पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४५८

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मांगना। उ०- संबंधी [को०] । भै' ३६६७ भैरव भैक्ष-संज्ञा पु० [सं०] १. भिक्षा मांगने की क्रिया । २. भिक्षा भैनवारा-पंञ्चा पुं० [सं० क्षत्रिय जातिविशेष । उ०-उर हारि मांगने का भाव । ३. वह जो कुछ भिक्षा मे मिले । भोख । डागुर घाइयो । बहु भनवार सु पाइयो।-सुजान०, पृ० २७ । भैव-वि० [वि॰ स्त्री० भैती ] भिक्षा पर गुजर करनेवाला । भैना-ज्ञा सो० [हिं० बहिन] वहिन । भगिनी । उ०-नाचे कूदे भिक्षाजीवी (को०] । क्या होय भैना । सतगुरु शब्द समझ ले सेना । -कवीर श०, भा० १, पृ० ३८ । भैक्षञ्चाल-सज्ञा पु० [सं० ] भिक्षा मांगने का समय । भिक्षाटन का भैना २-सज्ञा खो० [ देश० ] गंगई नामक पक्षी। समय [को०)। भैनी-संज्ञा सो [ हि० बहिन ] बहिन । भगिनी । उ०-ब -वसुद्देव भैक्षचरण-संज्ञा पुं० [सं०] भिक्षा मांगना । भैक्षच । अनी। वरी कस भैनी।-पृ० रा०, २०३१ । भैक्षचयो- श्री० [सं०] भिक्षा मांगने को क्रिया। भिक्षा भैने-सञ्ज्ञा पु० [सं० भागिनेय ] वहिन का पुत्र । भांजा । उ०- बकसु भेने कहै लगै मामी ।-पलटू, पृ०३। भैक्षजीविका-संञ्चा स्त्री० [सं० दे० 'भैक्षचर्या भेभान@+--वि० [ स० भय-मान् ] भयानक । भयकर । भैनभुज-वि० [ मं० भैशभुम् ] भिक्षाजीवी । तरवर संतज्जे, पायध बज्जे, घार्य गज्जे भषभानं ।-पु. भैक्षव-संज्ञा पुं० [ स०] भिक्षुषों का झुंड । भिक्षुपमह । रा०, २०५३३ । भैक्षव-वि० [ मं० ] किसी संप्रदाय के साधु से संबधित । भिक्षु भैम -सज्ञा पु० [ स०] १. राजा उग्रसेन । २. भीम के वंशज (को०) । भैम-वि० [सं०] १. भीम संवधी। भीम का। २. भयंकर काम करनेवाला (नो०)। भैक्षवृत्ति 1-संज्ञा स्त्री० [०] दे॰ 'भैक्षचर्या' । भैमगव-संज्ञा पुं० [सं०] एक गोत्र का नाम । भैक्ष्यशुद्धि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] भिक्षा सबंधी शुद्धि । भिक्षा मांगने भैमी-मज्ञा श्री० [सं०] १. माघ शुक्ल एकादशी २. भीम राजा और ग्रहण करने के संबंध की शुद्धि । ( जैन )। की कन्या । दमयती। भैक्षाकुल-संज्ञा पु० सं०] वह स्थान जहाँ से बहुत से लोगों को भैयंसा-संज्ञा पु० [हिं० भाई+अंश(=भाग ) ] संपत्ति में भाइयों भिक्षा मिलती हो। का हिस्सा । भाइयों का अंश । भैक्षान-संज्ञा पु० [स०] भिक्षा में प्राप्त अन्न प्रादि [को०] । भैया'- संज्ञा पुं० [हिं० भाई ] १. भाई । भ्राता। २. वरावरवालों भैक्षाशी- संज्ञा पुं० [सं० भैज्ञाशिन् ] भिक्षुक । भिखमंगा। . या छोटो के लिये संबोधन शब्द । उ०-(क) पितु समीप भैक्षाशी-वि० भिक्षा में प्राप्त अन्नादि खानेवाला (को॰] । तब जाएहु भैया। भइ बड़ि बार जाइ बलि मैया -तुलसी भैक्षाहार-संज्ञा पुं० [सं०] भिक्षुक । (शब्द०)। (ख) कहै मोहि मैया मैं न मैया भरत की भैक्षुक-संशा पु० [सं०] १. भिक्षुषों का समूह । भिक्षुपों का दल । बलेया लेही भैया तेरी मैया कैकेई है।—तुलसी (शब्द०)। २. सन्यास को०] । भैया-संज्ञा पुं॰ [ स० ] नाव की पट्टी या तस्ती। भैय-सना पु० [ स०] भिक्षा । भोख । भैयाचार, भैयाचारा-संशा पु० [हिं० भाई + चार ] दे० 'भाईचारा। भैक्ष्याश्रम-संज्ञा पुं० [ सं०] १. सन्यास । २. ब्रह्मचर्य । भैचक-वि० [हिं० भै ( = भय) + चक (= चकित )] भैयाचारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भाई+चारी ] दे० 'भाईचारा। चकपकाया हुप्रा | घबराया हुा । चकित । विस्मित भैयादूजा-संशा स्त्री० [सं० भ्रातृद्वितीया ] दे० 'भैगदोज' । भैयादोज-संज्ञा स्त्री० [सं० भ्रातृद्वितीया ] कार्तिक शुक्ल द्वितीया । क्रि० प्र०-करना।-रहना ।—होना । भाई दूज। भैचक्क-वि० [हिं० भय+चक (= चक्ति ) ] दे० 'भैचक' । विशेप-इस दिन बहिनें अपने भाइयों को टीका लगाती और भैजन-वि० भै ( = भय) + जनक ] भय उत्पन्न करनेवाला । भोजन कराती हैं। इसे यमद्वितीया भी कहते हैं। भयप्रद । उ०-धुनि शत्रु भैजनी करत पाय पैजनी है पैजनी भैयाना स० भयानक ] दे० 'भपानक' उ०-अदभुत्त लगाम बनी चरम मृदुल की। पांति सिंधु मुलकी तुरगन के बीर भैयान, मचिय कंक विपम कृपान ।-पृ० रा०,६।१६५। के कुल की बिसाल ऐसी पुलको सुचाल तैसी दुलकी।- भैरत्त-वि० [स० भय + रक्त] भययुक्त । उ०-भैरत चमक्कत पत्त गोपाल ( शब्द०)। रव पिनक चित्त जिम उष्परे । पिल्लत सिकार पिथ कुंअर डर भैडक-वि० [स०] भेड़ संबंधी [को०] । पसु पीपर दल थरहरे।-पृ० रा०, ६। १०० । भैदाg- वि० [ भय+ दा (प्रत्य॰)] भयप्रद । डरावना । भैरव-वि० [सं०] १. जो देखने में भयंकर हो । भीषण । भयानक भैनो-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० भगिनी हिं० बहिन ] वहिन । भगिनी ।

  1. डया जुड़ पतसाह सू' भैरव डूंगरसीह ।-रा० ००,

उ.- सिंघ जी की भैन व्याहीजे साही। -शिखर०, २. दुःखपूर्ण (को०) । ३. भैरव संवधी (को०)। ४. इन्द बहुत भीषण हो। -सज्ञा पु० पृ०५२।