पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५११

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RO भणिबंध मतंग $626 मणिबंध-संज्ञा पुं॰ [ १० मणिबन्ध ] १. नवाक्षरी वृत्त जिसी मणियों की माला | उ०-देख विखरती है मणिराजी, घरी प्रति चरण में भगरण, मगण और सगण होते हैं । उ०- उठा बेसुध चंचल |-कामायनी, पु० ४० । कंठमणी मध्ये सुजला। टूट परी खोजे अबला |-भानु मणिरोग-संवा पु० [स०] पुरुद्रिय का एक रोग जिसमे लिंग के ( शब्द०)। २. कलाई । उ०-जिन युवकों के मणिबंधों अगले भाग का चमड़ा उसके मस्तक पर चिपक जाता है और में प्रबंध वल इतना भरा था, जो उलटता शत नियों को।- मूत्र मार्ग कुछ चौड़ा होकर उसमें से मूत्र की महीन लहर, पृ०६० । ३. कलाई में बांधने या पहनने का आभूषण धारा गिरती है। जिसे तोड़ा कहते हैं। मणिवर-संज्ञा पु० [सं०] हीरा । मणिराज [को०] । मणिबंधन-संज्ञा पु० [ स० मणिबन्धन ] १. मणियों का वाचना मणिशैल-सशा ० [सं०] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम जो या बांधा जाना। २. कलाई। ३. कलाई पर पहनने का मंदराचल के पूर्व में है। याभूषण या मोतियों की लरी [को०] । मणिश्याम-सज्ञा पु० [सं०] इंद्रनील नामक मणि । नीलम । मणिबीज-सज्ञा पु० [स० ] अनार का पेड़। मणिसर-सशा पु० [सं०] मोतियों की माला । मणिभद्र--सा पु० [ ] शिव के एक प्रधान गण का नाम । मणिसूत्र-मझा . [ स०] मोतियों का हार । मणिभद्रक-सशा पु० [स०] १. एक प्राचीन जाति का नाम मणिसोपान-संरा पु० [सं०] १. रत्नजटित सीढ़ो। २. दे० जिसका उल्लेख महाभारत में है। २. एक नाग का नाम । 'मरिणसोपानक' | उ.-मुक्ता के बीच बीच मणि लगे हों मणिभारव- संज्ञा पु० [ स०] दे० 'मणितारक' । तो उसका नाम मणिसोपान है।-वृहत०, पृ० ३८५। मणिभित्ति-सवा स्त्री० [स०] शेषनाग का महल । मणिसोपानक-सा पुं० [सं०] कौटिल्यवरिणत सोने के तार में मणिभू-संज्ञा स्त्री० [सं०] वह खान जिसमे से रत्न प्रादि निकलते हो। पिरोए हुए मोतियों की माला विसके बीच में कोई रत्न हो मणिभूमि-संशा स्त्री॰ [स०] १. वह खान जिसमें से रत्न प्रादि (कौटि०)। निकलते हों। २. रत्नजटित भूमि या स्थान (को०)। ३. मणिस्कंध-सशा पु० [सं०] महाभारत के अनुसार एक नाग पुराणानुसार हिमालय के एक तीर्थ का नाम । का नाम। मणिमंडप-संज्ञा पुं० [सं० मणिमण्डप ] १, रत्नमय महल या मणिस्रक्-सा सी० [सं० मणिनज् ] मोतियों का हार या मंडप । २. शेषनाग का प्रासाद । माला को०] | मणिमंतक-संज्ञा पु० [सं० मणिमन्तक] एक प्रकार का हीरा [को०)। मणिहर्म्य-संज्ञा पुं॰ [ सं०] रस्नों या स्फटिकों से जटित महल । मणिभंथ-संज्ञा पु० [ स० मणिमन्थ ] सेंधा नमक । मणींद्र-संज्ञा पुं० [सं० मणीन्द्र ] हीरा [को०] । मणिमध्य-संज्ञा पुं॰ [ स०] मणिवध नामक छंद । मणो'-संज्ञा पु० [सं० मणिन् ] सर्प । मणिमान्'-वि० [ स० मणिमत् ] रत्नभूषित । मणियुक्त [को०] । मणी-सशा स्त्री० [सं० मणि ] दे० 'मणि' । मणिमान-संज्ञा पु० १. सूर्य । २. एक पर्वत । २. एक तीर्थ [को०] । मणीयाg-सा सी० [सं० मणिक ] दे० 'मनिया' । उ०- सरवरि खोजि पाय नाम मणीमा-प्राण, पृ० १०४। मणिमाला-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वारह अक्षरों का एक बुच मणीचक्र-संशा पुं० [सं०] १. चंद्रकांत नामक मणि । २. मत्स्य जिसके प्रत्येक चरण में तगण, यगण, तगण, यगण होते हैं। उ०-छड़ो सब जेते हैं रे जगमाला, फेरो हरि के नामों की पुराणानुसार शकद्वीप के एक वर्ष का नाम । ३. एक मणिमाला । २. रतिकालीन दतक्षत का एक प्रकार (फो०)। प्रकार का पक्षी। ३. मरिणयों की माला। ४. लक्ष्मी। ५. चमक। दीप्ति । मणीच-संछा पुं० [ ] १. फूल । पुष्प । २. मुक्ता । मोती । ३. शकद्वीपगत एक वर्ष का नाम । मणीचक्र [को०] । मणिमेघ-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार दक्षिण भारत के एक मणीवक-संज्ञा पुं० [सं० ] पुष्प । फुल । पर्वत का नाम । मतंग-संज्ञा पु० [स० मतङ्ग] १. हाथी। उ०-मग डोलत मतंग मणियष्टि-सज्ञा स्त्री० [सं०] रत्नजटित बड़ी या लरी [को॰] । मतवारे । हम्मीर०, पु० २६ । २. वादल । ३. एक दानव मणिरत-संज्ञा पु० [सं०] एक वौद्ध प्राचार्य का नाम । का नाम । ४. एक प्राचीन तीर्थ का नाम । ५. कामरूप के अग्निकोण के एक देश का प्राचीन नाम । ६. त्रिशंकु राजा मणिरथ-सज्ञा पु० [सं०] एक बोधिसत्व का नाम । का नाम (को०)। ७. एक कृषि का नाम जो शवरी के मणिराग-संज्ञा पु० [सं०] १. हिंगुल । शिंगरफ। २. मणि का रंग । मणि की पाभा (को०)। विशेप-महाभारत में लिखा है कि ये एक नापित के वीर्य से मणिराज-संज्ञा स्त्री० [स०] हीरा (को०] । एक ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। उस ब्राह्मणी के मणिराजी-संज्ञा श्री० [स० मणिराजि] मणियों की राशि या ढेरी । पति ने इन्हे अपना ही पुत्र और ब्राह्मण समझकर पाला आभा। गुरु थे।