पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५१२

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मतंगज मतलाना था । एक बार ये गधे के रथ पर सवार होकर पिता के लिये मत'-कि.१० [सं० मा] निषेधवाचक शब्द । न । नहीं । जगे,- यश की सामग्री लाने जा रहे थे। उस समय इन्होंने गधे को (क) वहाँ मत जाया करो । (ख) इनसे मत बोतो । बहुत निर्दयता से मारा था । इसपर उस गधे की माता गधी मत-वि० [ H० मच ] मतवाता । मच । उ०—(6) जा से इन्हें मालूम हुआ कि मैं ब्राह्मण की संतान नहीं हूँ, चांडात कोउ मदिरा मत धस पाही।-नंद० प्र०, पृ० १३८ । (स) के वीर्य से उत्पन्न हूँ। इन्होंने घर पाकर पिता से सब दुखित भयो घुमत निमि मस्यौ ।-नंद० प्र०, Y० ३२२ । समाचार फहे और पाह्मणत्व प्राप्त करने के लिये धोर मत-संशा श्री॰ [ स० मति ] ३० मिति' । तपस्या करने लगे। तव इंद्र ने याकर समझाया कि यौ०-मतहीन वृद्धि रहित । श्रज्ञामी । उ०-माघ जीय फरे ब्राह्मणत्व प्राप्त करना सहज नहीं है। उसके लिये लाखों, उपकारा। जिय मतहीन उन्ही को मारा-घट०, वर्षों तक अनेक जन्म धारण करके तपस्या करनी पड़ती है। तब इन्होंने वर मांगा कि मुझे ऐसा पक्षी बना दीजिए पु०२४०। जिसकी सभी वर्णवाले पूजा करें; मैं जहाँ चाहूं, वहाँ जा सकू मतना-क्रि० प्र० [ म० मत+ना (प्रत्य॰)] संमति निश्चित और मेरी कीति अक्षय हो । इंद्र ने इन्हें यही वर दिया और करना । राय कायम करना । उ-विनय कहि नेते गड़ाती। ये छदोदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुछ दिनों के उपरात फा जिठ कीन्ह कौन मति मती ।-बायसी (शब्द०)। इन्होंने शरीर त्यागकर उत्तम गति प्राप्त की। मतना-कि० अ० [सं० मच] नशे प्रादि में चूर होना । मत्त मतंगज-संज्ञा पुं॰ [ स० मतगज ] हाथी [को॰] । होना । मतवाला होना। मतंगजा-संज्ञा स्त्री० [सं० मतङ्गजा ] संगीत शास्त्र में एक विशिष्ट मतरिया'-संशा स्त्री० [सं० मातृ, मातर+ इया ( प्रत्यय० ) या मुर्छना (को०)। सं० मातृका ] दे० 'माता' या 'मा' । मुहा०-मतरिया वहिनिया करना = मां वहन की गाली देना। मतंगा-संज्ञा पुं० [सं० मतङ्ग ] एक प्रकार का वास जिसे मून भी कहते हैं। यह बंगाल और वरमा में बहुत होता है। इसके मतरियालर-वि० [ स० मंत्र, हिं० मंतर ] १. मंत्र देनेवाला। पोर लबे और सुदृढ़ होते हैं। इसको दीमक नही खाती। मंत्री। सलाहकार । २. मत्र से प्रभावित | मत्रित । ३. मंधतंत्र करनेवाला । मांत्रिक । मतंगी-संधा पु० [स० मतजिन् ] हाथी का सवार । उ०-तिमि मवलव-सशा पुं० [अ०] १. तात्पर्य । यभिप्राय । प्राशय । २. खच्छ मतंगी स्वच्छ भट सरी निखंगी अति भले ।-गोपाल अर्थ। मानी। ३. अपना हित । निज का लाभ । स्वायं । (पान्द०)। उ०-हरदम कृष्ण कहे श्री कृष्ण कहे तू जा मेरी । यही मत-संज्ञा पुं० [सं०] १. निश्चित सिद्धांत । संमति । राय । मतलव खातर करता हूँ खुशामद मैं तेरी!-राम० धम', मुहा०-मत उपाना= सम्मति स्थिर करना। उ०-करुना पु० ८७॥ लखि करुनानिधान ने मन यह मतो उपायो।-(पद०)। मुहा०-मतलब का श्राशना % मतलबी मित्र । सार्थसाधक । मततव का यार अपना भला देखनेवाला । स्वार्थी। २. निर्वाचन में किसी के चुनाव या किसी प्रस्ताव प्रादि के पक्ष मतलब गाँटना या निकालना-सार्थसाधन करना । उ०- या विपक्ष में निर्धारित विधि से प्रकट किया हुमा विचार तब सके गांठ हम यहाँ मतलव ।-चोले०, पृ० ३६ । या संमति। यौ०-मतगणना मत या वोटों की गिनती। मतदान = मत ४. उद्देश्य । विचार । जैसे,—पाप भी किसी मतलब से या वोट देना। मतभेद = राय या विचार की भिन्नता । उ०-हिंदुस्तान में इतनी सहनशीलता थी कि मतभेद होने मुहा०-मततब हो जाना=(१) सफल मनोरथ होना। पर भी लोग सबको उच्च स्थान देते थे। -हिंदु० सभ्पता, (२) बुरा हाल हो जाना । (३.) मर जाना । पृ० १८१। मतवाद = किसी विचार को लेकर उसका ५. संबंध । सरोकार । वास्ता । जैसे-अब तुम उनसे कोई मतलव न रखना। पक्षस्थापन । उ०-साहित्य फेवल मतवाद के प्रचार का साधन भी नही बना करता ।-न० सा० न० प्र०, ११। मतलविया-वि० [अ० मतलय -+हिं० इया (प्रत्य॰)] गुदगरज । मतसंग्रह = किसी प्रश्न पर मतदान के अधिकारियों का मतलपी। विचार संकलन । मतत्वातंत्र्य = राय या विचार फी मतलबी-वि० [भ० मतलप+ ई (प्रत्य॰)] जो मेवल पपने हित का ध्यान रखता हो । स्थायीं। खुदगरप। ३. पर्म । पंथ । मजहब । संप्रदाय । ३. भाव । प्राशय । मतला-सशा पु० [अ० नत्ला ] गजल का सबसे पहला शेर जिसकी मतलब । ४. ज्ञान । ५. पूषा । पर्चा । दोनों पंक्तियाँ तुझांत होती हैं। गजल का भारभिक तुझाउ मत'-वि० १. जिसकी पूजा की गई हो। पूजित । प्रचित । २. शेर। माना हुप्रा । संमत (को०)। ३. विचारित (को०)। ४. संगा मतलाना-कि० अ० [हिं० मतली] गतवी पाना । मिचलाना। नित | पाहत (को०) । ५. कुत्सित । खराब । बुरा । पाए हैं। आजादी।