पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५२८

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स० ३७६७ मधुत्रय मधुबाला मधुत्रय-संज्ञा पुं० [ सं०] शहद, घी और चीनी इन तीनों का समुह । मधुपर्का-वि० [सं०] मधुपर्क देने के योग्य । जिसके सामने मधुपर्क रखा जा सके। मधुत्व-संज्ञा पुं० [सं०] मधु या मधुर होने का भाव । मिठास | मीठापन । मधुपर्णिका, मधुपर्णी-संज्ञा सी० [सं०] १. गुरुच । २. गंभारी मधुदीप-संज्ञा पुं० [सं० ] कामदेव । नामक वृक्ष । ३. नीली नामक पौधा । मधुदूत-सज्ञा पु० [सं०] ग्राम का पेड़ । मधुपाका-संज्ञा स्त्री० [सं०] खरबूजा [को०] । मधुदूती-संज्ञा स्त्री० [सं०] पाटना वृक्ष मधुपात्र-संज्ञा पुं॰ [म०] मदिरा रखने का वरतन । मद्य पात्र (को०] । मधुद्र-ता पुं[सं०] १. भौरा । २. लंपट । कामासक्त (को॰) । मधुपायी-संञ्चा पु० [सं० मधुायित् ] भौरा । मधुद्रव-संज्ञा पुं० [सं०] लाल सहजन का वृक्ष । मधुपालिका-पंज्ञा स्त्री० [ ] गंभारी नामक वृक्ष । मधुम-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १. महुए का पेड़ । २. ग्राम का पेड़ (को०)। मधुपिंग-संज्ञा पु० [स० मधुपिज] पुराणानुसार एक मुनि का नाम । मधुधातु-संज्ञा पुं० [स०] माक्षिक । एक धातु [को०] । मधुपीलु-संज्ञा पु० [स०] महापीलु । प्रखरोट । मधुधारी -सरा पु० [ स०] सोना मक्खी। मधुपुर-संज्ञा पु० [सं०] मथुरा नगर का प्राचीन नाम । मधुधूलि-संज्ञा स्त्री० [सं० ] खांड़ । शक्कर । मधुपुर-सशा पुं० [ स० मधु+पुर ] मयखाना । शरावघर | उ०- अध्यं चढ़ा उनको जो जब तब पाते हैं तेरे मधुपुर में | मधुधेनु-संज्ञा पु० [ म० ] मधु नादि द्वारा निर्मित सवत्सा गौ । गीतिका, पृ० ३७ । शहद जो गाय की प्राकृति के रूप में ब्राह्मणो को दान किया जाय। मधुपुरी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] मथुरा का प्राचीन नाम । विशेप-बाराह पुराण के श्वेतोपाख्यान में इसकी विधि और मधुपुष्प-संज्ञा पुं॰ [ स०] १. महुआ। २. सिरिस का पेड़ । ३. माहात्म्य वणित है। अशोक वृक्ष । ४. मौलसिरी। मधुनापित-संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णसंकर जाति जो स्मृति के मधुपुष्पा-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. नागदंती । २. धौ । अनुसार शूद्रा स्त्री और क्षत्रिय पुरुष से उत्पन्न है। मधुप्रणय--संज्ञा पुं० [ मं० ] शराब पीने का व्यसन को०] । मोदक [को०)। मधुप्रमेह-सज्ञा पु० [सं० ] एक प्रकार का प्रमेह रोग जिसमें पेशाब मधुनी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक प्रकार का क्षुप जिसे घृतमंडा और में शक्कर आती है। विशेष ० 'मधुमेह' । सुमंगला भी कहते हैं। मधुप्राशन-संज्ञा पुं० [सं०] सोलह संस्कारों में से एक संस्कार मधुनेवा-संज्ञा पु० [स० मधुनेत्] १. मधुमक्खी । २. भ्रमर । भौंरा । जिसमें नवजात शिशु (पुत्र) को शहद चटाया जाता है [को०] । मधुप-प्रज्ञा पुं॰ [स०] १. भौरा। २. शहद की माखो। ३. उद्धव । मधुप्रिय-प्रज्ञा पुं० [सं०] १. वलराम । २. भुई जामुन । ३. उ०-पगी प्रेम नंदलाल के, हमैं न भावत जोग। मधुप बकर (को०)। राजपद पाय के, भीख न मांगत लोग |-मतिराम (शब्द०)। ४. देवता, जो मधु पीते हैं (को०)। मधुकल-सज्ञा पु० [सं०] १. दाख । २. कटाय या विकंकत नामक वृक्ष । ३. एक प्रकार का नारियल (को०)। मधुप-वि० १. पधु पीनेवाला । ३. शराबी (को०) । मधुफलिका-ज्ञा खा. [ सं०] मीठो खजूर । मधुपटल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] शहद को मक्खी का छत्ता । मधुबन-ज्ञा पु० [सं०] १. ब्रजभूमि के एक बन का नाम । मधुपति-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण । उ०-धुवन तुम कत रहत हरे।--सूर०, १०।३२१० । मधुपनी-संज्ञा स्त्री० [सं० मधुर+नी (प्रत्य॰)] भ्रमरी। उ०- २. सुग्रीव का बगीचा जिसमें भगूर के फल बहुत होते थे । सरस वसंत सुहावनो रितु थाई सुख देनु । माते मधुप मधुपनी उ०-जो न होत सीता सुधि पाई। मधुवन के फल सकहिं कोकिल कुल कल वेनु ।-छोत०, पृ० २३ । कि बाई।--मानस, ५।२६ । मधुपर्क-संज्ञा पु० [सं०] १. दही, घी, जल, शहद और चीनी का मधुबहुल-संज्ञा पु० [सं०] [ सी० मधुबहुला] १. वासंती लता। समूह जो देवताप्रो को चढ़ाया जाता है । २. सफेद जूही। विशेष—इससे देवता बहुत संतुष्ट होते हैं। यह भी कहा गया मधुवारा-ज्ञा बी० [सं०] मदिरा। मधु । शराब । उ०—मधु, है कि इसका दान करने से सुख और सौभाग्य की वृद्धि माध्वी, मदिरा, इरा, सुरा, बारुणी होय । घासव, मय, कादं. तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूजा के सोलह उपचारों में से बरी, मधुबारा मैरेय ।-नंद० ०, पृ०६८। देवता या पूज्य के सामने मधुपर्क भी रखना एक उपचार मधुबाला-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. शराब पिलानेवाली स्त्री। साकी । है । विवाह मे भी इसके दान और प्राशन का विधान है। उ०-सो जाती है मधुबाला । सूखा लुढ़का है प्यावा। २. तंत्र के अनुसार घी, दही और मधु का समूह जिसका उपयोग -लहर, पृ० ५४। २. मकरंद का संग्रह करनेवाली, तात्रिक पूजन में होता है। भौरी । भ्रमरी। 1