे० 'दुबा' । करचे के चार उपायों मे से तीसरा उपाय जिसके अनुसार मुहा०-भेड़ियाधसान = बिना परिणाम सोचे समझे दूसरों का शत्रुपक्ष के लोगों को बहकाकर अपनी पोर मिला लिया अनुसरण करना। जाता है अथवा उनमें परस्पर द्वेष उत्पन्न कर दिया जाता विशेष-भेड़ों का यह नियम होता है कि यदि एक भेड़ किसी है। ३. भीतरी छिपा हुमा हाल । रहस्य । ओर को चल पड़ती है, तो बाकी सब भेड़ें भी चुपचाप उसके क्रि० प्र०-देना ।-पाना ।-मिलना ।—लेना। पीछे हो लेती हैं। संस्कृत में भेडिगाधसान को गड्डलिका ४. ममं । तात्पर्य । ५. अंतर। फर्क । जैसे,—इन दोनों कपड़ों प्रवाह कहते हैं। में बहुत भेद है। ६. प्रकार । किस्म । जाति । जैसे,—इस २. वहुत सीधा या मुखं मनुष्य । वृक्ष के कई भेद होते हैं।