पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४९५

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1 मक्का मक्ष SO yo सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। हज करने के लिये मुसलमान मनुचित कृत्य या पाप करना जिसके कारण पीछे हानि यही जाते हैं । उ०—मक्का महनीत कोऊ हज्ज को जाते ।- हो। (२) अनौचित्य या दोप को मोर ध्यान न देना । संत तुरसी०, पृ० ८६ । दोप या पाप की उपेक्षा करशे वह दोष या पाप कर डालना । मक्का'-सज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार की ज्वार । बढ़ो जोन्हरी । नाक पर मक्खी न टने देना=किसी को पाने ऊपर एहमान मकई। वि० दे० 'ज्वार' । करने का तनिक भी मवसर न देना। अमिमान के कारण किसी के सामने न दवना । मस्त्री की तरह निकाल या फेंक मक्कार-वि० [ ] मकर करनेवाला | फरेबी । कपटी। देना=किसी यो किसी काम से बिलकुन अलग कर देना । मक्कारा-पशा स्त्री० [अ० मक्कारह ] चालबाज मौरत । चूर्ता श्री । किसी को किसी काम से कोई संबंध न रखने देना। मक्कारी-सज्ञा स्त्री॰ [प्र.] छल । धोखेबाजी। दगाबाजी। फरेव । मक्खो छोडना और हाथी निगनना = छोटे छोटे पापो या मक्की-वि० [ ] १. मक्के या निवासी। २. मक्के का। अपराघों से बचना और बड़े बड़े पाप या अपराध करना । मकका सबधी। 30 -महमद कानीमूल सु मक्की।-ह. माखी मारना या उड़ाना = बिलकुल निकम्मा रहना। कुछ रासो, पृ० ८५॥ भी काम धंधा न करना । मक्को-सज्ञा स्त्री॰ [ देश०] १ 'मका"। २. मधुमक्खी। मुमाखो । ३. बदूत के अगले भाग में वह उभरा मक्कु, मक्कूल-संज्ञा पु० [ म०] शिलाजतु [को० । हुमा प्रश जिसकी सहायता से निशाना साधा जाता है। मक्कोल-सज्ञा पु० [सं०] सुधा | खडिया (को॰) । मक्खीचूस-संज्ञा पुं० [हिं० मक्खी चूसना ] पो प्रादि में पड़ी मक्खन-सशा पु० [ स० मन्थज या म्रक्षण ? ] दूध में की, विशेषतः हुई मक्खी तक को चूस लेनेवाला व्यक्ति । यहुन अधिक गौ या भैस के दूध में की, वह चरबी या सार भाग जो दही कृपण | भारी कजूस । या मठे को महने पर अथवा पौर कुछ विशेष क्रियानो से मक्खीमार-संज्ञा पुं० [हिं० मक्खी+मारना ] १. एक प्रकार का निकाला जाता है और जिसको तपाने से घी बनता है । वहुत छोटा जानवर जो प्रायः मक्खियों उड़ाता है और मार नवनीत । नैनू। मारकर खाया करता है। २. एक प्रकार की छड़ी जिसके विशेप-वैद्यक मे इसे शीतल, मधुर, बलकारक, संग्राहक, सिरेपर चमहा लगा होता है पौर जिसकी सहायता से कातिवर्धक, प्रोखों के लिये हितकर और सब दोषों का नाण मक्खियां मारते हैं । ३. बहुत ही घृणित व्यक्ति । करनेवाला माना है। मक्खीलेट-संज्ञा सी० [हिं० मक्खी + वेट ? ] एक प्रकार की मुहा०-कलेजे पर मक्खन मला जाना = शत्रु की हानि देखकर जाली जिसमें बहुत छोटी छोटी बूटियां होती है। शाति या प्रसन्नता होना । कलेजा ठडा होना। मक्तव-संज्ञा पु० घ.] २० 'मकतब' । उ०-दो दिन पीछे मक्खा-संज्ञा पु० [हिं० मक्खो] १. बड़ी जाति की मक्खी। लड़को का मक्तच करना, भाजी को मात देना । ~योनिवास २. नर मक्खी। अं०, पृ० ३१। मक्खी-सशा खो० [सं० मक्षिका, प्रा० मक्खिा ] १. एक प्रसिद्ध मक्दूर-सज्ञा पु० [अ० ] सामथ्यं । ताकत । शक्ति । बज | जोर । छोटा कीड़ा जो प्रायः सारे संसार में पाया जाता है और जैसे,—यह अपने सपने मक्दूर की बात है। जो साधारणतः घरों और मैदानों में सब जगह उड़ता मुहा०-मक्दूर से बाहर पार्यं रखना = सामर्थ्य या योग्यता से फिरता है। मक्षिका । माखी। बढ़कर काम करना। विशेष-मक्खी के छह पैर और दो पर होते हैं। प्रायः यह २. वध । काबू। कूड़े कतवार मौर सड़े गले पदार्थो पर बैठती है, उन्हीं को मुहा०-मक्दूर चलना = बस चलना । काबू चलना। खाती और उन्ही पर बहुत से अंडे देती है । इन मदो में से ३. समाई । गुजाइश । ४. दौलत । धन । पूजी। बहुधा एक ही दिन में एक प्रकार का ढोला निकलता है, जो विना तिर पैर का होता है । यह ढोला प्राया दो सप्ताह यौ०-मदूरवाला = धनवान । सपन्न । प्रमोर । में पूरा बढ़ जाता है और तब किसी सूखे स्थान में पहुंचकर मक-संज्ञा पु० [ स० मकर ] दे० 'मकर' । उ०-महा मक अपना रूप परिवर्तित करने लगता है। प्रायः १०-१२ दिन से सूर सावत पीनं । हम्मीर०, पृ० ५६ । में वह साधारण मक्खी का रूप धारण कर लेता है मौर मक'--संज्ञा पुं० [प्र. ] १. छल । कपट | धोक्षा। उ०—ऐसा इधर उधर उड़ने लगता है। मक्खी के पैरों में से एक प्रकार मालूम हो रहा था कि मक्र किए पड़ी है, और देख रही का तरल और लसदार पदार्थ निकलता है, जिसके कारण है कि राजा साहब क्या करते है। -काया०, पृ० ४८९ । वह चिकनी से चिकनी चीज पर पेट ऊपर और पीठ नीचे २. नखरा। करके भी चल सकती है। यौ-मनचाँदनी = दे० 'मकर चादनी' । यौ०-मक्खीचूस | मक्खीमार । मक्ष-संज्ञा पु० [ स०] १. अपने दोष को छिपाना | अपना ऐव मुहा०-नीती मक्खो निगलना = (१) जान बूझकर कोई ऐसा जाहिर न होने देना । २. कोष । गुस्सा । ३. समूह ।