पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५०१

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मछली मचेरी २७४ मचेरी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] बैलो के जुए के नीचे की लकडो । यो-मच्छीगिर=मेनाक पर्वत । उ०-जव सु राम चढि लंक मचैया -संज्ञा स्त्री० [हिं० मचिया ] दे० 'मचिया' । उ०-दव तव सु मच्छी गिर तारिय |-१० रा०, २।२७३ । मच्छो- भवन = मछली पालने का हौज वा नाद । मच्छीमार । गई पराजय के बोझ से लद, किसान की झुकी मचैया । -इत्यलम्, पृ० २२० । मच्छीकाँटा-संज्ञा पु० [हिं० मच्छी + काँटा] एक प्रकार की सिलाई जिसमें सीए जानेवाले टुपड़ो के बीच मे एक प्रकार मचोला-संज्ञा पु० [देश॰] बंगाद की खारी दलदलों में होनेवाला एक पौधा जिससे सुहागा बनता है । की पतली जाती सी बन जाती है। २. कालीन में एक प्रकार की जालीदार वेल । मच्छ-सज्ञा पु० [सं० मत्स्य, प्रा० मच्छ ] १. बड़ी मछली। २. मत्स्यावतार । उ०—(क) मच्छ कच्छ वाराह प्रनमिया । मच्छीमार-ज्ञा पु० [हिं० मच्छो + मार (प्रत्य॰)] धीवर | पृ० रा०, २।२। (ख) नहिं तव मच्छ कच्छ बाराहा।- मल्लाह। कबीर० श०, पृ० १४६ । ३. दोहे के सोलहवे भेद का नाम । मच्छोदरी-सज्ञा स्त्री० [सं० मत्स्योदरी ] व्यास जी की माता इसमें ७ गुरु और ३४ लघु मात्राएं होती हैं । ४. दे० 'मत्स्य' । सौर शातनु की भार्या, सत्यवती। उ०-सत्यवती मच्छोदरि नारी । गंगा तट ठाढ़ी सुकुमारी।-सुर (पाब्द०)। मच्छ असवारी-संवा पु० [हिं० मच्छ + सवारी ] कामदेव । मदन । (डि० )। मछखवा-सशपु० [हिं० मच्छ + खाना] मछली खानेवाला। उ०-सकठा वाम्हन मछपवा ताहि न दीजे दान !-पलटु० मच्छघातिनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मच्छ + सं० घातिनी ] मछली भा० ३, पृ० ११४। फंसाने की लग्घी | बसी। मछगंधा-सा जी० [हिं० मछ ( = मत्स्य ) + गंधा] दे० मच्छड़-संज्ञा पुं० [सं० मशक ] एक प्रसिद्ध छोटा पतिंगा | मशक । 'मत्स्यगंधा' । उ०-इहि काम पराशर अंधा । उन घाइ गही विशेष-यह वर्षा तथा ग्रीष्म ऋतु में, गरम देशों में और केवल मछगंधा ।-सुदर न०, भा० १, पृ० १२४ ॥ ग्रीष्म ऋतु में कुछ ठंढे देशों में पाया जाता है। इसकी मछमरी -संज्ञा सी० [हिं० मच्छ+मारी ] मछली का शिकार । मादा पशुमो और मनुष्यों को काटती और डंक से उनका उ०-कल पड़मान नदी मे मछमारी होगी ।-मला०, रक्त चूसती है। इसके काटने से शरीर मे खुजली होती है पृ० १८८। और दाने से पड़ जाते हैं । यह पानी पर अडे देता है। और इसी लिये जलाशयो तथा दलदलो के पास बहुत अधिक संख्या मछरंगा -संज्ञा पुं० [हिं० मच्छ (= मछली) ] एक प्रकार का जल- मे पाया जाता है। प्रायः उड़ने के समय यह भुन् भुन् शब्द पक्षी जो मछलियाँ पकड़कर खाता है। किलकिला । किया करता है। मलेरिया ज्वर इसी के द्वारा फैलता है। राम चिड़िया । उ०—लो, मछरंगा उतर तीर सा नीचे क्षण मे पकड़ तड़पती मछली को, उड़ गया गगन में मुहा०-मच्छड़ पर तोप लगाना = क्षुद कार्य के लिये मद् ।-ग्राम्या, पृ०७४ । प्रयास या प्रयोग। मच्छड़-वि० कृपण । कजूस । ( लाक्ष० )। मछरंझ-संज्ञा पुं॰ [देश॰] दे॰ 'मचरंग' । मछर-संज्ञा पुं० [स० मत्सर, प्रा० मच्छर] मत्सर । द्वेष । ईष्र्या । मच्छनी-सज्ञा खी० [ स० मत्स्यनी] मीनगंध । मत्स्यगंध । मछरता -सज्ञा स्त्री॰ [सं० मत्सरता ] दे० 'मत्सरता' । उ०-राग उ०-अंतरिच्छ गच्छनीनी मच्छनी सुलच्छनीनि अच्छी अच्छी दोप तज मछरता 'कलह कलपना त्याग। संकलप विकलप प्रच्छनीनि छवि छमनीय है । --केशव गं०, भा० १, २०। मेटकर साचे मारग लाग।-राम० धम०, पृ० ३१४ । मच्छर'-संञ्चा पु० [ स० मशक ] दे० 'मच्छ' । मछरिया-सञ्चा स्त्री० [सं० मत्स्य ] १. दे० 'मछली' । २. एक यौ०-मच्छरदानी मच्छड़ों से बचाव के लिये खाट वा पलग प्रकार की बुलबुत । के चारो पोर लगाने का जालीदार कपड़े का घेरा। मछरोल-संशा सी० [हिं०] दे० 'मछली'। उ०-बिनु पानी मच्छर-संज्ञा पुं० [सं० मत्सर, प्रा० मच्छर ] १. क्रोध । कोप । मछरी से विरहिया, मिले विना अकुलाय ।-भारतेंदु ग्र०, (हिं०)। २. दे० 'मत्सर' । उ०-मच्छर और न संग्रहै भा०१, पृ०६६३। श्रा मछरी का आद।-रा० रू०, पृ०७२। मछलो-सञ्ज्ञा सी० [सं० मत्स्य, प्रा० मच्छ ] सदा जल मे रहनेवाला मच्छरता-संज्ञा खी० [ स८ मत्सर+ता (प्रत्य०)] मत्सर । एक प्रसिद्ध जीव। मीन । मत्स्य । उ०-मछली को तैरना ईया । द्वष। कोई नहीं सिखाता। वैसे ही, पढ़ती उम्र की फामिनी को मच्छसीमा-संज्ञा बी० [हिं० मच्छ + सीमा ] भूमि संबंधी प्रणय के पैतरे सिखाने नही पड़ते !-वो दुनिया, पृ० ५६ । झगड़ों का वह निपटारा जो किसी नदी प्रादि को सीमा विशेष-इस जीव की छोटी बड़ी असंख्य जातियां होती मानकर किया जाता है। महाजी। हैं। इसे फेफड़े के स्थान मे गलफड़े होते हैं जिनकी सहायता मच्छी-संञ्चा स्त्री० [सं० मत्स्य, हिं• मच्छ+ ई (प्रत्य॰)] दे० से यह जल मे रहकर ही उसके अंदर की हवा खीचकर सोस 'मछली'। लेती है। पौर यदि जल से बाहर निकाली जाय, तो तुरंत !