पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४७

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फसादी मुहा०-फसाद का घरझगड़ालु । फसादी। फसाद की सारन बोलाए ते कहन लागे, पूल के सरीर सेना करत फहम जड़ = झगड़े का मूल कारण । हो ।--तुलसी (शब्द०)। फसादी-वि० [फा०] १. फसाद खड़ा करनेवाला | उपद्रवी। फहमाइस-संशा ग्मी० [फा० फहमाइश ] १.. शिक्षा। सीख । २. २. झगड़ालू । लड़ाका । ३. नटखट । पाजी । प्राज्ञा । हुकुम। फसाना-संज्ञा पुं० [फा० फसानह ] पाख्यान । कहानी । किस्सा। क्रि० प्र०—करना ।-देना ।—होना । यौ०-फसानानवीस, फसानानिगार = कहानी लेखक । फहरना--क्रि० प्र० [सं० प्रसरण ] फहराना का अकर्मक रूप । फसाहत-सज्ञा स्त्री० [अ० फ़साहत ] किसी विषय का साधु और वायु में उठना । फडफड़ाना । उ०-(क) ससिन बीच नागरी माजित वर्णन करना । भाषा का प्रमाद गुण । उ०-'रसा' विरा जति भई प्रीति उर हरि फे। मंद मंद गति चलत महवे फसाहत दोस्त क्या दुश्मन भी है सारे । जमाने मे तेरे अधिक छवि पंचल रहे 3 फहरि फे।-सूर (शब्द०)। तर्जे सखुन की यादगारी है।-भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, (स) फहरै फुहारे नीर नहरै नदी सी बहे, छहरै छवीन छाम पृ०८४८ । छोटन की छाटी है। -पाकर ( शब्द०)। फसिजा-सशा स्त्री० [हिं०] दे० 'फसल' । फहरान-स/ नी० [हिं० फहराना] फहरने या फहराने का भाव फसील- ज्ञा स्त्री॰ [अ० फ़सील] १. भित्ति । दीवार । २. प्राचीर । या किया। परकोटा। फहराना'-क्रि० स० [सं० प्रसारण ] उड़ाना । कोई चोज इस फसीह-वि० [अ० फ़सीह ] प्रसाद गुणवाली भाषा लिखने या प्रकार सुनी छोड़ देना जिसमें वह हया मे हिलने और उड़ने वोलनेवाला । उ०-श्री जहूरबख्श विशुद्ध संस्कृतमयी शैली लगे । जैसे, हया मे दुपट्टा फहराना, झंडा फहराना । मे भी लिख सकते हैं और फसीह उर्दू में भी।-शुक्ल अभि० फहराना-क्रि० प्र० फहरना । वायु मे पसरना। हवा में रह ग्रं० (साहित्य ), पृ० ६२ । रहकर हिलना या उड़ना । उ०—(1) काया देवल मन फस्त-संशा सी० [अ० फस्द ] दे० 'फस्द' । ध्वजा विषय लहर फहराय । मन चलता देवल चले ताको फस्द-संञ्चा स्री० [अ० फस्द ] नस को छेदकर शरीर का दूषित सरयस जाय ।-कावीर (शब्द०)। (स) घंट घंटि धुनि रक्त निकालने की क्रिया। उ०-फस्द देते हुए फस्साद को वरनि न जाहीं। सरव करहिं पायक फहराही।-तुलमी रोकें।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १६३ । ( शब्द०)। (ग) चारितुं योर ते पोन झकोर कोरनि मुहा०-फस्द खोलना = नस या धमनी को छेदकर रक्त निका- घोर घटा घहरानी। ऐसे समय पाकर काहु के धावत पोत पटी फहरानी |--पनाकर ( शन्द०)। लना । फस्द खुलवाना = (१) शरीर का दूषित रक्त निकालना। (२) पागलपन की चिकित्सा कराना । होश को दवा कराना। फहरानि-शा मी० [हिं० ] दे० 'फहरान' । उ०-(क) वा पट फस्द लेना = (१) शरीर का दूषित रक्त निकलवाना । (२) पीत को फहानि । फर धरि चक्र चरण की पावनि नहिं पागलपन की चिकित्सा कराना। विसरति वह यानि ।—सूर (शब्द०)। (स) पंचर की फरल-संज्ञा स्त्री० [अ० फ़रन] १. दे० 'फसल' । २. अंतर । पार्थक्य । फहरानि हिए घहरानि उरोजन पीन तटो की। देव ३. प्रावरण । पट । परदा। ४. किसी प्रथ का प्रध्याय या (शब्द०)। परिच्छेद । फहरिस्त-संश खी० [हिं० ] दे० 'फेहरिस्त' । यौ०-फस्ले गुल, फरले वहार = फूलो का मौसम । वसंत ऋतु । फहश-वि० [अ०ह श ] फूहड़ । प्रश्लील । फरलो-वि०, संशा पु० [अ० फरल + फा० ई (प्रत्य॰)] दे० 'फसली'। फांट-सज्ञा पु० [ स० फायट ] पोहे प्रायास द्वारा बननेवाला काला। फरसाद-संज्ञा पुं० [अ० फस्साद ] फस्द खोलनेवाला । दूषित रक्त प्रौषधिचूर्ण को गर्म पानी में डालकर छानने से बना हुमा निकालनेवाला। 50-फस्द देते हुए फस्साद को रोकें।- काढ़ा । २. मंथन से निकलनेवाले मक्खन के कण (को०] । प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १६३ । फांट-वि० पनायास तैयार होनेवाला। घासानी से तैयार किया फहमंद-वि० [अ० फह म, हिं० फएम ] जानकार । भेदो । हुप्रा । ३. मालसो। सुस्त (को०) । उ०-फे फहमंदा भजन को दिव्य दृष्टि को जाय । -भीखा० फांटक-संक्षा पुः [ स० फायटक ] काढ़ा । क्याथ (पो]। ४०, पृ० ८६। फांटकर-वि० दे० 'फाट [को०] । फहम-संञ्चा स्त्री० [अ० फ़हम ] ज्ञान । समझ । वियेक । उ० फांड-संश पुं० सं० फाण्ड ] पेट । उदर (को०] । (क) फहमै भागे फहमै पाछे फहमै दहिने डैरी । फहमै पर फॉक'-संशा सी० [सं० फलक या देश०] १. किसी गोल या पिंडाकार जो फहम करत है सोई फहम है मेरी ।—कबीर (शब्द०)। वस्तु का फाटा या पीरा हुमा टुकड़ा। गोल मटोल वस्तु का (ख) कलि कुचालि संतन कही सोइ सही, मोहिं कछु फहम वह खंड जो किसी सीध मे घराबर काटने से अलग हो। हरी, न तरनि तमी को।-तुलसी (शब्द०)। (ग) आए सुक आरी मादि से सलग फिया हुआ टुकड़ा। उ-छोरी बदि