पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४९९

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यौ०- मगसखाना ३७३८ मघाभू यौ०-मगसखाना। मगसगीर-मक्खी पकड़नेवाला । मगस मग्न-वि० [सं०] डूबा हुआ। निमज्जित । २. तन्मय | लोन । रानी=मक्खियां उड़ाना । मोरछल प्रादि मलना। लिप्त । ३. प्रसन्न । हपित । खुण । ४. नशे आदि में चूर । मगसखाना-सज्ञा पु० [फा० मगसखान:] मक्खियों का प्रावास मदमस्त । ५. नीचे की ओर गिरा या ढलका हुमा। जो या अडु।। 30-मगरी कहत यह हमारो है मगसखानो, उन्नत न हो। जैसे, मग्न नासिका, मग्न स्तन । भमर कहत काठ महल मैं उपायो है।-राम० धर्म०, मग्न-संज्ञा पु. एक पर्वत का नाम । पृ०६६। मघ-संज्ञा पु० [सं०] १. पुरस्कार । इनाम । २. धन । संपत्ति । मगसी-संज्ञा पुं० [देश॰] घोड़े की जाति विशेष । उ० - कुम्मन कुमद ३. एक प्रकार का फूल । ४. पानंद । प्रसन्नता (को०)। ५. कल्यान । मोती सु मगसी पान । -ह. रासो, पृ० १२५ । एक प्रकार की प्रोपधि (को०)। ६. मघा नक्षत्र (को०) । ७. मगसिरा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मार्गशीपं ] अगहन मास । पुराणानुसार एक द्वीप का नाम जिसमें म्लेच्छ रहते हैं । मगहीं-संचा पु० [स० मगध] मगध देश। मघई-वि० [स० मगध हिं० मगह+ ई (प्रत्य॰)] दे० 'मगही' । मगहपति -रज्ञा पु० [स० मगधपति ] मगध देश का राजा, o-मघईपान = मगही पान । वि० दे० 'पान'। जरासंध। मघगंध-मज्ञा पुं० [सं० मघगन्ध ] वकुल पुष्प । मौलसिरी [को०] । मगय@-सा पु० [सं० मगध ] मगध देश ! उ०-युद्धामन्यु मघवा-संज्ञा पु० [स० मघवन् ] १. इंद्र । २. जैनों के बारह प्रलंबु उलूका । मगह्य बंधु चतुर पहि मूका। --सवल चक्रवतियों में से एक । ३. पुराणानुसार सातवें द्वापर के ' (शब्द०)। व्यास का नाम | ४. पुराणानुसार एक दानव का नाम । मगहर-संज्ञा पुं० [सं० मगघ, हिं० मगहर ] मगध देश । उ०-सो मगहर मई कोन्हों थाना । तहाँ वसत बहु काल मघवाजित-संज्ञा पुं० [स० ] रावण का वड़ा पुत्र इंद्रजित् जिसने विताना !-रघुराज (शब्द॰) । इंद्र को जीत लिया था। मेघनाद । मगहो-वि० [सं० मगह+ई (प्रत्य० ) ] मगध संबंधी । मगध मघवान-संज्ञा पुं० [सं० मघवन् ] इंद्र। (डि.) 30-ज्यों ब्रज देश का । २. मगह में उत्पन्न । पर सजि धाइया मेघन स्यों मघवान ! -4. रासो, पृ०७४ । यौ०-मगही पान = मगध देश का पान जो सबसे उत्तम समझा मघवाप्रस्थ-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्रप्रस्थ नामक प्राचीन नगर । जाता है । वि० दे० 'पान' । मगही बोली-मगध देश की उ.-फिरि पाए हस्तिनपुर पारय मघवाप्रस्थ वसायो ।-सुर (पशब्द०)। मगारना-क्रि० स० [देश॰] भूनना। कल्हारना । तपाना। मघवारिपु-संज्ञा पुं० [हिं० मधवा + रिपु ( शत्रु)] इंद्र उ०-तिहारे निहारे बिन प्राननि करत होरा, बिरह मंगारनि का शत्रु, मेघनाद । मगारि हिय होरी सी।-घनानंद, पृ० ४४ । मघा-संज्ञा सी० [सं०] १. अश्विनी आदि सचाईस नक्षत्रों में से मगु-संज्ञा पुं॰ [सं० मार्ग ] मग । मार्ग । पथ । राह । रास्ता । दसा नक्षत्र । उ०—(क) मनहुँ मघा जल उमगि उदधि उ-तस मगु भएउ न राम कहं जस मा भरतहिं जात । रुप चले नदी नद नारे । —तुलसी (शब्द०)। ( ख ) दस मानस, २।२१५। दिसि रहे वान नभ छाई। मानहुँ मघा मेघ झरि लाई।- मगोर-संज्ञा स्त्री॰ [ देश०] सींगी की तरह फी एक प्रकार की मछली तुलसी (पद०) । (ग ) मघा मकरी, पूर्वा डांस । उत्तरा जो बिना छिलके की पौर कुछ लाली लिए काले रंग की मे सबका नास । (कहावत ) । होती है । यह डंक मारती है । मंगुर । मंगुरी । २. एक प्रकार की मोपधि । मगोला-संज्ञा पु० [हिं० मंगोल ] दे॰ 'मंगोल'। उ०-मत्त विशेष-इस नक्षत्र में पांच तारे हैं। यह चूहे की जाति का मगोल बोल णहि वुज्झइ ।-कोति०, पृ०६०। माना जाता है और इसके पषिपति पितृगण कहे गए हैं । मग्ग-संज्ञा पुं० [सं० मार्ग, प्रा० मग ] राह। रास्ता । मग । जिस समय सूर्य इस नक्षत्र में रहता है, उस समय खूब वर्षा होती है और उस वर्षा का जल बहुत अच्छा माना मगजल-संज्ञा पु० [अ० मग्ज़] १. मस्तिष्क । दिमाग। भेजा। जाता है। २. किसी फल के बीज की गिरी। भीगी। गूदा। जैसे, मघात्रयोदशी-संज्ञा स्त्री० [स०] भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की मग्जफदद। त्रयोदशी [को०)। मुहा०-के लिये दे० 'मगज'। मघाना-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की बरसाती घास । वि० दे० मग्जरोशन-संज्ञा स्त्री० [फा० मग्जरोशन ] सुधनी । नास । वि० 'मकड़ा'। दे० 'सुधनी'। मघाभव-संज्ञा पु० [सं०] शुक्र ग्रह । मग्जसखुन-संज्ञा पुं० [अ० मग्ज़ + सुखन ] बात की तह । मघाभू-शा पु० [सं०] दे० 'मघाभव' [को०] । बोली। मार्ग।