पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४९८

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मगधेश्वर ३७३७ मगसर उ०- , मगघेश्वर-पंञ्चा पुं० [सं०] ३० 'मगधे । मगर बीर-पंगा जी० एक तरह की तलवार उ०-तई कड़ी मगन-वि० [स० मग्न ] १. डूबा हुा । समाया हुआ । २. प्रसन्न । मगरवी अरिगन चरवी चापट कारची ही काटें ।-पमाफर हर्षित । खुण। ३. बेहोश । नछित । ४. लीन । ग्रं०, पृ० २७॥ सृदुल कलकत गावत महा मगन मन मधुर सुर तान लै दून मगरमच्छ-संज्ञा पु० [हिं० मगर + मछली <मात्य सं०] १. मगर की।-घनानंद, पृ० २५५ । वि० दे० 'मग्न' । या घडियाल नामक प्रसिद्ध जल जंतु । २. बड़ी मछली । मगना-कि० अ० [सं० मग्न ] १. लीन होना । तन्मय होना। मगरा-वि० [अ० मग़रूर ] १. अभिमानी । घमंडी। २. सुस्त । २. डूबना । उ०—तुलसी लगन ले दीन मुनिन्ह महेश प्रानंद घर मण्य । काहिल | ३. शृष्ट । ढीठ । ४. हठी । जिद्दी। रंग मगे |--तुलसी (शब्द०)। ५. उदंड । मगनानाgt-फ्रि० प्र० [सं० मग्न, हिं० मगन ] मग्न होना । मगरा-Ta" पुं० [हिं० संग+रा (पत्य॰)] वाट । मागं । पंथ । लीन होना । उ०-शन्दु अनाहद सुनि मगनाना ।—प्राण०, राह । उ०-नामों काहो सुनें को मेरी, जोहत वेठी पिय को पृ० १०६। मगरा।-पोद्दार अभि० प्र०, पृ० ३५६ । मगफ-संज्ञा पुं० [अ० मग्फ़र ] कवचधारी। शिरस्याणधारी। मगरी-मज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] ढालुएं छप्पर का बोच का या सबसे उ.-बाप मेरा मगफर व मामूर है।-द क्सनी०, ऊंचा भाग । जैसे,—पोलती का पानी मगरी पढ़ा है। पृ० २००। (महावत)। मगफरत-संज्ञा स्त्री० [अ० मग्फिरत ] क्षमा। उ०-प्रगर तू' मगरी-सज्ञा भ्री० [स. मर्कटी, हिं० मकड़ी ] दे० 'मकड़ो' । करम ते करे मगफरत, तो कीते हमारी भो मासिनत । उ०–मगरी कहत यह हमारो है मगसखानो।-राम० दक्खिनी०, पृ० ३५२ । धर्म०, पृ० ६६ । मगमा-संशा पु० [ देश० ] कागज बनाने में उसके लिये तैयार किए मगरूर-वि० [अ० मग़रूर ] धमडो । अभिमानी। उ०-गाफिल हुए गूदे को धोने की क्रिया। वेहोस गरूर है रे, मगरूर मनी दिल भावता है ।-संत मगमूम-वि० [अ० मग्मूम ] अनुतप्त | क्लेशित । रंजीदा । गम में तुलसी०, पृ० ११६ । भरा । दुःखी। उ०-और कभी मगमूम बैठे। -प्रेमघन०, मगरूरी-संज्ञा स्त्री० [अ० मग़रूर + ई (प्रत्य॰)] घमंड । अभि- भा०२, पृ० ६२। मान । उ०—(क) कौने मगरी विसारे हरिनमा ।- मगर--संज्ञा पुं० [ स० मकर ] १. घड़ियाल नामक प्रसिद्ध जलजंतु । (गीत) । (ख) सहज सनेही यार नंद दे एती क्या मगरूरी २. मीन । मछली । ३. मछली के आकार का कान में पहनने है।-घनानंद, पृ० १७६ । का एक गहना । ४. नेपालियों की एक जाति । मगरो-संज्ञा पु० [ देश० ] नदी का ऐसा फिनारा जिसमें बालु के मगर-प्रव्य० [फा०] लेकिन । परंतु । पर। जैसे,-पाप कहते साथ कुछ मिट्टी मिली हो और जो जोतने बोने के योग्य हैं मगर यहां सुनता कौन है ? हो गया हो। मुहा०-अगर मगर करना = आनाकानी करना । हीला हवाला मगरोसना-संज्ञा स्त्री० [अ० मज+रौशन ] मुंपनी । नसवार । करना। मगरौठी-ज्ञा श्री० [देश॰] एक जलपक्षी। उ०-तिरते जल मगर-संशा पु० [सं० मग] अराकान प्रदेश जहाँ मग नाम की जाति सुरखाव, पुलिन पर मगरौठी सोई-ग्राम्या, पृ० ३७ । बसती है । उ०-चला परबती लेइ कुमाऊँ। खसिया मगर मगनी एरंट-संज्ञा पुं० [ देश० मगली+हिं० एरंद] रतनजोत । जहाँ लगि नाऊ'।-जायसी (शब्द०)। बागबेरंडा। मगरधर-संज्ञा पु० [स० मकर+धर ] समुद्र । (उ०)। मगलब'-संज्ञा पु० [फा० मग्लूब ] चौधोस शोभानों में से एक । मगरव-सा पु० [अ० मग्रिब ] पश्चिम । (संगीत)। यौ०-मगरव जदा = पाश्चात्य सभ्यता से प्रमावित या ग्रस्त । मगलव-वि० जो जीत लिया गया हो। पराजित । परास्त । हारा मगरय की नमाज = वह नमाज जो सूर्य अस्त होने के समय हुआ | शधोन । जेर। पढ़ी जाती है। मगस'-संज्ञा पु० [ देश०] पेरे हुए ऊों की सोठी । सोई। मगरवाँस-संशा पु० [हिं० मगर ? + बाँस ] एक प्रकार का कांटेदार मगस--संज्ञा पु० [दा० ] शाद्वीप को एक प्राचीन योद्धा जाति बांस जो कोंकण और पश्चिमी घाट मे अधिकता से होता है। मगरवी-वि० [ मनिबो ] मगरिब का । पाश्चात्य । पश्विमी। मगसर-संज्ञी [फा० ] मक्सी । मक्षिण । उ०-गुजर है तुझ जैसे, मगरबी तहजीब, मगरवी सभ्यता । तरफ हर बुल हवस का। हुमा धावा मिठाई पर मगर यो०-मगरखी तहजीब = पाश्चात्य सभ्यता | का।-फविता को०, भा०४, पृ०४॥ का नाम। प्र०