पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४७३

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नगन मंगन भ्रूणन-वि०, संज्ञा पुं० [सं० ] गर्भस्थ शिशु की वा भ्रूण की हत्या भ्रमध्य-संज्ञा पु० [ स०] दोनों भौहों के बीच का स्थान । करनेवाला। भ्र लता-संज्ञा श्री० [सं०] भौहरूपी लता। भौह जो लता के समान भ्रूणहत्या-सञ्ज्ञा - [स०] गर्भ गिराकर या और किसी प्रकार घुमावदार हो। गर्भ मे पाए हुए बालक की हत्या । गर्भ के बालक की हत्या। भ्रूविक्षेप-पज्ञा पु० [स०] त्योरी बदलना । नाराजगी दिखाना। भ्रणहा-सज्ञा पु० [ स. भ्रूणहन् ] वह जिसने भ्र हत्या की हो। भ्र भग। भ्र निक्षेप-वि० [ स० ] कटाक्ष । भोही का चलाना। उ०-किसके भ्र विकार-सज्ञा स्त्री० [सं०] भौहो का टेढ़ा होना । भ्रूभंग [को०] । भ्र निक्षेप पर मतवाले वनें ।-सुनीता, पृ० २४६ । भ्र प्रकाश -सञ्ज्ञा पु० [ स०] एक प्रकार का काला रंग जिससे भ्र.विक्रिया-सहा स्त्री० [ स० ] त्योरी बदलना । अभंग । शृगार प्रादि के लिये भौह बनाते हैं । भूविजभ, विजभण-संज्ञा पुं० [सं० भ्रविजृम्भ, भ्र.विजृम्भण ] ध्र पात-सज्ञा पु० [स०] कटाक्ष । भौहो का गिराना । उ०-वे दिन भौहो का झुकाव । भौहो का नीचा होना । वीते जब मैं भो था अभिमानी, भ्र पातो मे उठता था पाँधी भ्रूविलास-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] भोहों का मोहक संचालन | कटाक्ष | पानी।-प्रेम०, पृ०७३ । उ० -इस लिये खिचे फिर नही कभी, पाया निजपुर, जन भ्र भंग-सज्ञा पुं॰ [ सं० भ्र भङ्ग ] क्रोध पादि प्रकट करने के लिये जन के जीवन मे सहास, हैं नही वहां वैशिष्ट्य धर्म का भोह चढ़ाना । उ०- ब्रह्म रुद्र उर डरत काल के काल डरत भ्रविलास । -प्रनामिका, पृ०२०। भ्र भंग की आँची।-सूर ( शब्द०)। भ्रेप-सचा पुं० [सं०] १. नापा । २. चलना । गमन । ३. भय । डर । भ्र भेद-संज्ञा पु० [ स० ] दे० 'भग' । भ्र भेदी-वि० [स० भ्र मेदिन ] भौह चढ़ानेवाला । त्योरी चढ़ाने- भ्रौणहत्या --सा सो० [सं० ] दे० 'भ्रूणहत्या' । वाला। भ्वहरनाg+-क्रि० स० [हिं० भय+ हरना { प्रत्य०)] भयभीत भ्र मंडल-सञ्ज्ञा पु० [सं० अ मण्डल ] १. भोहों का घेरा । मेहराव- होना । डरना। दार भौह । भौहों का झुकाव या टेढ़ापन । भ्वासर-वि० [ देश०] वेवकूफ । मूखं। म म-हिंदी वर्णमाला का पचीसवी व्यंजन और प वर्ग का अंतिम मंक्षु-क्रि० वि० [स० मङ्क्षु ] तुरंत । जल्दी से । सत्वर । २.प्रत्य- वणं । इसका उच्चारण स्थान होठ और नासिका है। जिह्वा धिक । ३. वास्तव में । वस्तुतः । यथार्थतः (को०) । के अगले भाग का दोनो होठो से स्पर्श होने पर इसका मंख-संज्ञा पु० [स० मन] १. भाट । बदीजन । २. दवादारू । उच्नारण होता है। यह स्पर्श और अनुनासिक वर्ण है। ३. एक विशेष औषध । ३. एक कोशकार का नाम [को०] । इसके उच्चारण में सवार, नादघोष और अल्पप्राण प्रयत्न मंखी-शा स्त्री० [ देश०] बच्चों के कंठ में पहनाने का एक गहना । लगते हैं । प, फ, ब और भ इसके सवर्ण हैं। मंग-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मङ्ग ] १. नाव का प्रगला भाग । गलही । मंकणक-संज्ञा पु० [स० मङ्कणक ] १. एक ऋषि का नाम । २. २. नाव या जहाज का पार (को०) । महाभारत के अनुसार एक यक्ष का नाम । मंग-प्रज्ञा स्त्री० [हिं० माँग] २० 'मांग' | उ०-कुसुम फूल जस मंकिल -सज्ञा पुं० [ स० मङ्कल ] दावाग्नि | जंगल की माग । मरदै निरंग देख सव अंग । चंपावति भह बारी चूम केस प्रो बनाग्नि [को०] । मंग। जायसी (शब्द०)। मंकु-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मकु] ब्रण । घाव [को०] । मंग-संज्ञा पु० [ देश०] आठ की संख्या । (दलाल )। मंकुक-सज्ञा पु० [सं० मङ्कुक ] एक वाद्य यंत्र [को॰] । मंगत-संज्ञा पुं० [हिं० माँगना ] दे० 'मंगता' । उ०-मंगत जन परिपुरन भए । दारिदहू के दारिद गए। -नंद. ग्रंक, मंकुर-पंज्ञा पुं॰ [ स. मङ्कर ] दर्पण । शीशा । पाईना । पृ०२३५। मंकुश-सज्ञा पु० [ स० मङ्क श] संगीत और नृत्य दोनों का ज्ञाता। मगता-संज्ञा पुं० [हिं० माँगना+ता (प्रत्य॰)] भिखमंगा। नृत्य और गीत का जानकार । [को० । भिक्षुक। मंक्ता-वि० [स० मडक्त ] गोताखोर [को०] । मंगन-सज्ञा पुं० [हिं० मांगना ] भिखमंगा। भिक्षुक । उ०-मंगन मंक्षण-सञ्चा पु० [ मङ्क्षण ] जंत्राण । जांघ पर बांधने का कवच बहु प्रकार पहिराए । द्विजन दान नाना विधि पाए।-मानस, [को०] । ७।१५।।