पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४७७

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मजनीक २०१३ भ'जुघोप मलकर दांत साफ किए जाते हैं । २. स्नान । नहाना ।उ० मंजिफला -संज्ञा ली [ स० मफिला ] केला का पेड़ । अजन दे निप से नित नैनन, मजन के प्रति अंग संवारे ।- सजिमा-संज्ञा स्त्री॰ [ स० मजिमा ] सौदर्य । मोहकता। सुदरता मतिराम ( शब्द०)। ३. दे० 'मोजना' । उ०-गुरु घाम [को॰] । कंजा मनी मैल मंजा'-घट०, पृ० ३८५। मजिल-सञ्ज्ञा स्त्री० [प्र.] १. यात्रा के मार्ग में ठहरने का स्थान । मंजनीक-सहा पु० [ ? ] युद्ध में पत्थरो की मार करने का एक मुकाम । पडाव । २. वह स्थान जहां तक पहुंचना हो । गंतव्य मत्र । उ०- किला बहुत उंचा होने से उसपर मजनीक स्थान | उ-ये सराइ दिन चारि मुकामा। रहना नहिं ( मकरी यत्र ) काम नहीं दे सकते थे।-राज. इति०, मंजिल को जाना। -धरनी०, पृ० ३०० । ३. मकान का पु०७३०॥ खंड। मगतिव । ४. एक दिन को यात्रा। एक दिन का मजर-सज्ञा पु० [स० मञ्जर] १. मोती । २. मंजरी । ३. तिलक सफर । ५. लंबी यात्रा। दूर का सफर (को०)। ६. यात्रा। का पौधा। सफर। उ०-खर्चे की तदबीर करो तुम मंजिल लंबी मजर-सज्ञा पु० [अ० मजर ] १. नजारा । दृश्य । दर्शनीय वस्तु । जाना। -कधीर सा०, पू०२ । २. मुखाकृति । ३. क्रीड़ास्थान । ४. दृष्टिसीमा [को०) । मुहा०-मंजिल उठाना = मकान पनाना । मंजिल भारी होना = मजरि-सज्ञा सी० [सं० मञ्जरि ] दे० 'मंजरी'। उ०—(क ) यात्राकायं कठिन होना । मंजिल मारना=यात्रा पूर्ण कर मजुल मजरि तुलसि विराजा । —मानस, ११११० । (ख) जै लेना। कठिनाई समाप्त होना। मंजिलों भागना-बहुत दूर श्री राधा रसिक रस मंजरि प्रिय सिर मौर।-पोद्दार अभि० रहना। उ०-वस इस जूती पेजार से हम मंजिलो भागते प्र०, पृ०३८१। हैं। -फिसाना०, भा० ३, पु०३ । मजरिका-सज्ञा स्त्री॰ [स० मञ्जरिका ] १० 'मजरी' । o-मंजिलगाह = पड़ाव । यात्रा मे उतरने की जगह । मजरित-वि० [स मञ्जरित ] मजरियों से भरा हुआ। मंजगे उ०-यहाँ का साप्रदायिक उत्पात मजिल नामी दो भवनों से पूर्ण । उ०-एक भी तरु मंजरित यदि व्यर्थ कोयल का के कारण प्रारंभ हुमा ।-भारत नि०, पृ० ६७ । मंजिले नही स्वर-मधु०, पृ०७२। श्रपल वन या श्मसान । मंजिले कमर - नक्षत्र । मंजिले मजरी-संज्ञा स्त्री० [स० मजरी ] १. छोटे पौधे या लता धादि का मकसूद = प्राशय । उद्देश्य । लक्ष्य स्थान । मंजिले हस्ती- निकला हा कल्ला। कोपल । २. कुछ विशिष्ट वृक्षों या ग्रायु । जीवनयात्रा। पौधों मे फूलों या फलो के स्थान में एक सीके मे लगे हुए बहुत मजिष्ठ, मंजिष्ठक-वि० [स० मञ्जिष्ठ, मजि ठक् ] दीप्ति से से दानों का समूह । जैसे, भाम की मंजरी, तुलसी की मंजरी। युक्त लाल ( वणं)। ३. मोती। ४. तिल का पौधा । ५. लता। बेल ६. तुलसी। मजिष्ठा-संज्ञा स्त्री॰ [स० मञ्जिष्ठा ] मजीठ । to-मंजरीचामर = मंजरी के आकार की चंवर । मंजरीजाल= मंजिष्ठामेह-सञ्ज्ञा पु० सं० मञ्जिष्ठामेह ] सुश्रुत के अनुसार एक खुब घना मजरी का समूह । मंजरीनम्र = वेत । वेतस । प्रकार का प्रमेह जिसमें मजीठ के पानी के समान मूत्र होता है । मंजरीक-सं पुं० [सं० मञ्जरीक] १.तुलसी । २. मोती। ३. तिल का पौधा । ४. वेत (लता) । ५. अशोक का वृक्ष । मंजिष्ठाराग-मंशा पुं० [सं० मजिठाराग] १. मजीठ का रंग । २. (लाक्ष० ) मजीठे के रंग सा सुदर भोर टिकाऊ मजा-सज्ञा स्त्री० [सं० मा] १. लता। वल्ली । २. बकरी । ३. अनुराग । पकका प्रेम [को०] । मंजरी [को०] । मजी-सशस्त्री० [सं० मञ्जी ] दे० 'मंजरी' । मजार-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मज्जा ] दे॰ 'मज्जा' । उ०-मंजा मुत्र मजीर-सा पु० [स० मञ्जीर ] १. नुपुर । घुघरू । २. वह खंभा अग्नि मल कृम जह, सहज तह प्रतिपारो।-धरनी० वा०, या लकड़ी जिसमें मथानी का डंडा बधा रहता है। ३. एक पृ० २३ । पहाड़ी जाति जो पश्चिमी बंगाल मे रहती है। मजारी-संज्ञा स्त्री० [स० मार्जार ] विल्ली। विडाल ! उ०- कहति मजील-संज्ञा पुं० [सं० मजील ] घोवियों का गाँव । रजक ग्राम । न देवर की कुवत, कुलतिय कलह डराति । पंजर गत मगार गाव जिसमे मुख्यतः धोबी रहते हों [को०] । ढिग, सुक ज्यौ सूकति जाति । --विहारी (शब्द॰) । मजारड़ी-रक्षा स्त्री० [सं० मार्जार, हि० मंजार+डी (प्रत्य)] मजु-वि० [ स० मञ्जु ] सुदर । मनोहर । दे० 'मार्जार' । उ० वाट काटे मंजारड़ी सामही छीक हणई मजुकेशो-सा पु० [ स० मञ्जुकेशिन् ] श्रीकृष्ण । कपाल ।-बी० रासो, पृ० ५९ । मजुगति-वि० [सं० मञ्जुगति ] सुंदर चालवाला (को॰] । मंजारी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० माजरी ] दे० 'मारि' । उ०-जारी मजुगमना-सज्ञा सी० [सं० मञ्जुगमना] हंसिनी (को॰] । नाही जम प्रहै तू मत राचे जाय । मंजारी ज्यों वोलि के, मजुगत-संश पु० [स० मञ्जुगत ] नेपाल देश का प्राचीन नाम । काढ़ि करेजा खाय |-संतवाणी०, पृ० ५६ । मजुगुंज-संज्ञा पु० [ स० मजुगुञ्ज ] मनोहर गुंजन [को०] । मजि-सज्ञा सी० [स० मजि ] दे० मंगरी' । मजुघोप-संञ्चा पु० [ स० मजुघोप] १. तांत्रिकों के एक देवता मंजिका-सरा क्षी० [ स० मञ्जिका ] वेश्या । रंडी। का नाम । --