पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५२७

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२०५६ मधुतर, मधुतण स० 1 पृ० २१ । ६. चैत्र मास । ७. एक दैत्य जिसे विष्णु ने मारा मधुकंभा-मुंज्ञा जी [ स० मधुकुम्भा ] कार्तिकेय को अनुबरी एक था और जिसके कारण उनका 'मधुसूदन' नाम पड़ा । ८. मातृका का नाम । दुध । ६. मिसरी । १०. नवनीत । मक्खन । ११. घी। १२. मधुकुक्कुटिका, मधुकुक्कुटी-संज्ञा सी० [सं०] एक प्रकार का एक छंद जिसके प्रत्येक परण में दो लघु अक्षर होते हैं । नीबू का पेड़ [को०] । १३. शिव । महादेव । १४. महुए का पेड़। उ०-पट मंडप मधुकुल्या-पुंज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. मधु या शहद की धारा (को०)। चारों ओर तने मन भाए, जिनपर रसाल, मधु, निव, जंबु, पुराणानुसार कुशद्वीप की एफ नदी का नाम । षट् छाए।-साकेत, पृ० २२५। १५. अशोक का पेड़। १६. मुलेठी। १७. अमृत । सुधा । १८. सोमरस (को०) । मधुकृत्-संज्ञा पुं० [स०] मधुमक्खी [को॰] । १९. मधुमक्खी का छत्ता (को०)। २०. मोम (को०)। २१. मधुकेशर-सज्ञा पु० [ स० ] मधुमक्खी किो०] । एक राग जो भैरव राग का पुत्र माना जाता है। मधुकैटभ-संज्ञा पु० [सं०] पुराणनुसार मधु पोर पोटभ नाम के मधु-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] जीवंती का पेड़। दो दैत्य जो दोनो भाई थे और बिन्हे विष्णु ने मारा था। मधुकोश, मधुकोप -सज्ञा पु० [स०] शहद की नक्की का दत्ता। मधु'-वि० [सं०] १. मीठा । २. स्वादिष्ट । उ०-चारी भ्रात मिलि करत फलेऊ मधु मेवा पकवाना :-सुर (शब्द०)। मधुचका मधुअरि--संज्ञा पु० [सं० मधु+ परि ] मधुसुदन । कृष्ण। उ०- मधुक्रम-पंज्ञा पुं० [सं०] मधुपक्ची का छत्ता [को०) । मोहन मधु अरि मुष्टि परि दामोदर जदुईस । –अनेकार्थ०, मधुनोर, मधुक्षीरक-पंज्ञा पुं० [ ] खजूर का पेड़। पु०६१। मधुखर्जूरिका, मधुखर्जुरो -मग पु० [सं०] खजूर का एक प्रकार । मधुकंठ-संज्ञा पु० [ स०] फोकिल । कोयल । मधुगंध-सज्ञा पु० [ म० मयुगन्ध ] १. अर्जुन का वृक्ष । २. वाल । मौलसिरी। मधुक'-पुंज्ञा पुं॰ [सं०] महुए का पेड़ । २. महुए का फूल । ३. अशोक वृक्ष (को०) । ४. एक पक्षो (को०)। ५. मुलेठो । जेठी मधुगंधिक-वि० [स० मधुगन्धिक ] मयुर सुगंधवाला [को०] । मधु । ६. सीसा । रांगा (को०)। ७. खजूर रस (को०)। मधुगायन-सज्ञा पुं॰ [ स०] कोयल [को०] । यौ०-मधुकाश्रय । मधुगुंजन-मज्ञा पुं॰ [ न० मधुगुञ्जन ] उहजन का वृक्ष । मधुक'–वि० १. मीठा । २. मीठा बोलनेवाला । सुस्वर । ३. शहद के मधुग्रह-संज्ञा . [ स०] वाजपेय यज्ञ में का एक होम जो मधु से किया जाता है। समान रंग का [को॰] । मधुकर-सज्ञा पुं॰ [स०] १. भौरा । उ०-फूटि सुगंध कंज की मधुधोष-संज्ञा पु० [स० ] कोकिल । कोयल । जैसे, मधुकर के मन भावे !-कबीर १०, भा० ३, पृ० १६। मधुचक्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] शहद को मक्खो का छत्ता ! उ०-पुलक २. कामी पुरुष । ३ भंगरा । घबरा । उठी मधुचक्र देख प्रनु की प्रिया ।-साकेत, पृ० १३८ । मधुकरो'–सशा बी० [० मधुकर] १. गफरिया । भौरिया । वाटी। मधुचौर-[स० मधु+ चौर ] मधु का चोर । भ्रमर । उ०--मधुप २. पके अन्न की भिक्षा। वह भिक्षा जिसमें केवल पका हुआ मधुवत मधुरसिक इंदीवर मधु चौर-पने कार्य०, पु०७१ । दाल, चावल, रोटी, तरकारी आदि की जाती हो। ३. मधुच्छंदा-ज्ञा पु० [सं० मधुच्छन्दस् ] विश्वामित्र के एक पुत्र का भ्रमरी। भीरी। नाम जो मरद के मनेक ममो के द्रष्टा थे। मधुकरी-संज्ञा स्री० [सं०] भ्रमर । भौरा [को०] । मधुच्छदा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मोरशिखा नाम की वूटी। मधुकर्कटिका-संशा श्री० [स०] संतरा । मीठा नी । मधज-मज्ञा पु० [०] मोम । मधुकर्कटी-संज्ञा स्त्री० [स० ] १. दे० 'मधुककंटिका'। २. एक मधुजा--संज्ञा वी • [सं०] १. पृथ्वी। प्रकार का खजूर [को॰] । विशेष- पुराणानुसार पृथ्वी की उत्सत्ति मधु नामक राक्षस मधुकलोचन-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । मेद से हुई थी, इसी से उसका यह नाम पड़ा। मधुका-संज्ञा सी० [स०] १. मधुयष्टिका । मुलेठी । २. मधुपर्णी २. मिली (को०)। वृक्ष । ३. काले रंग की कुनी [को०] । मधुजालक--संज्ञा पु० [सं०] मधुमक्खी का छत्ता [को०] । मधुकार-संज्ञा सी० [सं०] मधुमक्खी। शहद की मक्खी । मधुजित्-सज्ञा पु० [सं०] विष्णु [को॰] । मधुकारी-संज्ञा पु० [ स० मधुकारिन ] मधुमक्खी । शहद की मक्खी । मधुजीरक-संज्ञा पु० [ स० ] सौंफ। उ०-कोउ कहे अहो मधुप कौन कहे तुमें मधुकारी। नंद० मधुजीवन- सहा पु० [ स०] बहेड़े का वृक्ष । गं०, पृ० १८३ । मधुतम, मधुतर-वि० [सं०] अत्यंत मीठा [को॰] । मधुकाश्रय-सज्ञा पु० [स०] मोम । मधुतरु, मधुतृण-संज्ञा पुं० [ स०] ईख । कस।