पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५२५

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मदोच्छ्वास ३७६४ मद्यकुभ चीरा बाँधे मदूर, करे सानी शरीयत काम अक्सर - मद्द-संज्ञा स्त्री० [अ० ] दे० 'मद" । दक्तिनी०, पृ०२४६ मदगन-संज्ञा पु० [देश॰] हाथी। मत्त गज । उप-प्ररि अग्ग मदोच्छवास- सज्ञा पु० [ सं मद + उच्छ्वास ] मद भरे उच्छ्वास । मद्दगल सहरा हप्ष ।-पु० रा०, ११४३७ । माह या दीर्घ सास । 50-मेरी निभृत समाघि से अतुल, मदत, मदत-संज्ञा स्त्री॰ [अ० मदद ] सहायता । मदद । उ०- निकले मदोच्छ गस मदिराउत ।-धुज्वाल, पु०३८ । ठारे रु चार मैं पावस सावन मास । मद्दति फरिय सुरेस मदोत्कट' -वि० [7] मदवित । मदोद्धत । की किय दखिनी दल नास!-जान०, पृ० २५ । मदोत्कट'- ज्ञा पुः मत्त हाथी । मदराई -वि० [ स० मत्त+गज ] मद से युक्त । मदोन्मत । मदोदन स०] मत्त । मतवाला। उ.-करि अपइस दुईमें दुहाई। मनौ बंन झुनझ गजं मदोद्धत-वि० [सं०] १. मदोन्मत्त । मत्त । उ०—जिसमे मदोद्धत मद्दराई ।--पु. रा०, ६।१४६ । कटाक्ष की अरुणिमा, व्यग्य करती थी विश्व भर के अनुराग मद्दा-वि० [अ० मद्दाह ] प्रशंसक । उ०-शहादत मद्दा कहे तो पर ।-लहर, पु. ८३ । २. घमडी। अभिमानी। क्या, याने इस खाकी तन मु मरना है !-दक्खिनी., पृ० ३६७॥ मदोन्मत्त-वि० [स० ] मद से भरा हुमा । मदाध । मदोमत्त-वि० [ स० मद+मत्त ] दे० 'मदोन्मत्त' । उ०—किसोरं महा-संश पु० [ स० मन्द ] [ सा नी मद्दी ] सस्ता। महंगी फिसावर्त गात सुक्रोसं । बप एस बल्ल मदोमत्त दीसं ।- होने की विपरीत स्थिति । ३०-चोखेलाल की पत्तियो की वात फैल गई तो बाजार तीन चार पाने की मद्दो से खुलेगा। पृ० रा०, २१५०१। -अभिशप्त, पृ०५२। मदोर्जित-वि० [ स०] मद से भोजयुक्त । गर्व से फूला हुप्रा । मदोल्लापो-मज्ञा पु० [स० मदोलनापिन् ] कोफिल । मदाह-वि० [अ०] १. प्रशंसक । तारीफ करनेवाला । २. सहायक । मददगार (फो०] । मदोवै पु-ज्ञा स्त्री० [सं० मन्दोदरी ] मंदोदरी । उ०—तुलसी मदोवै मीजि हाथ, धुनि माथ, वहै काहू कान कियो न मैं महसाही-मा पु० [हिं० मधुसाह ] एक प्रकार का पुराना पैसा जो तांबे का चौकोर टुकडा होता है। केतो कह्यौ कालि है।-तुलसी (शब्द॰) । मद्देनजर-क्रि० वि० [अ० मद्देनज़र ] दृष्टि के समक्ष रखकर । मद्गु-संज्ञा पुं० [स० ] १. एक प्रकार का जलपक्षी जिसे जलपाद दृष्टिगत करके। उ०-वह धर्म को व्यापार का शृंगार और लमपुछार भी कहते है। समझता है और सब काम अपने स्वार्थ को मद्देनजर रखकर विशेष—इसकी लंबाई पूछ से चोंच तक ३२ से ३४ इंच तक करता है। प्रेम और गोर्की, पृ० ३३६ । होती है । इसके डैने कुछ पीलापन लिए होते हैं । पूछ काली, महे फाजिल-संज्ञा सी० [अ० महफाजिल ] व्यर्थ का खर्च [को०] । चोच पीली और मुह, कनपटी और गले के नीचे का भाग सफेद तथा पर काले होते है। यह भारतवर्ष के प्रायः सभी मद्दे मुकाविल-वि० [अ० मद्दे मुकाविल ] विपक्षी। शत्रु । भागों मे, विशेषकर पहाड़ी और जंगली प्रदेशों मे, होता है । प्रतिद्वंद्वी । रकीब को०)। वैद्यक में इसका मास शीतल, वायुनाशक स्निग्ध और भेदक मद्दोजजर-संशा सी० [अ० मद्दोजच ] ज्वार भाटा । समुद्र के माना गया है। यह रक्तपित्त के विकारो को दूर करता है पानी का उतार चढ़ाव । २. पेड़ पर रहने वाला एक प्रकार का जंतु । ३. मद्गुरी मद्ध-संज्ञा पु० [ सं० मध्य ] दे० मध्य' । मछली । मंगुर । ४. एक प्रकार का साप । ५. एक प्रकार मद्धिक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] वह मदिरा जो द्राक्षा से बनाई जाती का युद्धपोत । ६. एक वर्णसंकर जाति का नाम । है। द्राक्ष। विशेप-मनुस्मृति में इसकी उत्पत्ति ब्राह्मण पिता और बंदी मद्धिम-वि० [स० मध्यम] १. मध्यम । अपेक्षाकृत फम जाति की माता से लिखी है और इसका काम वन्य पशुओं अच्छा । २. मंदा। को मारना बताया गया है। मद्ध '- अव्य० [ स० मध्य ] १. बीच में । में । उ०—(क) गुरु संत मद्गुर-संज्ञा पुं॰ [स०] १. भंगुरी या मंगुर नामक मछली । २. समाज मद्धे भक्ति मुक्ति दृढ़ाइए :-कबीर (शब्द॰) । (ख) प्राचीन काल की एक वर्णसंकर जाति जिसका काम समुद्र में सतगु आप पुरुष हैं स्वामी। गगन कंज मद्धे प्रस्थानी । डूबकर मोती अादि निकालना था। -घट०, पु० २५४ । २. विषय में। बाबत | संबंध में । यौ०-मदगुरप्रिया = सिंघी मछली। उ०-परंतु अंगूठी मिलने के मद्धे इससे कुछ भोर पूछ ताछ मद्गुरक-सज्ञा पु० [सं० ] मंगुर नामक मछली। मद्गुर । होनी चाहिए। --लक्ष्मणसिंह (शब्द०)। ३. लेखे में। मद्गुरसी, मद्गुरी-सज्ञा पु० [सं०] मंगुर या मद्गुर नामक मछली। बाबत । जैसे,—प्रापको सो गए इस मद्धे दिए जा चुके हैं। मद्द-सा पु० [सं० मद्य, प्रा० मद्द ] दे॰ 'मद्य'। उ०-मद्द मद्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] मदिरा । शराव । मास मिथ्या तज डारौ।-कवीर श०, भा०१. पृ०५६ । मद्यकुभ-संज्ञा पुं० [सं० मद्य कुम्भ.] शराब का बरतन [को० ।