पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४७८

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मंजूषा- -सज्ञा स्त्री० [ था मजुघोष' महन विशेष-कहते हैं, इनका पूजन करने से मुर्वता दूर होती है । क्रि० प्र०-देना ।-पाना |-माँगना ।—मिलना !-लेना। २. एक प्रसिद्ध बौद्य प्राचार्य जो बौद्ध धर्म का प्रचार करने स० मजूपा] १. छोटा पिटारा या डिव्वा । के लिये चीन गए थे। पिटारी । उ०-सुंदर काले काठ की मंजूषा में एक सुरीला विशेष-कहा जाता है कि जिस स्थान पर आजकल नेपाल वाजा रक्खा हुमा था।- श्यामा०, पृ० ६४) २. पत्थर । देश है उस स्थान पर पहले जल था। इन्होंने मार्ग बनाकर ३. मजीठ | ४. बड़ा संदूक (को०)। ५.@ पिंजडा । वह जल निकाला था और उस देश को मनुष्यों के रहने मंझ१- वि० [सं० मध्य, प्रा० मझ्झ, मझ] दे० 'मंझा' । उ०- योग्य बनाया इन्हें मंजुदेव और मंजुश्री भी मझ महल की को कहै बांका पस्वा सोया । कबीर सा० कहते हैं। सं०, पृ० १६। मंजुघोषः २-वि० मनोहर बोलवाला [को०] • 'ममर-वि० [सं० मन्द ] दे० 'मंद' । उ०-कबीर लहरि समद मंजुघोपा-संज्ञा स्त्री॰ [ स० मधोपा] एक अप्सरा का नाम । की मोती बिखरे प्राइ । बगुला मझ न जाणई हस चुणो चुणि उ०-चलि देखौ दुति दामिनी दिपति मनो दुतिरूप । मंजु खाइ।-कबीर पं०, पृ० ७८ । मंजुघोषा भई जोषा जगत अनूप ।-स० सप्तक, पृ० ३६१ । मंझाबु-वि० [स० मध्य,पा० मज्म ] मध्य का। बीच का । जो मंजुदेव-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मज्जुदेव ] दे॰ मंजुघोष-२'। दो के बीच में हो। मंझला । उ-मझा जोति राम मजुनाशो- संज्ञा स्त्री० [सं० मञ्जुनाशो ] १. दुर्गा का एक नाम । प्रकासे गुर गमि बाणी-कबीर न०, पृ० १४३ । २. इंद्राणी का एक नाम । ३. सुंदर महिला (को॰) । ममा--संज्ञा पुं० १. सूत कातने के चरखे में वह मध्य का अवयव मंजुपाठक-संज्ञा पु० [सं० म पाठक ] तोता । जिसके ऊपर माल रहती है । मुडला । २. अटेरन के बीच मंजुप्राण-सझा पुं० [सं० मञ्जप्राण ] ब्रह्मा । की लकड़ी। मझेरू। मजुभद्र-संज्ञा पु० [ सं० मञ्जभद्र ] दे॰ 'मंजुघोष' । मझा-सज्ञा स्त्री० वह भूमि जो गोयंड और पालों के बीच में हो । मंजुभापिणी'-तशा खी० [ स० मजुभापिणी] एक गणात्मक मझा-संज्ञा पुं० [सं० मञ्चक ] १. चौकी । २. पलंग । खाट । छद जिसमें संगण, जगण, सगण, जगण और दो गुरु ( पंजाब )। होते हैं। मझा-संज्ञा पुं० [हिं० माँजना] वह पदार्थ जिससे रस्सी वा पतंग मंजुभाषिणी-वि० [सं० मजुभापिणी ] मधुर बोलवाली [को०] । की डोर को मोजते हैं। माझा । मजुभाषी-वि० [सं० मञ्जुभापिन् ] [ वि० स्त्री० मजुभापिणी ] मुहा०-मंझा देना=माजना । लेस चढ़ाना । मधुर बोलने या भापण करनेवाला [को०] । मटि-सज्ञा पुं० [सं० मएिट ] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि [को०] । मंजुल -वि० [सं० मञ्जुल ] [ सी० मञ्जुला ] सुदर । मनोहर । मठ-सञ्ज्ञा पु० [सं० मण्ठ ] प्राचीन काल का एक प्रकार का मैदे खुबसूरत । उ०-सुकृत पुंज मंजुल अलिमाला। का बना हुआ पकवान जो शीरे में डुबोया हुमा होता है । विराग विचार मराला ।—मानस, ११३७ । माठा मंजुलर-संज्ञा पु० १. नदी या जलाशय का किनारा । २. कुज । मड-वज्ञा पुं० [सं० मएड ] १. उबले हुए चावलों प्रादि का गाढ़ा ३. सोता । कूप (को०) । ४. एक पक्षी । दात्यूह । पानी । भात का पानी । मौड़ । २. पिच्छ । सार । ३. एरंड कालकंठ (को०)। वृक्ष । अंडी । ४. भूषा | सजावट । उ०-मनी मनिमदिर मंजुला-संज्ञा स्त्री० [सं० मञ्जुला ] एक नदी का नाम | तापर मंड। उदै रबि आप भयो परचंड ।-हम्मीर०, मजुवक्त्र-वि० [सं० मञ्जुवक्त्र सुदर मुखवाला । सुंदर [को०] । पृ० ५१ । ५. मेंढक । ६. एक प्रकार का साग । ७. सुरा मंजुवन-संज्ञा पुं० [स० मञ्जुवज्र ] बौद्धों के एक देवता का (को०)। ८. मट्ठा (को०)। ६. दूध का सार भाग, मलाई, मक्खन प्रादि (को०) । १०. शिर । शीर्ष (को॰) । नाम। मंजुश्री-संज्ञा पुं० [स० मञ्जुश्री ] दे० 'मंजुघोष-२' । मडक-संश पुं० [सं० मरावक ] १. एक प्रकार का पिष्टक । मैदे मंजुषा-सज्ञा स्त्री॰ [स० मञ्जपा ] ६० 'मंजूषा' [को॰] । की एक प्रकार की रोटी। मांडा। २. माधवी लता। ३. मंजुस्वन-वि० [सं० मञ्जस्वन ] मधुर अावाजवाला | मधुर । गीत का एक अंग। कंठवाला [को०)। मडन-वि० [सं० मण्डन ] शृगारक । अलंकृत करनेवाला । मंजुस्वर-वि० [सं० मञ्जुस्वर ] दे० 'मंजुस्वन' [को०] । उ०-गाढ़े, भुजदंडन के बीच उर मंडन को धारि घनानंद यौं सुखनि समेटिहौं ।-धनानंद, पृ० ६६ । मंजूर-वि० [अ०] १. जो मान लिया गया हो । स्वीकृत । पसंद । २. जो देखा गया हो । अवलोकित (को०)। मडन-संज्ञा पुं० १. शृगार करना । अलंकरण । सजाना । सँवारना। २. प्राभूषण। भलंकार (को०) ३. युक्ति आदि देकर किसी मंजूरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० मन्जूर + ई (प्रत्य० ) ] मंजूर होने का सिद्धात या कथन का पुष्टिकरण । प्रमाण मादि द्वारा कोई भाव । स्वीकृति । ज्ञान